मृत भाषा भाग - 2 ( mrat bhasha 2 )
मृत भाषा (भाग - 2)
लगभग डेढ़ घंटे बीतने के बाद नीरज की नींद खुल जाती है वह देखता है कि विशाखा श्रद्धा और अरुण तीनों सोए हुए रहते हैं ।
नीरज - इनकी तो अभी भी नींद नहीं खुली मुझे गाड़ी चलाना शुरु कर देना चाहिए ।
इतना कहकर नीरज गाड़ी चलाना शुरु कर देता है थोड़ी ही देर बाद श्रद्धा की नींद खुल जाती है ।
श्रद्धा - तुम कब उठे ।
नीरज - मैंने सोचा गाड़ी चलाना शुरु कर देता हूं बाकी सब आराम कर लेंगे ।
श्रद्धा - तुम्हारी यही बातें तो मुझे बहुत अच्छी लगती हैं जो तुम सबकी फिक्र करते हो ।
नीरज - हां वैसे यह बात मुझे बहुत से लोगों ने बोली है ।
श्रद्धा - मैं तो यह सोच कर परेशान हूं कि इन दोनों का क्या होने वाला है ?
नीरज - जो भी होगा अच्छा ही होगा मुझे यह बात तो पता है कि अरुण अच्छा लड़का है ।
श्रद्धा - ओ हेलो मेरी फ्रेंड भी बहुत अच्छी है ।
कुछ किलोमीटर चलने के बाद विशाखा और अरुण की भी नींद खुल जाती है ।
विशाखा - यार तुम लोगों ने हमें क्यों नहीं उठाया ।
अरुण - ऐसा मौका बार-बार कहां मिलता है नीरज अपन दोनों को जगाकर कबाब में हड्डी थोड़ी बनाना चाहता था ।
श्रद्धा - यार तुम दोनों फिर शुरू हो गए ऐसा कुछ नहीं है हम बस बात कर रहे थे ।
नीरज - बस जितनी जल्दी हो सके हम वहां पहुंच जाएं ।
अरुण - वैसे जो भी कहो लड्डू बहुत अच्छे थे ।
अरुण की तरफ देख कर विशाखा मुस्कुराने लगती है ।
श्रद्धा - तुम दोनों ने अपना सारा सामान चेक करके तो रखा है ना ?
विशाखा - हां मैंने तो रख लिया है ।
अरुण - लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो ?
श्रद्धा - ताकि वहां जाकर तुम हमारा सर ना खाओ ।
बात करते-करते सुबह हो जाती है और सभी गाढ़ासरई पहुंच जाते हैं ।
नीरज - दोस्तों में थोड़ी देर आराम करना चाहता हूं फिर हम काम शुरू करेंगे ।
श्रद्धा - हां, तुमने रात भर गाड़ी भी तो चलाई है ।
अरुण - तो ठीक है लेकिन हम रुकेंगे कहां ?
श्रद्धा - पहले तो हमें यहां से पैदल चलना पड़ेगा ।
नीरज - तो पहले कोई ठिकाना देख लेते हैं उसके बाद आराम कर लेंगे ।
श्रद्धा - अरे वो देखो बकरी चराने वाला, हमें उससे यहां के किसी होटल के बारे में पूछना चाहिए ।
गाढ़ासरई चारों तरफ से पहाड़ी इलाकों से गिरा था और मौसम में थोड़ी सी नर्माहट थी । नीरज - हेलो भाई साहब !
अरुण - (चिल्लाते हुए) ओ बकरी वाले भैया !
चरवाहा अरुण को घूरते हुए देखता है
चरवाहा - क्या बात है क्यों गला फाड़ रहे हो ? मुझे अच्छे से सुनाई देता है ।
नीरज - अरे भाई साहब ! सॉरी यह मेरा दोस्त थोड़ा सा पागल है, क्या आप हमें यहां किसी होटल के बारे में बता सकते हैं ?
चरवाहा - यहां कोई होटल नहीं है एक पहाड़ी इलाका है यहां कोई भी आता जाता नहीं है ।
नीरज - तो फिर खाने पीने की सुविधा ।
चरवाहा - यहां से 4 किलोमीटर दूर एक दुकान है वहां से सामान लाकर आप खाना खुद बना सकते हैं ।
नीरज - हां लेकिन अगर और भी किसी सामान की जरूरत हो तो ।
चरवाहा - फिक्र मत करो सर बहुत फर्स्ट क्लास दुकान है सब कुछ मिलता है वहां पर ।
इतना कहकर चरवाहा वहां से चला जाता है ।
नीरज - चलो आगे बढ़ते हैं कोई ना कोई ठहरने की जगह मिल ही जाएगी ।
श्रद्धा - मुझे लगता है चरवाहा को हमारी जरूरतों का पता नहीं है ।
विशाखा - यार अच्छा हुआ मैं मेकअप का सामान साथ लेकर आई थी, पता नहीं यहां मिलता या नहीं ?
