Posts

Showing posts with the label सच्ची कहानियाँ

रामचरण कहानी (Ramcharan bhoot Preto ki kahani )

रामचरण कहानी बहुत पुरानी बात है गांव के बाहर एक प्रसिद्ध तालाब था जो काली शक्तियों और भूत प्रेतों के लिए प्रसिद्ध था बताया जाता है । कई साल पहले उस तालाब के स्थान पर एक विशालकाय महल हुआ करता था । लेकिन एक रात वह पूरा महल जमीन के अंदर धंस गया और वहां पर पानी ही पानी जमा हो गया और तब से वह एक तालाब की तरह दिखता है । जिसे लोग मलसागर के नाम से जानते हैं बताया जाता है कि वह जगह श्रापित हो चुकी है जहां पर सोने की मछली आज भी लोगों को दिखती है । राम चरण एक तांत्रिक था जिसकी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता था । एक ऐसा व्यक्ति था जो चीजों को देख परख कर ही विश्वास करता था वह भूतों पर विश्वास तो करता था लेकिन उसे इस बात पर विश्वास नहीं था कि मलसागर यानी उस तालाब में एक महाशक्तिशाली मछ ।ली और बहुत से भूत प्रेत हैं । उसकी कुछ दोस्तों ने उसे बोला कि तुम तो एक तांत्रिक हो तुम चाहो तो वहां के बारे में सच्चाई जान सकते हो रामचरण को भी यही लगा वह तुरंत अपने घर आता है और अपनी पत्नी को कहता है कि आज रात मैं यहां नहीं रहूंगा मैं आज रात मन सागर जा रहा हूं । यह सुनकर उसकी पत्नी खबर आ जाती है कि बिना वज

गुरु और वचन कहानी (Guru aur Vachan kahani)

गुरु और वचन लेखक - संदीप चौहान भारत एक ऐसा देश है, जहां पर जाति धर्म को बहुत मान्यता दी जाती है इसी तरह सालिक भी धर्म संकट में पड़ गया था । तो कहानी शुरू होती है, उस समय से जब सालिक केवल 15 साल का था वह केवल दूसरी पास था । अंग्रेजों के जमाने मे लोगों पर अत्याचार और अंग्रेजों की क्रूरता देखकर सालिक और भी आगे पढ़ना चाहता था । लेकिन वह कर भी क्या सकता था, गरीबी के कारण वह लाचार हो चुका था । लेकिन गांव में लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे । एक दिन सालिक के एक बात समझ में आई, कि हमारे देश में जाति और धर्म ही नहीं जादू टोना को भी बहुत माना जाता है । तो क्यों ना इसकी सच्चाई पता की जाए, तभी सालिक एक तांत्रिक के पास गया । जिनका नाम पंचम गुरु था । सालिक के कहने पर पंचम गुरु ने उसे अपना शिष्य मान लिया 2 साल तक उसने पंचम गुरु से शिक्षा प्राप्त की और बहुत सी जड़ी बूटियों के बारे में भी जानकारी हासिल की । सालिक को विश्वास हो गया था, कि हमारे देश में आज भी ऐसी ऐसी चीजें हैं जिसके बारे में विज्ञान भी पता नहीं कर पाया है । कम पढ़ा-लिखा होने के बाद भी वह बहुत बुद्धिमान था । एक दिन उसके गुरु पंचम ने उस

ढोंगी साधु कहानी ( dhongi sadhu kahani )

ढोंगी साधु साधु होने का ढोंग इस संसार में अनेक प्रकार के लोग करते हैं लेकिन बदनाम हो जाते हैं असली साधु । साधु दो प्रकार के होते हैं एक तो तन का साधु और दूजा मन का साधु जो लोग तन के साधु होते हैं उन्होंने तो आजकल इसे एक व्यापार सा बना लिया है । जोगी का चोला धारण करके रुपए कमाने का अच्छा व सीधा सा व्यापार , बड़ा लंबा चौड़ा व्यापार फैलाते हैं और यह व्यापार ईश्वर के नाम पर चंदा इकट्ठा करना है । जिसमें इन्हें बिना श्रम के ही पेट पूजा की सामग्री उपलब्ध हो जाती है । इस प्रकार ढोंगी साधु समाज में एक बोझ की तरह कार्य करते हैं ना तो वे स्वयं कुछ कमाते हैं बल्कि दूसरों की कमाई हुई संपत्ति को भी नष्ट कर देते हैं । फिर भी दानवीर लोग पुण्य के चक्कर में पड़कर और भी दान करते जाते हैं । क्योंकि यह बेचारे उनकी वेशभूषा को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं ढोंगी साधु ऐसी वेशभूषा बनाकर आते हैं मानो सतयुग के जोगी कलयुग में बसे हो । परंतु ढोंगी साधु ऐसा करके लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाते हैं वह उनमें कपट व द्वेष की भावना पाई जाती है । वह ऐसे लोगों को ही ढोंगी साधु कहा जाता है अब बात आती

