लक्ष्य निर्धारण ( Lakshya nirdharan )

लक्ष्य निर्धारण

एक जटिल प्रक्रिया है, यह उद्यमी सफलता का आधार है, उद्यमी के द्वारा संपन्न समस्त क्रियाओं का संचालन निर्धारित लक्ष्य अनुसार किया जाता है ।
1. लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा - उद्यमियों को उद्यमिता की ओर प्रेरित करने वाला प्रमुख तत्व लाभ होता है, उद्यमी व्यवसाय इसलिए करता है क्योंकि उसे रोजगार के साथ-साथ निरंतर आए भी प्राप्त करना है । जिस प्रकार से चलने के लिए पैर की आवश्यकता होती है, इंजन को चलाने के लिए इंधन की आवश्यकता होती है या शक्ति की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार उद्यमियों को उद्यमिता की ओर अग्रसर करने के लिए लाभ की आवश्यकता होती है । वास्तव में उद्यमिता और लाभ दोनों का चोली दामन का संबंध है, इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि उद्यमियों को लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा लाभ से मिलती है । उद्यमियों के द्वारा लाभ आर्नज की चाह में भी उद्यमी लक्ष्यों का निर्धारण करता है ।

2. लक्ष्यों का निर्धारण - उद्यमी जैसे ही उद्यम की स्थापना के लिए अग्रसर होता है, वह आरंभ में ही अपने व्यवसाय के लक्ष्यों को निर्धारित करता है । व्यवसायिक जगत की भीषण प्रतियोगिताओं उत्पादन के बढ़ते हुए परिणाम नित नई तकनीकों के विकास तथा श्रम संगठनों के प्रभाव के कारण लक्ष्यों के निर्धारण का कार्य अत्यंत जटिल होता जा रहा है, लक्ष्यों का निर्धारण निम्नानुसार किया जाता है ।
A संगठन के उद्देश्य का निर्धारण - लक्ष्य निर्धारण के अंतर्गत उद्यमी के द्वारा सर्वप्रथम संगठन के समान उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है, यह उद्देश्य लक्ष्य व्यापक संकुचित सामान्य दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन होना चाहिए ।
B समय अनुसार उद्देश्यों का निर्धारण - संस्था के समान लक्ष्य का निर्धारण करने के बाद उन्हें समय अनुसार विभाजित किया जाता है ।
C उद्देश्यों का विभाजन - इसके अंतर्गत उद्यमी संगठन के उद्देश्य को इकाई बार व्यक्ति बार तथा कार्मिक आधार पर उद्देश्यों को विभाजित करता है ।
D साम्यिक गोष्ठियाँ - लक्ष्यों के निर्धारण की सफलता के लिए यह आवश्यक है, कि समय-समय पर वरिष्ठ एवं अधीनस्थों के मध्य गोष्ठियों का आयोजन किया जाए ।

3. चुनौतियां - व्यवसायिक लक्ष्यों का निर्धारण करते समय उद्यमियों को अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना होता है । यह दो प्रकार की होती है -
A आंतरिक चुनौतियां - इसके अंतर्गत दोस्तों लक्ष्य निर्धारण दोषपूर्ण नियोजन दोषपूर्ण प्रबंध दोषपूर्ण वस्तु अपर्याप्त उत्पादन अति उत्पादन वित्त का अभाव श्रमिकों का अभाव प्रशिक्षण की कमी आदि को शामिल किया जाता है ।
B बाह्य चुनौतियां - इसके अंतर्गत आधारभूत अधोसंरचना का अभाव जैसे पानी बिजली शक्ति परिवहन दूरसंचार सुविधा बैंकों वित्तीय संस्थाओं, इत्यादि का आधार विथ की पर्याप्तता कच्ची सामग्री की निरंतर आपूर्ति के अभाव आदि को शामिल किया जाता है ।

4. महत्व - लक्ष्य का निर्धारण करना उद्यमी का प्राथमिक उत्तरदायित्व होता है, लक्ष्य निर्धारण व्यावसायिक उपक्रम की सफलता तथा सभी प्रबंध की क्रियाओं का आधार होता है । संगठन के सभी प्रयास लक्ष्यों से ही संबंधित होते हैं ।

लक्ष्य निर्धारण के निम्नांकित लाभ होते हैं -

  1. लक्ष्य निर्धारण निर्णय लेने में सहायता प्रदान करता है ।
  2. लक्ष्य निर्धारण दीर्घकालीन की योजना हेतु आधार प्रस्तुत करता है ।
  3. लक्ष्य निर्धारण व्यवसाय में कार्यरत कर्मचारियों के कार्य को संपादन हेतु निश्चित आधार प्रदान करता है ।
  4. लक्ष्य निर्धारण से व्यावसायिक उपक्रम के कार्य करने की तकनीक या तरीके मं सुधार लाता है ।
  5. लक्ष्य निर्धारण से संगठन में अस्पष्टता कम होती है ।
  6. लक्ष्य निर्धारण चुनौती सीखने तथा नए अनुभवों द्वारा व्यक्तिगत विकास में सहायक होते हैं ।

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