समाजशास्त्र की प्रकृति Samajshashtra ki prakrati
समाजशास्त्र की प्रकृति (NATURE OF SOCIOLOGY) वर्तमान युग विज्ञान का युग है। हर ज्ञान पटना और परिस्थितिवैज्ञपर आपने कर प्रयास किया जाता है। जो ज्ञान, पटना और परिस्थितिविज्ञान-सम् है, उसे ही सत्य माना जाता है। जब किसी भी विज्ञान की प्रकृति पर विचार किया जाता है यह होता है कि उस विज्ञान के अध्ययन की पद्धति अथवा तरीका वैज्ञानिक है? विज्ञान में जिस घटना अथवा परिस्थिति की विवेचना की जाती है, वह विज्ञान की कसौटी पर सही नहीं ? समाजशास्त्र की प्रकृति के अन्तर्गत हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि इसके अध्ययन की पद्धति अ तरीके वैज्ञानिक है अथवा नहीं? समाजशास्त्र तुलनात्मक रूप से एक नया विज्ञान है। नया विज्ञान होने के समाजशास्त्र की प्रकृति के बारे में विवाद का होना नितान्त ही स्वाभाविक है। पिछली शताब्दियों में समाजशास्त्र में जो सबसे अधिक चर्चा का विषय बना, वह था इसकी प्रकृति के बारे में समाजशास्य की प्रकृति को लेकर तीन प्रकार की विचारधाराओं पर चर्चा हुई। (1) समाजशास्त्र विज्ञान है. (2) समाजशास्त्र कला है, तथा (3) समाजशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है। समाजशास्त्र की प्रकृति को समझे बिना