Naka 1984 Kahani

नाका 1984 चारों तरफ लोगों के चीखने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी जैसे मोहल्ले में किसी की शादी हो लेकिन वह शादियों की आवाज नहीं थी लोगों के मारने और काटने की आवाज थी रमेश और उसका बड़ा भाई अपने घर के भीतर चुपचाप बैठे थे और रमेश की मां उन दोनों के लिए खाना बना रही थी रमेश का मन अंदर ही अंदर खुद को खाए जा रहा था वह सोच रहा था कि आने वाले समय में क्या होने वाला है तभी उसका बड़ा भाई कहता है । कर्फ्यू खुल गया है जल्दी चलो । रमेश - ठीक है चलता हूं । रमेश की मां - संभल कर जाना और हो सके तो नाका के सामने से मत जाना । रमेश - ठीक है । रमेश अपनी छोटी सी किराना दुकान से एक बोरा निकाल कर लाता है और अपने बड़े भाई के साथ बाइक में घर से निकल पड़ता है । कर्फ्यू केवल 2 घंटे के लिए खुला था और चारों तरफ पुलिस का पहरा । कर्फ्यू के दौरान घूमने वाले व्यक्ति को तुरंत गोली मारने का आदेश आर्मी को दिया गया था । रमेश और चुन्नी बड़ी तेजी से मार्केट की ओर जा रहे थे तभी उन्हें एक दुकान में दरवाजा खुला मिला । वहां पहुंचने के बाद । चुन्नी - यार रमेश जल्दी-जल्दी सामान ले लो जहां से जल्दी निक

जादूगरनी आशा ( jadugarni Asha )

जादूगरनी आशा सन 1970 की बात है मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में मनोहर नाम का व्यक्ति रहता था । मनोहर अपनी पत्नी के साथ विचार बना कर गंगा नदी नहाने गया । उस समय उसकी कोई औलाद नहीं थी । गंगा नदी में नहाते नहाते, एक युवती की उस पर नजर पड़ी । मनोहर बहुत ही सुंदर और युवा था । उस युवती ने जब मनोहर को देखा तो वह उसे देखकर मोहित हो चुकी थी । वह बंगाल की एक बहुत बड़ी जादूगरनी थी । लेकिन जब युवती ने देखा कि मनोहर की तो शादी हो चुकी है । तो गंगा नदी के तट पर उसने मनोहर को अपने जादू से गायब कर लिया, और गायब करने के बाद अपने साथ बंगाल ले गई । मनोहर ने कई बार उस जादूगरनी से पूछा कि तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो । जादूगरनी ने उत्तर दिया कि मैं आपसे प्यार करने लगी हूं । इसीलिए मैं आपको अपने साथ बंगाल ले आई मनोहर कहता है लेकिन मेरी तो शादी हो चुकी है । और मेरी पत्नी पेट से है मुझे कृपया कर वापस पहुंचा दो । जादूगरनी साफ इंकार कर देती है, और मनोहर को रात में इंसान और दिन में मक्खी बनाकर कैद करके रखती है । इस तरह का सिलसिला लगभग 4 सालों तक चलता रहता है । मनोहर को समझ में आ जाता है,

चरित्र कहानी (charitra prernadayak kahani)

चरित्र लेखक - संदीप चौहान लगभग सुबह के 10:00 बज रहे होते हैं संदीप आज अपने स्कूल जल्दी पहुंच जाता है । तभी टीचर उन्हें बुलाती है और कहती है, कि तुम्हारे बारे में आजकल बहुत चर्चा हो रही है । लोगों से तुम्हें क्या लेना देना है ? लोगों के मामले में टांग मत अडाया करो । मैंने सुना था, तुमने कल एक महिला पर हाथ उठा दिया था । वैसे तो तुम हमेशा धर्म-कर्म की बातें करते हो, कल कहां गया था तुम्हारा धर्म संदीप चुपचाप खड़ा रहा । टीचर - तुम भले ही कितने भी अच्छे काम क्यों ना करो, लेकिन तुम्हारे काम करने के तरीके गलत है । यदि उस महिला की गलती थी भी । तो तुम्हें उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था । संदीप - मैं जो भी करता हूं मुझे उस पर पछतावा नहीं होता, और मुझे यकीन है मैं आगे भी जो करूंगा उस पर भी नहीं होगा । टीचर - हर काम को करने का एक तरीका होता है, लेकिन तुम्हारे तरीके लोगों को तुम्हारा दुश्मन बना देंगे । संदीप - सॉरी मैम वैसे भी मुझे दोस्त समझता ही कौन है । टीचर - अच्छा ! तुम मुझे एक बात बताओ हर किसी की लड़ाई में तुम टांग अड़ा देते हो और वही काम करते हो  ।जिस काम को करने के लिए तुम लो

अजगर दादर मंडला ग्राम - ककैया (Azgar Ajgar Dadar mandla)

