समान गतिशील समाज में सामाजिक प्रक्रियाएँ (saman gatisheel samaj me samajik parakriyaye)
मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वह जीवनयापन के लिए अनेक समूते का निर्माण करता है । समाज इन सदस्यों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों का नाम है । जिसे व्यक्ति आदान - प्रदान वाले सम्बन्धी के रूप में परिभाषित करते है । हर एक समाज में प्रक्रियाएं पाई जाती है, चाहे वे समाज को संगठित करने वाली हो या विघटित करने वाली सेकिसी समाज में संगठन करने वाली प्रक्रियाएँ मुख्य होती है तो किसी समाज में विपटित करने वाली शक्तियों की प्रधानता होती है ।
उदाहरण के लिए , भारतीय सामाजिक जीवन में संगठन करने वाली प्रक्रियाएँ अधिक पाई जाती है, क्योंकि भारतीय जन - जीवन में धर्म को प्रधानता है । इसके विपरीत पाश्चात्य देशों में विघटन करने वाली शक्तियों की प्रधानता है । सामाजिक प्रक्रियाओ का तात्पर्य अ परिवर्तनों से है जो सामूहिक जीवन में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किये जाते हैं । पार्क और बर्जेस ने अन्त क्रियाओं को सामाजिक प्रक्रियाओं के रूप में परिभाषित किया है । प्रक्रियाओं को उसने सन्देशवाहन ( Communication ), संघर्ष ( Conflact ), प्रतिस्पर्धा ( Competition ), व्यवस्थापन ( Accorrenedation ) और सात्मीकरण ( Assimilation ) - इन पाँच भागों में विभाजित किया है । एकीकरण करने वाली एक अन्य प्रक्रिया सहयोग ( Cooperation ) को भी इसमें जोड़ा जा सकता है । व्यक्ति की अन्त क्रिया का तात्पर्य उसके द्वारा होने वाले कार्यों से है । वे एक - दूसरे को सन्देश दे, संघर्ष करें, व्यवस्थान, आत्मसात् या सहयोग करें , इस प्रकार की सभी क्रियाओं का सम्बन्ध मानव की अन्त क्रियाओं से होता है । एक से अधिक प्रकार को अन्त क्रियाएँ एक साथ भी हो सकती है ।
संक्षेप में इन प्रक्रियाओं की व्याख्या निम्नलिखित है ।
( 1 ) सन्देशवाहन- मौलिक रूप से सामाजिक संगठन और सामाजिक अन्त क्रियाओं सन्देशवाहन अत्यधिक महत्वपूर्ण है । सन्देशवाहल के द्वारा व्यक्ति अपनी भावनाएँ दूसरो तक पहुंचा सकता है और दूसरों की भावनाओं को अपने तक प्राप्त कर सकता है । परिवर्तित समाज में सन्देशवाहन भी अपूर्ण होते हैं । वर्ग भिन्नता और भाषा - भिन्नता के कारण भी विचार विनिमय का अभाव हो जाता है । कुशल कार्य - संचालन के लिए जरूरी है कि सन्देशवाहन के साधनों का विकास किया जाये । सामाजिक संगठन सन्देशवाहन और आवागमन के साधनों पर काफी मात्रा में निर्भर करता है । सन्देशवाहन के द्वारा अगर सामाजिक संगठन को प्रोत्साहन मिलता है तो साथ ही सामाजिक विघटन के लिये काफी सम्भावनाएं रहती है ।
( 2 ) संघर्ष - सन्देहवाहन अगर एक ओर व्यक्तियों या समूहों के बीच मधुर सम्बन्धों की स्थापना करते है तो दूसरी ओर प्रतिस्पर्धा और संघर्ष को ला सकते है । जब व्यक्तियों या समूखे के बीच सम्बन्ध अशान्तिपूर्ण होते है तो उसे संपर्ष का जाता है । गिलिन और गिलिन ने संपर्ष की परिभाषा करते हुए लिखा है कि संघर्ष यह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अपने विरोधी की हिसा या विरोधी के भय के द्वारा प्रत्यक्ष आान देकर करते है । यह हो सकता है कि संघर्ष किनी खास परिस्थितियों में लाभदायक हो , किन्तु सामान्यतः संघर्ष सामाजिक संगठन के लिए भय उत्पन्न करता है । व्यक्ति - व्यक्ति में संघर्ष का होना इस बात का द्योतक होता है । कि व्यक्तिगत विघटन गतिशील है । इसी प्रज्मर परिवार में निरन्तर होने वाला संघर्ष इस बात का घोतक है कि पारिवारिक प्रेम का नाश हो चुका है और वैवाहिक मूल्यों में कमी पड़ गया है । सामाजिक संघर्ष सामाजिक संगठन को नष्ट कर देता है , ठीक उसी प्रकार जैसे राष्ट्र में होने वाले संघर्ष से राष्ट्रीय संगठन का विचलन हो जाता है । इसी प्रकार वर्ग - संघर्ष का परि- सामाजिक सम्बन्धों का नाश होता है । औद्योगीकरण ( Industrialization ) के परिणामस्वरूप आज संघर्ष प्रतिस्पर्धा की मात्रा में वृद्धि हो रही है । युद्ध और फ्रान्तियाँ आधुनिक सभ्यता की विशेषताएं है और इसके पा - मस्यरूप सामाजिक संगठन के लिये एक भागे खतरा उत्पन्न हो गया है ।
