मृत भाषा कहानी ( mrat bhasha kahani )

मृत भाषा कहानी
नीरज और उसके सभी दोस्त नीरज के जन्मदिन पर पार्टी मना रहे थे ।

विशाखा - यार नीरज ! हम सभी दोस्तों ने मिलकर आज खूब मजे किए ।

अरुण - यार यह भी कोई मजा है नीरज की गर्लफ्रेंड तो है लेकिन मेरा क्या होगा ।

नीरज - कैसी बात कर रहे हो श्रद्धा और हम केवल दोस्त है ।

श्रद्धा - सच में क्या हम केवल दोस्त हैं ?

अरुण - हां अब जवाब दे

विशाखा - उस बेचारे को इतना भी परेशान ना करो कि वह ब्रेकअप कर ले ।

नीरज - अब इतना तो चलता है ।

विशाखा - अरे इन बातों को छोड़कर अपने कॉलेज के बारे में भी सोचो अगर इस बार हमने रिसर्च का काम पूरा नहीं किया तो हम तो फेल हो जाएंगे समझो ।

अरुण - फिक्र मत करो वैसे भी प्रिंसिपल सर से आज नहीं तो कल शाम ना तो होने ही वाला है उस हिटलर को भी देख लेंगे ।

नीरज - ठीक है दोस्तों रात बहुत हो गई है अपन चारों को सो जाना चाहिए सुबह जल्दी कॉलेज भी तो जाना है ।

श्रद्धा - ठीक है विशाखा तुम मेरे साथ चलो ।

विशाखा - हां चलो ।

नीरज - चलो बढ़िया है वह तो कल ही पता चलेगा कि हिटलर क्या कहने वाला है ।

रात बीत जाती है और सुबह सभी दोस्त तैयार होने लगते हैं ।

अरुण - नीरज ! यार मेरा बेल्ट नहीं मिल रहा है ।

नीरज - बेल्ट लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी वैसे भी आज प्रिंसिपल अपनी पैंट उतारने ही वाला है ।

तभी श्रद्धा और विशाखा दोनों तैयार होकर आ जाते हैं ।

विशाखा - चलो गाइस हमें बहुत लेट हो गया है ।

नीरज - भाई अरुण यह तेरा बेल्ट मैं गाड़ी लेकर आता हूं ।

चारों दोस्त गाड़ी में बैठकर कॉलेज की तरफ निकल जाते हैं गाड़ी में बैठे बैठे बात करते हैं ।

श्रद्धा - अच्छा यह बताओ क्या लगता है प्रिंसिपल सर आज कौन सा प्रोजेक्ट देने वाले हैं ।

अरुण - पुराने जमाने का आदमी और क्या देगा ? देगा कोई पुरानी चीज ।

श्रद्धा - बिल्कुल ठीक बोला ।

नीरज - जो भी हो इस साल लॉकडाउन के चक्कर में पढ़ाई भी नहीं हुई कम से कम प्रोजेक्ट के बहाने घूमने को तो मिलेगा ।

विशाखा - हां यार मैं तो सोच रही हूं कि अपन सब को कहीं लंबी यात्रा पर चलना चाहिए ।

अरुण - अपने कॉलेज का रिकॉर्ड रहा है कभी भी कोई सरल चीज बच्चों को नहीं दी गई है ।

श्रद्धा - तुम बच्चे कब से बन गए ।

अरुण - बड़ा तो हो गया हूं तब भी तो लोग ध्यान नहीं देते ।

विशाखा अरुण को देख कर हंसने लगती है और तब तक गाड़ी कॉलेज के सामने पहुंच जाती है ।

विशाखा अरुण और श्रद्धा प्रिंसिपल के ऑफिस के बाहर बैठे होते हैं ।

नीरज - तुम सब यहीं रुको मैं सर से बात करके प्रोजेक्ट लेकर आता हूं ।

नीरज इतना कहकर प्रिंसिपल सर के ऑफिस के अंदर चला जाता है उसके बाद ।

प्रिंसिपल - आओ बरखुरदार ! तुम और तुम्हारी टीम कहां गायब थी इतने दिनों से ।

नीरज - सॉरी सर बस कुछ काम आ गया था ।

प्रिंसिपल - कांग्रेचुलेशन कम से कम तुम्हें कोई काम तो मिला ।

माहौल कुछ ऐसा बन रहा था जैसे प्रिंसिपल सर मजाक बना रहे हो ।

नीरज - सच कह रहा हूं सर हम सभी जरूरी काम में फंसे थे ।

प्रिंसिपल - ठीक है ठीक है मैंने तुम लोगों के लिए एक बहुत अच्छा प्रोजेक्ट सिलेक्ट किया है और उसमें तुम्हें बहुत मन लगाकर काम करना है ।

