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समाजशास्त्र की प्रकृति Samajshashtra ki prakrati

समाजशास्त्र की प्रकृति (NATURE OF SOCIOLOGY) वर्तमान युग विज्ञान का युग है। हर ज्ञान पटना और परिस्थितिवैज्ञपर आपने कर प्रयास किया जाता है। जो ज्ञान, पटना और परिस्थितिविज्ञान-सम् है, उसे ही सत्य माना जाता है। जब किसी भी विज्ञान की प्रकृति पर विचार किया जाता है यह होता है कि उस विज्ञान के अध्ययन की पद्धति अथवा तरीका वैज्ञानिक है? विज्ञान में जिस घटना अथवा परिस्थिति की विवेचना की जाती है, वह विज्ञान की कसौटी पर सही नहीं ? समाजशास्त्र की प्रकृति के अन्तर्गत हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि इसके अध्ययन की पद्धति अ तरीके वैज्ञानिक है अथवा नहीं? समाजशास्त्र तुलनात्मक रूप से एक नया विज्ञान है। नया विज्ञान होने के समाजशास्त्र की प्रकृति के बारे में विवाद का होना नितान्त ही स्वाभाविक है। पिछली शताब्दियों में समाजशास्त्र में जो सबसे अधिक चर्चा का विषय बना, वह था इसकी प्रकृति के बारे में समाजशास्य की प्रकृति को लेकर तीन प्रकार की विचारधाराओं पर चर्चा हुई। (1) समाजशास्त्र विज्ञान है. (2) समाजशास्त्र कला है, तथा (3) समाजशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है। समाजशास्त्र की प्रकृति को समझे बिना

रामचरण कहानी (Ramcharan bhoot Preto ki kahani )

रामचरण कहानी बहुत पुरानी बात है गांव के बाहर एक प्रसिद्ध तालाब था जो काली शक्तियों और भूत प्रेतों के लिए प्रसिद्ध था बताया जाता है । कई साल पहले उस तालाब के स्थान पर एक विशालकाय महल हुआ करता था । लेकिन एक रात वह पूरा महल जमीन के अंदर धंस गया और वहां पर पानी ही पानी जमा हो गया और तब से वह एक तालाब की तरह दिखता है । जिसे लोग मलसागर के नाम से जानते हैं बताया जाता है कि वह जगह श्रापित हो चुकी है जहां पर सोने की मछली आज भी लोगों को दिखती है । राम चरण एक तांत्रिक था जिसकी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता था । एक ऐसा व्यक्ति था जो चीजों को देख परख कर ही विश्वास करता था वह भूतों पर विश्वास तो करता था लेकिन उसे इस बात पर विश्वास नहीं था कि मलसागर यानी उस तालाब में एक महाशक्तिशाली मछ ।ली और बहुत से भूत प्रेत हैं । उसकी कुछ दोस्तों ने उसे बोला कि तुम तो एक तांत्रिक हो तुम चाहो तो वहां के बारे में सच्चाई जान सकते हो रामचरण को भी यही लगा वह तुरंत अपने घर आता है और अपनी पत्नी को कहता है कि आज रात मैं यहां नहीं रहूंगा मैं आज रात मन सागर जा रहा हूं । यह सुनकर उसकी पत्नी खबर आ जाती है कि बिना वज

गुरु और वचन कहानी (Guru aur Vachan kahani)

