ऐकमत्य और सामाजिक संगठन (ekmatya aur samajik sangathan)
पूर्ण सामाजिक संगठन में एकमत होना आवश्यक है - इसके साथ ही सदस्यों के व्यवहारों में स्थिरता होनी चाहिए । ऐकमत्य से तात्पर्य उस स्थिति से है जब किसी समाज के अधिकतर सदस्य अपने सामान्य जीवन के महत्वपूर्ण विषयों को एक साथ अनुभव करते है । सामाजिक संगठन में समाज की सभी संस्थाएँ अपने निश्चित एवं मान्य उद्देश्यों के अनुसार कार्य करती है । ऐकमत्य के बिना सामाजिक संगठन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । जैसा कि इलियट और मैरिल ने लिखा है कि 'सामाजिक संगठन मौलिक रूप से ऐकमत्य को समस्या है ।' मौलिक विषयों पर समाज के सदस्यों में ऐकमत्य जरूरी है तभी सामाजिक संगठन स्थिर रह सकता है । वर्थ ( Worth ) ने लिखा है कि ऐसा कोई भी समाज नहीं है जिसके सदस्य सामाजिक मूल्यों एवं उद्देश्यों में भाग न लेते हो और समाज में नियमो का पालन न करते हो । जब मनुष्य अपने उद्देश्यों में एक - दूसरे से सहमत नहीं होते तो वे सब मशीनगने और पुलिस बेकार हो जाती है जो कोई तानाशाही सामाजिक शान्ति स्थापित करने के लिए एकत्र करता है ।' डी . टाकविल ने कहा था कि ' एक समाज तभी जीवित रह सकता है जबकि अधिकांश व्यक्ति अधिकतर वस्तुओं के विषय में एक दृष्टिकोण से विचार करते हों एवं वे बहुत से विषयों के बारे में एकमत रखते हो और जबकि एक ही प्रकार की घटनाएँ उनके मस्तिष्क पर समान विचार और प्रभाव अकित करती हो ।'ऐकमत्य का सम्बन्ध मनुष्य की आत्मा से है, अतः इसको बलपूर्वक स्थापित नहीं किया जा सकता है । इलियट और मैरिल ने लिखा है कि 'कुछ मौलिक एकमतता के बिना समाज का शारीरिक ढाँचा पोले शंख के समान है ।' समाज दो प्रकार से संगठित रहता है - बाह्य और आभ्यन्तर । समाज के बाहा संगठन का आधार समाज के ढाँचे का संगठन है । समाज का आन्तरिक या आभ्यन्तर संगठन रहता है, उसका तात्पर्य समाज की आत्मा अर्थात् एकमतता से है । एकमतता के अभाव में समाज संगठित नहीं रह सकता है । पार्क और बर्जेस ने लिखा है कि समाज संगठित आदतो, भावनाओं और सामाजिक मनोवृत्तियों का संकलन है । सक्षेप में एकमतता । समाज के अंगों का एकमत होना आवश्यक है, वैसे सामाजिक महत्व के विषयों पर एकमतता नहीं हो सकती है, क्योंकि समाज के अनेक व्यक्ति और वर्ग होते हैं, इसके अनुसार ही इन व्यक्तियों और वर्गों को अपना कार्य करना पड़ता है । परिवार, पड़ोस और खेल के मैदान से लेकर आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक विषयों में ऐकमत्य अति आवश्यक है । उदाहरण के लिये अपराध को लिया जा सकता है । पहले यह जरूरी है कि समाज अपराध की एकमत परिभाषा प्रस्तुत करे जिसके आधार पर व्यक्तियों के कार्यों को अपराधी - कार्य गतिशील समाज में संदेशवाहन के साधन महत्वपूर्ण कार्य करते हैं । आज यह आवश्यक हो गया है कि किसी भी प्रकार का गठन बनाने से पूर्व व्यक्ति इसके अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव के बारे में सोचता है । रेडियो, टेलीविजन, प्रेस, सिनमा आदि सब सन्देशवाहन के साधन है । सन्देशवाहन इन विशाल साधनों से सामाजिक संगठन बढ़ता है क्योंकि ये एक ही विचार को असंख्य व्यक्तियों तक पहुंचाते है । समाज में सभी व्यक्तियों का ऐकमत्य नहीं है, परन्तु समाज के नेताओं में ऐसे विषयों पर ऐकमत्य आवश्यक है । एक सामाजिक संगठन तभी जीवित रह सकता है जबकि व्यक्ति महत्वपूर्ण विषयों पर एकमत रखते हो ।