नीरज - सर वैसे प्रोजेक्ट क्या है ।

प्रिंसिपल - तुम्हें यहां से 600 किलोमीटर दूर आदिवासियों के गांव में जाना है असल में वहां के आदिवासियों का मानना है कि कुछ ऐसी भाषाएं भी हैं जो ज्यादा प्रचलित नहीं है तुम्हें उन्हीं भाषाओं को ढूंढना है और उस पर एक छोटी सी किताब लिखनी है बस ।

नीरज - सर किताब लिखने में तो हमें 1 महीने का समय लग जाएगा ।

प्रिंसिपल - तब तो और भी अच्छी बात है वैसे भी तुम लोगों का काम जल्दी होता है कहां है आराम से जाओ और 1 महीने के अंदर प्रोजेक्ट कंप्लीट करके लाओ और हां तुम्हारे पेपर भी आने वाले हैं पढ़ाई अगर नहीं की तो मुझे दोष मत देना ।

नीरज - ठीक है सर हम कर लेंगे ।

प्रिंसिपल - वेरी गुड अब जाओ ।

नीरज मुंह लटका कर ऑफिस के बाहर आता है बाकी तीनों दोस्त नीरज को देखने लगते हैं ।

विशाखा - क्या हुआ ऐसा क्या दे दिया प्रिंसिपल सर ने ?

नीरज - मुझे तो लगता है यह हिटलर इस साल हमें पास नहीं होने देगा ।

श्रद्धा - ऐसा क्या प्रोजेक्ट है ।

नीरज प्रोजेक्ट श्रद्धा के हाथ में रख देता है और बोलता है ।

नीरज - तुम खुद देख लो ।

श्रद्धा - ऐसी भाषाएं ढूंढना जिसे कोई नहीं जानता और उस पर पूरी बुक लिखना हलवा है क्या ?

अरुण - यार मर गए तब तो अब आगे क्या करना है ।

विशाखा - प्रोजेक्ट हाथों में है इंस्ट्रक्शन पढ़ो और आगे बढ़ो ।

श्रद्धा - तो हमें कब निकलना चाहिए ।

नीरज - हमारे पास केवल 20 से 21 दिन का समय है और हां पेपर भी पास में आ रहे हैं इसलिए पढ़ाई भी करनी है ।

विशाखा - यार पूरी बुक लिखना मुझसे तो ना हो पाएगा ।

अरुण - तुम इतनी फिक्र क्यों कर रही हो ? मैं हूं ना तुम्हारे साथ ।

विशाखा - तुम साथ में हो इसलिए तो टेंशन में हूं एक क्या 2 महीने में भी प्रोजेक्ट कंप्लीट नहीं होगा ।

श्रद्धा और नीरज दोनों की बातें सुनकर हंसने लगते हैं और नीरज कहता है कि हमें तुरंत घर वापस चलना चाहिए और पैकिंग शुरू कर देनी चाहिए ।

श्रद्धा - लेकिन इतनी भी जल्दी क्या है ।

नीरज - जितनी जल्दी हो सके प्रोजेक्ट कंप्लीट करना है इसलिए हम आज शाम को ही गाढ़ासरई के लिए निकलना चाहिए ।

