हिन्दू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाई । कहै कबीरा सो जीवता, जो दुहूं के निकट न जाई ।।


हिंदू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाई ।
कहै कबीरा सो जीवता, जो दुहूं के निकट न जाई ।।

संदर्भ :प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के साखियां एवं सबद नामक पाठ से लिया गया है, इस काव्यांश के रचयिता कबीर दास जी हैं ।

प्रसंग : कवि ने हिंदू और मुसलमानों के बीच उत्पन्न में भेदभाव की चर्चा की है ।

व्याख्या :कभी कहता है कि हिंदू राम का नाम जपते हुए और मुसलमान खुदा की बंदगी करते हुए मर मिटे और आने वाली पीढ़ी के लिए कट्टरता छोड़ गए । जबकि राम और खुदा एक ही हैं जो राम और खुदा के चक्कर में ना पड़ कर, प्रभु की भक्ति अर्थात मानवता को अपनाता है । वही सच्चे रूप में जीवित है और सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है ।

काव्य सौंदर्य : (1) कहे कबीर में अनुप्रास अलंकार, (2) दोहा छंद

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