( 3 ) प्रतियोगिता - डार्विन का विश्वास है कि जीवन संघर्षमय है और व्यक्ति को अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष करना पड़ता है । बोगार्डस ने प्रतिस्पर्धा को परिभाषित करते हुए क्या है कि प्रतिस्पर्धा किसी ऐसी वस्तु को प्राप्त करने के विवाद को कहते है जोकि इतनी अधिक मात्रा में नहीं पायी जातो , जिससेकि माँग की पूर्ति हो सके । संघर्ष में व्यक्ति आमने - सामने और जानते हुए भाग लेता है , लेकिन प्रतिस्पर्धा में व्यक्ति अचेतनावस्था में भाग लेता है । उदाहरण के लिए, अगर एक व्यक्ति को व्यापार में दूसरे व्यक्ति से ऊँचा उठना है तो वह कुशल संगठन और बाजार पर अधिक ध्यान देगा । प्रतियोगिता सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है । प्रतियोगिता में व्यक्तिगत शत्रुता की भावना का अभाव होता है ।
( 4 ) व्यवस्थापन - स्यूटर और हर्ट ने व्यवस्थापन को परिभाषित करते हुए लिखा है कि एक प्रक्रिया के रूप में व्यवस्थापन प्रयत्नों का वह अनुक्रम है जिसके द्वारा व्यक्ति परिवर्तित अवस्थाओं द्वारा आवश्यक बनाई गई आदतों और दृष्टिकोण का निर्माण करके जीवन की परिवर्तित अवस्थाओं से एकता स्थापित कर लेते है । अधिकांशतः यह देखा गया है कि युद्धों में ही व्यक्ति शान्ति और सहयोग के महत्व को समझ सकता है । निरन्तर होने वाले संघर्ष और इसके बुरे प्रभावों से इन्सान थक जाता है और वह आने वाली परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर लेता है । व्यवस्थापन जीवन के समुचित ढंग से चलने के लिए परम आवश्यक है । ऐसा देखा जाता है कि व्यक्ति जिस वातावरण में पैदा होता है अपने को उसी के अनुकूल बना लेता है । प्रतियोगिता और संघर्ष करते हुए समूह आधुनिक समाज में अनेक पारस्परिक सामंजस्य कर लेते है ।
( 5 ) सात्पीकरण - संघर्ष करते - करते व्यक्ति धक जाता है और वह सहयोग करने लगता है या संघर्ष न करने के लिए वह प्रतिकूल परिस्थितियों से अपना व्यवस्थापन कर लेता है । सात्मीकरण व्यवस्थापन के बाद की स्थिति है । पार्क और बर्जेस ने सात्मीकरण की परिभाषा करते हुए लिखा है कि सात्मीकरण अन्तःप्रवेश और एकता की वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति और समूह दूसरे व्यक्तियों या समूहों की स्मृतियों , भावनाओं और दृष्टिकोण को अपना लेते है तथा उनके अनुभव और इतिहास में भागीदार बनकर उनके साथ - साथ एक सामान्य सांस्कृतिक जीवन में समाविष्ट हो जाते है । इसी प्रकार इलियट और मैरिल ने लिखा है कि सात्मीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विचित्र और विरोधी संस्कृतियों के लोग एक नए सांस्कृतिक मित्रण में घुल - मिल जाते है । समाज चाहे जितना ही सभ्य क्यों न हो जाए वह प्राचीन प्रतिमानों को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर सकता है । नई और पुरानी संस्कृतियों का सम्मिश्रण होकर पुनः एक नई संस्कृति का जन्म होता है । जहाँ तक इसको गति का प्रश्न है . यह प्रक्रिया अत्यन्त ही धीमी है । सन्देशवाहन के साधन इसके विकास में सहयोग दे सकते है ।
( 6 ) सहयोग - समाज संघर्ष पर नहीं , सहयोग पर जीवित रह सकता है ; सहयोग के अभाव में समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । निरन्तर संघर्ष करने वाला समाज शीघ्र ही समाप्त हो जाता है । सामाजिक प्रक्रियाओं में सहयोग का महत्व सबसे अधिक है । अकेला व्यक्ति किसी प्रकार की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता है , सामान्य उद्देश्यों के लिए उसे मिलकर कार्य करना पड़ता है । जैसा कि फेयरचाइल्ड ने लिखा है कि सहयोग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति तथा समूह अपने प्रयत्नों को न्यूनाधिक संगठित रूप में सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयुक्त करते हैं । मनुष्य प्रारम्भ से ही सहयोग करता रहा है । सन्तानोत्पत्ति और पालन - पोषण सहयोग पर ही आधारित है । परिवार और पड़ोस की आधारशिलाएँ भी सहयोग पर ही टिकी हुई है । सहयोग पर ही सामाजिक ढांचा स्थित है । सहयोग के अभाव में सामाजिक ढाँचा डगमगाने लगता है जिसका अन्तिम परिणाम होता है सामाजिक विघटन । सहयोग सामाजिक संगठन के लिए आवश्यक है । उपर्युक्त सभी प्रकार की प्रक्रियाएँ सभी समाजों में पायी जाती है । किसी समाज में सहयोगी प्रक्रियाओ का आधिक्य होता है तो किमी समाज में विरोध करने वाली प्रक्रियाओं का जिस समाज में सहयोग करने वाली प्रक्रियाओं की अधिकता होती है वह समाज अधिक संगठित राता है और जिम समाज में विभेदीकरण और सहयोग है । की प्रक्रियाएं पाई जाती है वह समाज विघटन की ओर होता है । सामाजिक जीवन का आधार मैत्री , शान्ति और सहयोग है