Image
अजगर दादर दोस्तों संसार में बहुत से स्थान अजीबो - गरीब है, और आज भी हम एसे ही एक इलाके के बारे मे बात करेंगे, जहाँ आप भी एक बार जरूर जाना चाहेंगे | दोस्तो ये जगह है मध्य प्रदेश के मण्डला जिले मे , जहां ककैया नामक ग्राम से 3 km दूर है उस स्थान का नाम है अजगर दादर , यह क्षेत्र मंडला जिले के बिछिया तहसील के अंतर्गत आता है जहाँ भारी मात्रा मे अजगर पाए जाते है । माना जाता है कि इस क्षेत्र मे लगभग 100 किलो वजन और 10 फुट लम्बे अजगर पाए जाते है यह क्षेत्र 2 km के दायरे मे फैला हुआ है जहाँ इंसानो को फूक - फूक कर कदम रखना पड़ता है वर्तमान मे यह स्थान लोगों के घूमने हेतु एक पर्यटन स्थल बन गया है । लेकिन अभी तक कोई भी इस बात का पता नही लगा पाया है कि यहाँ इतनी भारी मात्रा में अजगर क्यूं पाए जाते है वैसे तो दोस्तों अजगर सांपो की अपेक्षा बहुत कम खतरनाक होते हैं क्यूंकि ये इंसानो पर जल्दि हमला नही करते हैं लेकिन अगर इनका आकार बडा़ हो तो फिर डरना जरूरी है वैसे हम आप सभी को बता दें कि यह क्षेत्र कान्हा किशली khanha kisli    जो कि हमारा राष्ट्रीय पर्यटन स्थल है । यह काफी प्रसिद्ध भी

भ्रमर गीत सार उद्धव प्रसंग Bhramar geet saar uddhav prasang

भ्रमर गीत भ्रमर गीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को बर्ज संदेस लेकर भेजा जाता है और उद्धव जो हैं योग और ब्रह्म के ज्ञाता हैं उनका प्रेम से दूर दूर का कोई सरोकार नहीं है। जब गोपियाँ व्याकुल होकर उद्धव से कृष्ण के बारे में बात करती हैं और उनके बारे में जानने को उत्सुक होती हैं तो वे निराकार ब्रह्म और योग की बातें करने लगते हैं तो खीजी हुई गोपियाँ उन्हें काले भँवरे की उपमा देती हैं। बस इन्हीं करीब १०० से अधिक पदों का संकलन भ्रमरगीत या उद्धव-संदेश कहलाया जाता है। कृष्ण जब गुरु संदीपन के यहाँ ज्ञानाजर्न के लिये गए थे तब उन्हें बर्ज की याद सताती थी। वहाँ उनका एक ही मित्र था उद्धव, वह सदैव रीत-नीति की, निर्गुन ब्रह्म और योग की बातें करता था। तो उन्हें चिन्ता हुई कि यह संसार मात्र विरिक्तयुक्त निर्गुन ब्रह्म से तो चलेगा नहीं, इसके लिये विरह और प्रेम की भी आवश्यकता है। और अपने इस मित्र से वे उकताने लगे थे कि यह सदैव कहता है, कौन माता, कौन पिता, कौन सखा, कौन बंधु। वे सोचते इसका सत्य कितना अपूर्ण और भ्रामक है। भला कहाँ यशोदा और नंद जैसे माता-पिता ह

डॉ. भीमराव अंबेडकर ( Bheemaraav ambedakar sanvidhaan ke lekhak )

डॉ. भीमराव अंबेडकर एक मेधावी युवक अमेरिका में इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त करके, बैरिस्टर की डिग्री लेकर भारत आया | उसने मुंबई हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की, उसकी वैधिक प्रखंडता का लोहा तो सभी ने मान लिया, उसे बड़े-बड़े मुकदमे मिले, फीस की मोटी मोटी रकम भी मिली, किंतु नहीं मिला उसे किराए का मकान | किंतु इस युवक को इस देश की धरती से प्यार था, यहां की संस्कृति से प्यार था | और यह सब रहते हुए भी यहां रहा यह युवक थे-   डॉक्टर अंबेडकर ,  जिन्हें अर्थशास्त्र व कानून के प्रकांड विद्वान, भारत के संविधान निर्माता, हरिजनों के प्रमुख नेता, एक सच्चे समाज सुधारक और महान लेखक के रूप में स्मरण किया जाता है | डॉ अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को, वर्तमान मध्य प्रदेश तथा तत्कालीन इंदौर रियासत में,  मऊ नामक स्थान पर एक महान सैनिक पिता के घर हुआ था | भारत में अपनी शिक्षा समाप्त कर वे विदेश गए, वहां उन्होंने खूब मन लगाकर पढ़ाई की, वे घंटों लाइब्रेरी में मन लगाकर पुस्तकें पढ़ा करते थे | पुस्तकालय के अधिकारी भी उनकी इस जिज्ञासु वृत्ति व ज्ञान पिपासा को देखकर आश्चर्य करते थे, अंत में वह बैरिस्टर बनकर भार