गुरु और वचन लेखक - संदीप चौहान भारत एक ऐसा देश है, जहां पर जाति धर्म को बहुत मान्यता दी जाती है इसी तरह सालिक भी धर्म संकट में पड़ गया था । तो कहानी शुरू होती है, उस समय से जब सालिक केवल 15 साल का था वह केवल दूसरी पास था । अंग्रेजों के जमाने मे लोगों पर अत्याचार और अंग्रेजों की क्रूरता देखकर सालिक और भी आगे पढ़ना चाहता था । लेकिन वह कर भी क्या सकता था, गरीबी के कारण वह लाचार हो चुका था । लेकिन गांव में लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे । एक दिन सालिक के एक बात समझ में आई, कि हमारे देश में जाति और धर्म ही नहीं जादू टोना को भी बहुत माना जाता है । तो क्यों ना इसकी सच्चाई पता की जाए, तभी सालिक एक तांत्रिक के पास गया । जिनका नाम पंचम गुरु था । सालिक के कहने पर पंचम गुरु ने उसे अपना शिष्य मान लिया 2 साल तक उसने पंचम गुरु से शिक्षा प्राप्त की और बहुत सी जड़ी बूटियों के बारे में भी जानकारी हासिल की । सालिक को विश्वास हो गया था, कि हमारे देश में आज भी ऐसी ऐसी चीजें हैं जिसके बारे में विज्ञान भी पता नहीं कर पाया है । कम पढ़ा-लिखा होने के बाद भी वह बहुत बुद्धिमान था । एक दिन उसके गुरु पंचम ने उस

सिद्ध बाबा का मंदिर कहानी ( Siddh Baba ka mandir)

सिद्ध बाबा का मंदिर विषय - भूत प्रेतों की कहानी । पात्र - रचना, ज्योति, आकाश, गगन, सेवर, रविंद्र, तांत्रिक और उस्के कुछ साथी । चारों दोस्त अपने अपने काम से निपट कर गगन के घर पहुंचते हैं, और साथ में बैठकर चाय पीते हैं । रचना - यार गर्मियों का पूरा समय निकल गया लेकिन फिर भी काम के कारण हम कहीं घूमने नहीं जा पाए । ज्योति - तुमने बिल्कुल ठीक कहा क्यों ना कहीं घूमने चला जाए । आकाश - वेट वेट! लेकिन हमारे कंस्ट्रक्शन के काम का क्या होगा । ज्योति - यार कभी तो काम की बात बंद कर दिया करो । आकाश - हां क्योंकि तुम्हारा तो काम में मन नहीं लगता । ज्योति - इतने सालों से कमाने जा रहे हो तो बताओ कितने पैसे इकट्ठा किए तुमने । रचना - तुम दोनों फिर से लड़ाई मत करने लगना । गगन - ओके गाइस ! बहुत हुआ, अब मेरी बात सुनो रचना ने ठीक कहा हमें तो घूमने जाने का प्लान बनाना चाहिए । आकाश - यार मैं घूमने जाने के लिए मना नहीं कर रहा हूं लेकिन हमारे काम का क्या होगा । गगन - देख भाई काम तो होता रहेगा लेकिन शायद तुम्हें पता नहीं है की केवल हम दोनों ही घूमने नहीं जा रहा है हमारे साथ

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय Mahadevi Varma ka Jeevan Parichay

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय संक्षिप्त परिचय- छायावाद की चतुर्थ स्तम्भ के रूप में प्रसिद्ध महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को फर्रुखाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। इन्होंने आरम्भिक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की। वर्ष 1920 में प्रयाग से प्रथम श्रेणी में मिडिल उत्तीर्ण किया। सन् 1933 में प्रयाग विश्व विद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया। महादेवी जी ने प्रारम्भिक कविताएँ बृजभाषा में लिखी बाद में उन्होंने खड़ी बोली में काव्य सृजन किया। महादेवी वर्मा कवि के साथ-साथ कहानीकार, उपन्यासकार, रेखाचित्र संस्मरण आदि में भी उनकी साहित्यिक प्रतिभा को देखा जा सकता है। उनका कलाकार हृदय कवि होने के साथ-साथ चित्रकार भी था इसलिए उनकी कविताओं में चित्रों जैसी संरचना का आभास मिलता है। इनके काव्य संग्रह नीहार- 1930, रश्मि- 1932, नीरजा 1934 और सांध्यगीत- 1936 दीपशिखा 1942, सप्तपर्णा (अनुदित 1959 ) प्रथम आयाम 1974 आदि अन्य महत्वपूर्ण काव्य रचनाएँ हैं। अतीत के चलचित्र स्मृति की रेखाएँ और श्रृंखला की कड़ियाँ महत्वपूर्ण रेखाचित्र हैं। पथ के साथी, मेरा परिवार स्मृति चित्र आदि महत्वपूर्ण संस्मरण के अलावा निबंध संग्रह

