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Showing posts with the label प्रेरक कहानियाँ

नीला सियार कहानी Neela siyar kahani

नीला सियार एक बार एक भूखा सियार जंगल से निकलकर गांव की ओर चल पड़ा। जैसे ही • वह गांव के निकट पहुंचा, चारों ओर से कुत्तों ने उसे घेर लिया। उसने सोचा कि वापस जंगल की ओर भाग जाए, किन्तु अपने पीछे पड़े कुत्तों की भीड़ देखकर उसे यह विचार त्याग देना पड़ा। अब तो उसके सामने एक ही रास्ता था कि गांव में ही जाकर किसी घर में छिप जाए, अन्यथा ये कुत्ते उसे फाड़कर खा जाएंगे। मृत्यु को सामने देखकर बड़े-बड़े दिलवालों के पसीने छूट जाते हैं। जबकि सियार तो स्वभाव से ही कायर होता है। वह बेचारा गांव की ओर भागा। कुत्ते भी उसके पीछे-पीछे भाग रहे थे। अंधेरी रात में जिधर भी उसे रास्ता मिल रहा था, वह भागा जा रहा था। भागते- भागते वह एक धोबी के घर में जा घुसा। वहां पर नीले रंग से भरी हुई एक नांद रखी थी। सियार उसी में जा गिरा, जिससे वह नीले रंग में रंग गया। कुत्तों ने उसे इधर-उधर खोजा, किन्तु जब सियार कहीं भी नजर न आया तो वे निराश होकर चले गए। सियार नीले नांद से बाहर निकला तो ठंड के मारे उसका सारा शरीर कांप रहा था। थोड़ी देर तक वह भट्ठी में जल रही आग के पास बैठा रहा। सुबह जैसे ही सूर्य की किरणों में उसने

बूढी काकी 2 (Budhi Kaki kahani 2)

Page 2 वह उकड़ूँ बैठकर सरकते हुए आंगन में आईं । परन्तु हाय दुर्भाग्य! अभिलाषा ने अपने पुराने स्वभाव के अनुसार समय की मिथ्या कल्पना की थी । मेहमान-मंडली अभी बैठी हुई थी । कोई खाकर उंगलियाँ चाटता था, कोई तिरछे नेत्रों से देखता था कि और लोग अभी खा रहे हैं या नहीं । कोई इस चिंता में था कि पत्तल पर पूड़ियाँ छूटी जाती हैं किसी तरह इन्हें भीतर रख लेता । कोई दही खाकर चटकारता था, परन्तु दूसरा दोना मांगते संकोच करता था कि इतने में बूढ़ी काकी रेंगती हुई उनके बीच में आ पहुँची । कई आदमी चौंककर उठ खड़े हुए । पुकारने लगे-- अरे, यह बुढ़िया कौन है? यहाँ कहाँ से आ गई? देखो, किसी को छू न दे । पंडित बुद्धिराम काकी को देखते ही क्रोध से तिलमिला गए । पूड़ियों का थाल लिए खड़े थे । थाल को ज़मीन पर पटक दिया और जिस प्रकार निर्दयी महाजन अपने किसी बेइमान और भगोड़े कर्ज़दार को देखते ही उसका टेंटुआ पकड़ लेता है उसी तरह लपक कर उन्होंने काकी के दोनों हाथ पकड़े और घसीटते हुए लाकर उन्हें अंधेरी कोठरी में धम से पटक दिया । आशारूपी वटिका लू के एक झोंके में विनष्ट हो गई । मेहमानों ने भोजन किया । घरवालों ने भ

आखरी शिक्षा कहानी (aakhari siksha kahani )

आखरी शिक्षा सुबह-सुबह अरविंद अपनी साइकल खूब रगड़ रगड़ कर धो रहा था मानो आज उसे नया ही कर डालेगा । तभी अरविंद की मां बाहर निकल कर आई और बोली कि आज ऐसा क्या हो गया, जो साइकिल को इतना धो रहा है । जवाब में अरविंद कहता है - आज मेरे स्कूल में साइकिल रेस है और मैं उस में प्रथम आना चाहता हूं । इसलिए मैं इसे अच्छे से साफ करके और पूरी तरह जांच कर रहा हूं । कहीं यह मुझे रास्ते में ही धोखा तो ना दे दे । अरविंद की मां कहती है कि नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा । तुम जरूर प्रथम आओगे, अरविंद इस समय केवल 14 साल का होता है । वह तैयार होकर अपनी साइकिल पर बैठता है, और स्कूल की ओर निकल पड़ता है । लगभग दिन के 11:00 बज रहे हैं । अरविंद के टीचर उसे स्कूल के गेट के बाहर ही मिल जाते हैं । उसे कहते हैं कि - अरविंद ! अच्छा हुआ तुम बिल्कुल सही टाइम पर आ गए, प्रतियोगिता शुरू हुई होने वाली है । अरविंद को ज्यादा सोचने का समय नहीं मिल पाता और वह तुरंत ही अपने बाकी दोस्तों के पास साइकिल लेकर जाता है । बाकी लोग भी अपनी अपनी साइकिल लेकर मैदान की तरफ कतार में खड़े हो जाते हैं । तभी एक तेज आवाज में सीटी बजती है, और सभी प्रत

