कबीर दास का जीवन परिचय ( Kabir Das Ka Jivan Parichay )


कबीर दास का जीवन परिचय

Kabir Das

कबीर दास हिन्दीन साहित्यग की निर्गुण काव्य धारा के महत्वमपूर्ण कवि है | कबीर का जन्म स्थान वाराणसी के "लहरतारा" स्थान माना गया है | इनका जन्म अधिकांश विद्वानों ने अलग अलग मत दिये है।

जन्म:संवत 1455 सन् 1398 ई.
मृत्यु: संवत 1551 सन् 1518 ई.

कबीर दास के माता पिता के बारे में सही साक्ष्य नही मिलते है लेकिन इनको "नीरू तथा नीमा" नामक दम्पति ने इनका पालन पोषण किया था आगे भी ये ही प्रसिद्ध हुए।
कुछ विद्वानों का मत है कि विधवा महिला अपने लोक लाज के भय से जन्म देते ही इन्हे त्याग दिया था नीरू तथा नीमा को ये तालाब के किनारे पड़े मिले थे और इन्हो‍ने इनका पालन पोषण किया।
कबीरदास मुसलमानी वातावरण में पोषित होने के बावजूद उनमें हिन्दून संस्कारों का विशिष्ट छाप थी।
कबीरदास का विवाह लोई नामक कन्याष से हुआ था इनके दो संतानें भी उत्पंन्नक हुई पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमली था। कबीरदास ने एक स्थापन पर अपने पुत्र का आवाहन करते हुए कहा है- ’’बूड़ा वंश कबीर का उपजा पुत्र कमाल’’ 

मृत्यु - कबीर दास ने अंधविश्वारस को आधार विहीन सिद्ध करने का प्रयत्न किया जो लोग कहते थे कि काशी में मरने से स्वार्ग में जाएगा इस अन्धरविश्वा स को तोड़ने के लिए काशी से जाकर कबीर दास ने मगहर में अपने प्राण त्यागे। और जनमानस में व्याधप्ता उस अन्धलविश्वाकस को आधार विहीन सिद्ध किया और काशी में मरने से स्व।र्ग और मगहर में मरने से नरक प्राप्त होगा।

कृतियां रचनाऐं - कबीरदास की वाणियों का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है जिनके तीन भाग हैा साखी, सबद, रमैनी, कबीर ग्रन्थािवली, कबीर वचनावली, सन्तक कबीर आदि कबरी की प्रसिद्ध रचनाएं सिखो के प्रसिद्ध ग्रन्थ् गुरू ग्रन्थह साहब में भी रचित है |

भाषा - कबीर जी की भाषा में पंजाबी, राजस्थापनी, अवधी, ब्रज, भाषा के प्रयाप्त शब्दी मिलते है। कबीर दास ने कथनी करनी और हिंसा का विरोध किया ’’
बकरी पत्तार खात है ताकी काढी खाल,
जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल’’
’’पत्थार पूजै हरि मिलै तो मै पूजूं पहाड़
या ते तो चाकी भली पीसा खाय संसार’’

साहित्यिक जीवन - कबीर प्रतिभा सम्प न्न व्यैक्ति थे। वे कवि, उपदेशक और संत थे कबीर ने किसी विघालय में शिक्षा ग्रहण नही की लेकिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरू की खोज की जो रामानन्दप जी सच्चेब गुरू के रूप में मिल गये।
भाग बडे रामानन्दम गुरू पाया । जनम-जनम का भरम गमाया ।।
अपने धुमक्क्ड़ जीवन में कबीर को अलग-अलग मत के लोगो से धर्मों एवं आचार-विचारों को मनन करने और कसौटी पर कसने का अवसर मिला।
पोथी पठि पठि जग मुवा पंडित भया न कोई । एकै आखिर पीव का पढै सो पंडित होई ।

रचनाएं - कबीर के शिष्य धर्मदास ने उनकी समस्त साखियों, रमैनियों एवं पदो को एकत्र किया है। काशी नगरी प्रचारिणी सभा ने कबीर ग्रंथावली नाम से कबीर का समस्ति साहित्य प्रकाशित किया है।
साखी – साखी शब्दं साक्षी का अशुद्ध रूप है। साखी एक तरह के दोहा छन्द है।
सबद – सबद की शब्दक का अपभ्रंश है संत कबीर के द्वारा कहा गया पद सबद कहलाया
उलटबासियां – ये कबीर द्वारा कहे गये कूट पद है। इनमें ब्रहाजीव, जगत और माया आदि के सम्बोधन में कहा गया है |
रमैनियां – यह शब्द रामयणी का अशुद्ध रूप है। दोहा चौपाई के मिश्रित रूप में कबीर ने कहा

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