प्रजाति के सम्बन्ध में आधुनिक विचार (MODERN VIEWS ON RACE)


प्रजाति के सम्बन्ध में आधुनिक विचार (MODERN VIEWS ON RACE)

यूनेस्को विश्व के सभी देशों का परस्पर सामूहिक विज्ञान-शिक्षा-संस्कृति संघ है। यह विश्व के समस्त मानव वर्गों के हित में कार्य करता है। यह विभिन्न प्रकार के अनुसन्धान कार्य भी करता है। यूनेस्को ने मानव प्रजाति से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अनुसन्धान भी किये हैं। यूनेस्को (UNESCO) ने 1952 में एक सम्मेलन आयोजित किया था जिसमें विभिन्न मानवशास्त्रियां एवं प्राणिशास्त्रियों ने प्रजाति की धारणा पर विचार किया था और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि'

1. इस धरती पर बसने वाले सभी मानव एक ही जाति के सदस्य है जिन्हें मेघावी मानव (Homo Sapiens) कहते है।

2. शारीरिक लक्षणों में अन्तर पर वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण दोनों का ही प्रभाव पड़ता है।

3. वंशानुक्रमण में अन्तर दो प्रक्रियाओं द्वारा आता है— उत्परिवर्तन (Mutation) और अन्तर्वर्ण विवाह (Cross-marriage) |

4. एक प्रजाति को दूसरी प्रजाति से शारीरिक लक्षणों के आधार पर अलग किया जा सकता है किन्तु प्रत्येक शारीरिक लक्षण कुछ मात्रा में सभी प्रजातियों में पाये जाते है, अतः प्रजाति का विशुद्ध वर्गीकरण सम्भव नहीं है।

5. राष्ट्र धर्मौलिक निवास, भाषा समूह, संस्कृति प्रजाति के द्योतक नहीं है।

6. प्रजातीय विभिन्नताएँ सांस्कृतिक विभिन्नताओं के कारण नहीं है।

7. प्रजाति वर्गीकरण में बुद्धि को सम्मिलित नहीं किया जा सकता क्योंकि एक समान पर्यावरण होने पर सभी प्रजातियों के बुद्धि स्तर में भिन्नता होगी।

8. प्रजातीय मिश्रण इतना हो चुका है कि आज विश्व में कहीं भी शुद्ध प्रजातियाँ नहीं पायी जाती है। है अतः प्रजाति अशुद्धता का दावा करना निरर्थक है।

9. सभी विद्वान मानव प्रजातियों को तीन प्रमुख भागों में विभाजित करते है-
(a) कॉर्कशायड, (b) मंगोलॉयड और (c) नीग्रोयड किन्तु इनमें उच्चता या निम्नता का कोई प्रश्न नहीं है, सभी समान है।

10. सभी मनुष्य समान हैं, अतः प्रत्येक को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए तथा न्याय और कानून के सम्मुख सभी समान है।

11. व्यक्तिगत एवं सामूहिक अन्तर निम्न वैज्ञानिक आधारों पर आधारित है
  1. प्रजाति का वर्गीकरण केवल शारीरिक लक्षणों पर आधारित है।
  2. बुद्धि एवं भावना के विकास की आन्तरिक शक्ति प्रजाति में समान है।
  3. कुछ प्राणिशास्त्रीय अन्तर एक प्रजाति के व्यक्तियों में अत्यधिक हो सकते है जो कि वही अन्तर एक प्रजाति और दूसरी प्रजाति में उतनी संख्या में नहीं पाये जाते है।
  4. समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते रहते है जिनका प्रजातीय स्वरूप के परिवर्तन से कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय अध्ययन इस विचार की पुष्टि करते हैं कि वंशानुक्रमण का कोई विशेष महत्व यह निश्चय करने में नहीं रहता कि विभिन्न मानव समूहों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवस्था भिन्न है।
  5. इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि प्रजाति मिश्रण प्राणिशास्त्रीय दृष्टिकोण से हानिकारक है।

इस विवरण से स्पष्ट है कि प्रजाति विभेद, जो मानव समूहों के बीच संघर्ष किये हुए है, निराधार है।
डॉ. हक्सले और हैडन ने "प्रजाति" शब्द को भूतकाल के लिए उपयुक्त ठहराया किन्तु वर्तमान में इसे अवांछनीय माना है और सुझाव दिया है कि 'प्रजाति' शब्द 'शब्द-कोष' से ही हटा देना चाहिए और इसके स्थान पर समशारीरिक लक्षण वाले समूह (Group with Similar Traits) अथवा नृवंशीय समूह (Ethnic Group) का प्रयोग किया जाना चाहिए।'

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