भक्तिकाल : पृष्ठभूमि एवं प्रमुख कवि bhaktikal prasthbhoomi evam pramukh kavi

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भक्तिकाल : पृष्ठभूमि एवं प्रमुख कवि हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल भारतीय ज्ञान संपदा के संरक्षण और अपनी अस्मिता को बनाए रखने के लिए किए गए संघर्ष के लिए रेखांकनीय है। इस्लाम के प्रचार-प्रसार हेतु किए जा रहे सशस्त्र आक्रमणकारी विदेशी जब भारतवर्ष की राजशक्तियों को दमित कर सांस्कृतिक मानमूल्यों पर प्रचंड प्रहार कर रहे थे, तब समाज के मध्य से साधु-संतों ने समाज का नेतृत्व करने के लिए अपनी काव्यमयी वाणी का सदुपयोग किया। निर्गुण काव्य के रूप में आस्थामूल्क ईश्वरभक्ति समाज का दृढ़ कवच बनी तो सगुण-काव्य के केंद्र राम और कृष्ण की असुर संहारक छवि ने समाज को आक्रामक शक्तियों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की प्रेरणा दी। अनेक संतों ने रणक्षेत्रों में उतरकर प्रत्यक्ष संघर्ष भी किया किन्तु हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखकों-समीक्षकों ने भक्तिकाव्य के इस पक्ष की उपेक्षा की है और भक्तिकाल को हताश निराश समाज की भावाभिव्यक्ति के रूप में अंकित कर भ्रांतियाँ निर्मित की हैं। भक्ति-काव्य में आस्तिकता का प्रकाश, मानव मूल्यों की संचेतना और भारतीय शौर्य की संदीप्ति एक साथ प्रकट हुई है। युवा पीढ़ी को भक्ति

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नीला सियार कहानी Neela siyar kahani

नीला सियार एक बार एक भूखा सियार जंगल से निकलकर गांव की ओर चल पड़ा। जैसे ही • वह गांव के निकट पहुंचा, चारों ओर से कुत्तों ने उसे घेर लिया। उसने सोचा कि वापस जंगल की ओर भाग जाए, किन्तु अपने पीछे पड़े कुत्तों की भीड़ देखकर उसे यह विचार त्याग देना पड़ा। अब तो उसके सामने एक ही रास्ता था कि गांव में ही जाकर किसी घर में छिप जाए, अन्यथा ये कुत्ते उसे फाड़कर खा जाएंगे। मृत्यु को सामने देखकर बड़े-बड़े दिलवालों के पसीने छूट जाते हैं। जबकि सियार तो स्वभाव से ही कायर होता है। वह बेचारा गांव की ओर भागा। कुत्ते भी उसके पीछे-पीछे भाग रहे थे। अंधेरी रात में जिधर भी उसे रास्ता मिल रहा था, वह भागा जा रहा था। भागते- भागते वह एक धोबी के घर में जा घुसा। वहां पर नीले रंग से भरी हुई एक नांद रखी थी। सियार उसी में जा गिरा, जिससे वह नीले रंग में रंग गया। कुत्तों ने उसे इधर-उधर खोजा, किन्तु जब सियार कहीं भी नजर न आया तो वे निराश होकर चले गए। सियार नीले नांद से बाहर निकला तो ठंड के मारे उसका सारा शरीर कांप रहा था। थोड़ी देर तक वह भट्ठी में जल रही आग के पास बैठा रहा। सुबह जैसे ही सूर्य की किरणों में उसने