सामाजिक नियन्त्रण ( Social Control ) samajik niyantran


सामाजिक नियन्त्रण ( Social Control )

सामाजिक नियन्त्रण को परिभाषित करते हुए मैकाइवर और पेज ने लिखा है कि सामाजिक नियन्त्रण का अर्थ उस ढंग से है जिससे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था की एकता और स्थायित्व बने रहते है अथवा जिससे यह समान व्यवस्था एक परिवर्तनशील सन्तुलन के रूप में क्रियाशील गती है । सामाजिक नियन्त्रण ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा संगठित समाज को विघटित होने से बचाया जा सकता है ।

इसीलिए स्टन ने सामाजिक नियन्त्रण के महत्व को इन शब्दों में कहा है - " सामाजिक नियन्त्रण जिसे एक समूह अपने सदस्यों पर लादता है , वहाँ मानव - कार्य में कुछ हद तक स्थायित्व एवं स्थिरता आ जाती है । "

समाज निरन्तर परिवर्तनशील है और इस परिवर्तन से सामाजिक संस्थाओं के द्वाँचे में परिवर्तन हो जाता है और समाज डगमगाने लगता है । ऐसी अवस्था में यह आवश्यक हो जाता है कि सामाजिक नियन्त्रण को स्वीकार किया जाए । मनुष्य ने सामाजिक व्यवहार पर नियन्त्रण को स्वीकार किया जाए । मनुष्य ने सामाजिक व्यवहार पर नियन्त्रण रखने के लिए अनेक लोकीतियाँ , रूढ़ियाँ , कानून , नियम और संस्थाओं का निर्माण किया है जो सामाजिक नियन्त्रण का काम करती है ।

( a ) लोकरीतियाँ ( Folkways ) - मनुष्य विचारशील प्राणी है । विचार के बाद उसने कुछ बातों को आदत के रूप में अपना लिया और जब वह उनका प्रयोग निरन्तर करने लगा तो उसके वे विचार , जो आदत के रूप में थे , जनरीतियों के रूप में परिवर्तित हो गए । इनका सामाजिक महत्व बढ़ता जाता है और धीरे - धीरे ये सामाजिक नियन्त्रण के रूप में स्वीकार कर ली जाती है । ये लोकरीतियाँ बहुत कुछ हद तक सामाजिक नियन्त्रण को बनाए रखती है ।

( b ) रूढ़ियाँ ( Mores ) - इलियट और मैरिल ने इनको लोकगीतियों के उस वर्ग में रखा है जिसके साथ समाज कल्याणकारी दर्शन से जुड़ा होता है रूढ़ियाँ अत्यधिक मुदद होती है और इनका समाज पर अधिक अंकुश होता है सामाजिक कल्याण के लिये इन्हे अधिक उपयोगी समझा जाता है । रूढ़ियों का समाज पर अत्यधिक गहरा प्रभाव होता है और इनके द्वारा सामाजिक संगठन को बल मिलता है ।

( c ) कानून ( Law ) - कानून वे रूढ़ियाँ है जो राज्याधिकार शक्ति से सुसज्जित है और जो आज्ञापालन के लिए किसी भी व्यक्ति को बाध्य कर सकती है । कानून व्यक्ति को समाज - विरोधी कार्यों को करने से रोकता है । राज्य का आधार और उद्देश्य संगठन होता है और कानून उस संगठन को स्थायी रखने की गारण्टी देते है ।

( d ) संस्थाएं ( Institution ) - संस्था एक विचार ( Concept ) है जिसका एक ढाँचा ( Structure ) होता है । संस्थाएँ उन मूल्यों की प्रतिनिधि है जो समाज का अंग बन गई है , इसलिए संस्थाये समाज में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । मुख्य संस्थाये परिवार , चर्च , स्कूल तथा राज्य है जो दृढ़ता के साथ सामाजिक नियन्त्रण में सहायता देती है जिससे समाज संगठित रहता है ।


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