चरित्र कहानी (charitra prernadayak kahani)

चरित्र लेखक - संदीप चौहान लगभग सुबह के 10:00 बज रहे होते हैं संदीप आज अपने स्कूल जल्दी पहुंच जाता है । तभी टीचर उन्हें बुलाती है और कहती है, कि तुम्हारे बारे में आजकल बहुत चर्चा हो रही है । लोगों से तुम्हें क्या लेना देना है ? लोगों के मामले में टांग मत अडाया करो । मैंने सुना था, तुमने कल एक महिला पर हाथ उठा दिया था । वैसे तो तुम हमेशा धर्म-कर्म की बातें करते हो, कल कहां गया था तुम्हारा धर्म संदीप चुपचाप खड़ा रहा । टीचर - तुम भले ही कितने भी अच्छे काम क्यों ना करो, लेकिन तुम्हारे काम करने के तरीके गलत है । यदि उस महिला की गलती थी भी । तो तुम्हें उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था । संदीप - मैं जो भी करता हूं मुझे उस पर पछतावा नहीं होता, और मुझे यकीन है मैं आगे भी जो करूंगा उस पर भी नहीं होगा । टीचर - हर काम को करने का एक तरीका होता है, लेकिन तुम्हारे तरीके लोगों को तुम्हारा दुश्मन बना देंगे । संदीप - सॉरी मैम वैसे भी मुझे दोस्त समझता ही कौन है । टीचर - अच्छा ! तुम मुझे एक बात बताओ हर किसी की लड़ाई में तुम टांग अड़ा देते हो और वही काम करते हो  ।जिस काम को करने के लिए तुम लो

दुर्व्यसन बनाम असफलता durvyasan banam asafalta ( Addiction vs failure )

दुर्व्यसन बनाम असफलता नयन 12वीं कक्षा के विज्ञान वर्ग का छात्र था । पिछली कक्षाओं में वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था, 11वीं कक्षा में वह विद्यालय का टॉपर छात्र था, परंतु बारहवीं कक्षा के अध्ययनरत रहते हुए उसका कार्य व व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आ चुका था, अब वह अक्सर थका-थका सा चिंतित और सुस्त नजर आने लगा उसका मिलनसार वहां से मुख स्वभाव क्रोधी और चिड़चिड़ापन में तब्दील हो चुका था । दोनों सामयिक जांचों में भी वह अन्य विद्यार्थियों से बहुत अधिक पिछड़ गया था । नयन को रसायन विज्ञान के अध्यापक ने भी नयन से इसके बारे में अनेक बार पूछा परंतु वह मौन ही रहा था । एक दिन रसायन विज्ञान के अध्यापक श्री प्रवीण जी को नयन की बहन 'पलक' मिल गई वह शहर के एक महाविद्यालय में एम.एम.सी. (प्राणी शास्त्र) फाइनल की छात्रा थी गुरुजी ने उसे बहन के बारे में सब कुछ बताया । गुरुजी की बात सुनकर पलक बोली - पिताजी व्यापार की वजह से अक्सर घर से बाहर रहते हैं, मैं शहर से महीने भर बाद आती हूं, इन दिनों नयन कुसंगति का शिकार बना हुआ है । स्कूल समय के पश्चात वह अक्सर गांव के बदमाश छोकरो के साथ मटरगश

बूढी काकी (Budhi Kaki kahani)

बूढी काकी जिह्वा-स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने का, रोने के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा ही । समस्त इन्द्रियाँ, नेत्र, हाथ और पैर जवाब दे चुके थे । पृथ्वी पर पड़ी रहतीं और घर वाले कोई बात उनकी इच्छा के प्रतिकूल करते, भोजन का समय टल जाता या उसका परिमाण पूर्ण न होता अथवा बाज़ार से कोई वस्तु आती और न मिलती तो ये रोने लगती थीं । उनका रोना-सिसकना साधारण रोना न था, वे गला फाड़-फाड़कर रोती थीं । उनके पतिदेव को स्वर्ग सिधारे कालांतर हो चुका था । बेटे तरुण हो-होकर चल बसे थे । अब एक भतीजे के अलावा और कोई न था । उसी भतीजे के नाम उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति लिख दी । भतीजे ने सारी सम्पत्ति लिखाते समय ख़ूब लम्बे-चौड़े वादे किए, किन्तु वे सब वादे केवल कुली-डिपो के दलालों के दिखाए हुए सब्ज़बाग थे । यद्यपि उस सम्पत्ति की वार्षिक आय डेढ़-दो सौ रुपए से कम न थी तथापि बूढ़ी काकी को पेट भर भोजन भी कठिनाई से मिलता था । इसमें उनके भतीजे पंडित बुद्धिराम का अपराध था अथवा उनकी अर्धांगिनी श्रीमती रूपा का, इसका निर्णय करना सहज नहीं । बुद्धिराम स्वभाव के सज्जन थे, किंतु