कछुआ धर्म ( kachhua dharam )


कछुआ धरम

कछुआ धर्म नामक निबंध में अभिव्यक्त भाव 
जिस प्रकार कछुआ अपने सामने आई समस्या का सामना ना कर अपने अंगों को समेट  कर छुपा लेता है और यह समझता है कि वह उससे बच गया है लेखक ने कछुए की इसी स्वभाव को कछुआ धर्म कहां है जैसे हम सामने आने वाली समस्या को बिना समझे उस से मुकाबला करने के बजाय अपने आपको उससे दूर कर लेते हैं बचाव कर लेते हैं चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने कछुआ निबंध के माध्यम से हिंदुस्तानी सभ्यता को नए  विचारणीय आयाम प्रदान किए गुलेरी जी का कहना है जब पुर्तगाली हमारे यहां व्यापार करने के उद्देश्य से आए तो उन्होंने व्यापार के साथ-साथ धर्म का प्रचार भी सोचा इसके लिए उन्होंने साजिश रची एक पादरी ने यह तक कह दिया कि मैंने एक कुएं में  अभ कच्छ डाल दिया है सैकड़ों लोगों ने इसे सुना पर किसी ने नहीं सोचा कि अज्ञात पाप पाप नहीं होता जो हुआ अनजाने में हुआ अनजाने में हुआ किसी कुल्ला उल्टी व अपना घड़ा  फोड़ने का विचार नहीं किया बल्कि पूरा गांव ईसाई हो गया इसी प्रकार लेखक कहता है कि कछुआ अपनी ढाल नुमा पीठ के नीचे अपने अंगों को छुपा कर अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है जबकि वह सुरक्षित नहीं होता है भारतीय संस्कृति को भी कछुआ व्यवहार  पलायन से बचना होगा हमारी संस्कृति को कछुआ पन कछुआ भगवान की तरह मंद रोचक की  मथनी चलाकर समुद्र से रत्न निकालने के लिए है उसका कछुआ पन कवच के भीतर और भी सिकुड़ जाने के लिए नहीं है
कछुआ धर्म की विषय वस्तु
 गुलेरी जी ने अपने निबंध में आर्यों तथा अनार्यों  के संबंध में वर्णन करते हुए कहा है कि पुराने आर्यों की अपने भाई अनार्यों से अनबन हो गई असुर असुरिया रहना चाहते थे और आर्य सत्य सिंधुओं को आर्यावर्त बनाना चाहते थे विष्णु ने अग्नि और यज्ञ पात्र तथा अरणी रखने के लिए तीन गुड़िया बनाई उनकी पत्नी ने उनके परियों की शूल को धृत से आंझ दिया था उखल मुसल और  सोम कूटने के पत्थरों तक को साथ लेकर यह कारवों मुज्वत हिंदू कुश के एकमात्र  ढर्रे बैरत्तर  से होकर सिंधु घाटी की उत्तरा पीछे से स्वांग भ्राज, अंभारी ,वंभारी , हस्त- सुहस्त,कृश्न मरक मारते  चले आते थे वज्र की मार से पिछली गाड़ी आधी टूट गई पर तीन लाबी डल  धरने वाले विष्णु ने पीछे मुड़कर नहीं देखा ना उसका सामना किया पित्र भूमि अपने भाइयों के पास छोड़कर आए जहां-जहां रास्ते में टिके थे वहां वहां युग खड़े हो गए यहां की सुजल सुफला सस्य श्यामला भूमि में बुलबुले चेक ने लगी पर ईरान के अंगूरों और फूलों  का यानी मजबूत पहाड़ की सोम लता का चस्का पड़ा हुआ था आजकल के मेवा बेचने वाले पेशावरियों की तरह कोई सरहदी यहां पर भी सोम बेचने चले आते थे कोई आर्य सीमा प्रांत पर भी जा कर ले आया करते थे कहते हैं कि गाै की एक कला में सोम  बेच दो सोम राजा का दाम इससे कहीं अधिक है

कछुआ धर्म निबंध का सार
कछुआ धर्म निबंध में आर्य तथा अनार्यों के संबंध में वर्णन किया गया है लेखक कहता है कि आर्य जन आई हुई समस्या का सामना ना कर उससे बचाव के विषय में सोचते थे कि वे किस प्रकार समस्या से  बच जाएं जिस प्रकार कछुआ समस्या का सामना न कर अपने अंगों को छुपा लेता है वह मानता है कि वह समस्या से बच गया है उसी प्रकार हिंदुस्तानी सभ्यता भी कछुआ धर्म है

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