अरुण - (हंसते हुए) यहां रहने और खाने का प्रबंध नहीं हो रहा है इसको मेकअप की पड़ी है।
सभी दोस्तों को चलते हुए काफी समय बीत जाता है ।
नीरज - यार पूरा गांव देख लिया ठहरने की अच्छी जगह कहीं नहीं है ।
श्रद्धा - मैंने यहां के एक मंदिर के बारे में सुना है क्यों ना वहां चलकर देखा जाए ।
अरुण - वैसे यह मंदिर है कहां ?
नीरज अपना मोबाइल निकालता है और मैप देखने लगता है ।
नीरज - आओ सब लोग मेरे साथ ।
सारे दोस्त नीरज के साथ चलने लगते हैं और कुछ ही देर में सभी मंदिर तक पहुंच जाते हैं ।
अरुण - क्या आलीशान मंदिर है यार ? ऐसा लगता है किसी राजा महाराजा ने बनाया होगा ।
विशाखा - तुम्हें किस नजरिए से यह निशान लगता है मुझे तो खंडहर लग रहा है ।
अरुण - असली हीरे की पहचान जोहरी को होती है मैडम ।
श्रद्धा - तुम दोनों लड़ना बंद करो पहले अंदर चल कर देखते हैं ।
सारे दोस्त जैसे ही मुख्य द्वार तक पहुंचते हैं वहां के 2 कर्मचारी उन्हें दरवाजे पर ही रोक लेते हैं ।
कर्मचारी - कौन है आप लोग ?
नीरज - हम लोग कॉलेज के विद्यार्थी और यहां पर हम अपना प्रोजेक्ट कंप्लीट करने आए हैं क्या हमें यहां ठहरने की जगह मिल सकती है ?
कर्मचारी - भगवान के घर तो हर किसी को जगह मिल सकती है लेकिन जिस उद्देश्य से आए हो उसके अलावा और कोई कार्य मत करना ।
नीरज - जी मैं समझा नहीं ।
कर्मचारी - समझ जाओगे साहब ! अपना सामान हमें दे दो हम आपको रुकने के लिए जगह बता देते हैं ।
वह सभी दोस्तों को उनके रुकने की जगह बता देता है और वापस अपने कार्य में लग जाता है ।
विशाखा - इतने विशालकाय मंदिर को देखकर तो मुझे डर लग रहा है ना जाने यहां क्या क्या होगा ? और यहां काम करने वालों की संख्या भी कम है।
नीरज - यहां के कर्मचारियों की उम्र काफी ज्यादा हो गई है कैसा लगता है जैसे कई सालों से इसी काम में लगे हो ।
श्रद्धा - चलो ठीक है हम सब थोड़ी देर आराम कर लेते हैं उसके बाद हम गांव की तरफ दोबारा चलेंगे और लोगों से बातचीत करके देखते हैं।
नीरज - गुड आइडिया ।
सभी दोस्त आराम करने लगते हैं लगभग 2 घंटे बाद सभी मंदिर के हॉल में आते हैं।
श्रद्धा - क्यों ना सबसे पहले मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों से शुरुआत की जाए ?
अरुण - हां ठीक है वो फाइल मुझे दे दो ।
विशाखा - और मैं क्या करूं ?
नीरज - यह लोग जो भी बताएंगे उसके बारे में तुम्हें एक डायरी में नोट करते जाना है ।
इसी तरह नीरज और उसके सभी साथी मंदिर और गांव के सभी लोगों से पूछताछ करने में जुड़ जाते हैं और इसी बीच उन्हें एक ऐसी भाषा का पता चलता है जो शायद उस गांव में एक या दो लोग ही जानते थे । सभी दोस्त 2 दिनों तक लगातार मेहनत करते हुए गांव के लोगों से पूछताछ करना जारी रखते हैं ।
विशाखा - नीरज भाई! हम ऐसी भाषा के पीछे क्यों पड़े हैं जो केवल एक या दो लोग ही जानते हैं क्यों ना हम किसी और भाषा की तरफ ध्यान दें ।
नीरज - बहुत कम लोगों को इतिहास खोदकर निकालने का मौका मिलता है और यह मौका आज हमें मिला है । लेकिन मैं यह सोच रहा हूं कि इस भाषा को क्या नाम दूं ?
अरुण - इस भाषा को जानने वाले तो सब मर चुके हैं और अब इसकी पूरी जानकारी हमें उनकी कपड़ों से ही निकालनी पड़ेगी।
इतना कहकर अरुण हंसने लगता है ।
श्रद्धा - हां यही सही रहेगा, इस भाषा का नाम मृत भाषा होना चाहिए, जिसे कोई नहीं जानता ।
नीरज - यही ठीक रहेगा। लेकिन उसके बारे में हमें और ज्यादा जानकारी कौन देगा पहली जानकारी तो हमें दुकानदार के दादाजी ने दे दी, और कौन ?
पुजारी - मैं दूंगा।
अरुण - पुजारी जी आप, आप हमें जानकारी देंगे ?
पुजारी - यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है और मेरे दादा परदादा सदियों से इस मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं मैं बताता हूं इस मंदिर की कहानी, आओ बैठो मेरे पास ।
चारों दोस्त पुजारी के पास जाकर बैठ जाते हैं और ध्यान से सुने लगते हैं ।
पुजारी - ........?
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