अरुण - यह सब तो ठीक है लेकिन मुझे तो भूख लगी है पहले मैं कुछ खाना चाहता हूं ।

विशाखा - हां यार पहले कुछ खा लेते हैं उसके बाद घर चल कर पैकिंग करेंगे ।

नीरज - तो ठीक है हम यहां से किसी होटल चलते हैं यही अच्छा रहेगा ।

चारों दोस्त गाड़ी में बैठकर होटल की तरफ निकल पड़ते हैं और वहां पहुंचने के बाद ।

वेटर - सर आप लोगों के लिए क्या ला दूं ।

विशाखा - मेरे लिए एक शानदार डोसा ।

श्रद्धा नीरज और अरुण यह तीनों भी अपनी मनपसंद चीजें मंगवा लेते हैं ।

सभी दोस्त खाना खाने के बाद घर की ओर चल पड़ते हैं ।

शाम को सभी अपने कपड़े पैक करने लगते हैं और अपना अपना सामान गाड़ी की डिक्की में रख लेते हैं ।

नीरज - चलो चलो हमें 600 किलोमीटर दूर का सफर तय करना है ।

श्रद्धा - गाढ़ासरई 600 नहीं बल्कि 900 किलोमीटर दूर है ।

नीरज - क्या कह रही हो ? प्रिंसिपल सर ने तो 600 किलोमीटर बताया था ।

श्रद्धा - मैंने उस जगह के बारे में बहुत सुना है यहां से लगभग 900 किलोमीटर जाना होगा ।

अरुण - हे भगवान उठा ले, मुझे नहीं प्रिंसिपल को ।

विशाखा हंसने लगती है ।

नीरज - चलो बहुत हो गया नाटक अब सब लोग गाड़ी में बैठो ।

श्रद्धा - यार रास्ता बहुत लंबा है और वहां की सड़क भी बहुत खराब है ।

विशाखा - मतलब क्या है तुम्हारा ? हम वहां कब तक पहुंच जाएंगे ?

श्रद्धा - अगर रात भर चले तो कल सुबह ।

नीरज - मैडम ! इंसान की तरह गाड़ी भी थक जाती है कभी-कभी मैं रात में गाड़ी नहीं चलाऊंगा ।

अरुण - हां तब तो हम पहुंच गए गाढ़ासरई ।

विशाखा - हां यार रात में थोड़ी देर आराम कर लेंगे तभी तो कल से काम शुरू करेंगे ।

श्रद्धा - सही कहा ।

सभी दोस्त बात करते हुए 200 किलोमीटर पार कर चुके होते हैं ।

नीरज - अरे यार ! मैं तो एक बात भूल ही गया ।

अरुण - देख भाई अब गाड़ी वापस मत घुमाना ।

श्रद्धा - क्या भूल गए ?

इतना लंबा सफर है और हम कुछ खाने पीने का सामान नहीं लाए ।

विशाखा - फिक्र मत करो तुम बिना खाना खाए रह सकते हो, हम नहीं । श्रद्धा और हमने पहले ही घर से बहुत कुछ खाने पीने का सामान रख लिया है और पीने के लिए पानी भी ।

अरुण - वाह यार ! इतना ख्याल रखने वाली लड़की और कहां मिलेगी ।

नीरज अरुण की बातें सुनकर हंसने लगता है ।

विशाखा - मुझे गुस्सा मत दिलाओ नहीं तो मैं अभी कार से उतर जाऊंगी ।

नीरज - चलो ठीक है छोटी-छोटी बातों पर नाराज नहीं हुआ करते ।

लगभग रात की 11:30 बज चुके होते हैं और नीरज गाड़ी रोक देता है ।

नीरज - मुझे लगता है हमें यही ठहरना चाहिए ।

अरुण - हां हम काफी दूर आ गए हैं ।

श्रद्धा - विशाखा ! वह खाने का सामान निकालना ।

विशाखा - अच्छा

अरुण - चलो देखते हैं इन्होंने हमारे लिए प्यार से क्या बनाया है ।

विशाखा और श्रद्धा ने खाने में फास्ट फूड और कुछ घर में बने लड्डू रखे थे ।

विशाखा - यह लड्डू मेरी मां ने बना कर दिया है इसमें मां का प्यार है हमारा नहीं ।

अरुण यह बात सुनकर मुंह लटका लेता है ।

चारों दोस्त खाना खाते हैं ।

नीरज - भाई वाह ! लड्डू में तो जादू है सच में मां की याद आ गई ।

अरुण - भाई कभी-कभी बाप को भी याद कर लिया करो ।

सभी हंसने लगते हैं और थोड़ी देर बाद आराम करने लगते हैं ।