जादूगरनी आशा ( jadugarni Asha )


जादूगरनी आशा

सन 1970 की बात है मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में मनोहर नाम का व्यक्ति रहता था । मनोहर अपनी पत्नी के साथ विचार बना कर गंगा नदी नहाने गया । उस समय उसकी कोई औलाद नहीं थी । गंगा नदी में नहाते नहाते, एक युवती की उस पर नजर पड़ी । मनोहर बहुत ही सुंदर और युवा था । उस युवती ने जब मनोहर को देखा तो वह उसे देखकर मोहित हो चुकी थी । वह बंगाल की एक बहुत बड़ी जादूगरनी थी । लेकिन जब युवती ने देखा कि मनोहर की तो शादी हो चुकी है । तो गंगा नदी के तट पर उसने मनोहर को अपने जादू से गायब कर लिया, और गायब करने के बाद अपने साथ बंगाल ले गई । मनोहर ने कई बार उस जादूगरनी से पूछा कि तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो ।

जादूगरनी ने उत्तर दिया कि मैं आपसे प्यार करने लगी हूं । इसीलिए मैं आपको अपने साथ बंगाल ले आई मनोहर कहता है लेकिन मेरी तो शादी हो चुकी है । और मेरी पत्नी पेट से है मुझे कृपया कर वापस पहुंचा दो । जादूगरनी साफ इंकार कर देती है, और मनोहर को रात में इंसान और दिन में मक्खी बनाकर कैद करके रखती है । इस तरह का सिलसिला लगभग 4 सालों तक चलता रहता है । मनोहर को समझ में आ जाता है, कि यदि उसे यहां से बाहर निकलना है तो उसे जादूगरनी का विश्वास जीतना पड़ेगा । मनोहर यही करता है वह धीरे-धीरे जादूगरनी को विश्वास दिलाने लगता है कि वह उसे छोड़कर अब कभी नहीं जाएगा और उसी से शादी कर लेता है । फिर जादूगरनी के कहने पर वह कभी-कभी बाजार भी हो कर आ जाया करता था । कुछ ही दिनों में जादूगरनी को विश्वास हो जाता है कि मनोहर अपनी पुरानी जिंदगी को भूल चुका है । और अब वह मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाएगा मनोहर उसे विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाता है । और फिर मनोहर और जादूगरनी अपने ही घर पर बैठे होते हैं, और मनोहर कहता है की सुनो तुम मुझे भी जादू करना क्यों नहीं सिखाती । मैं भी जादू सीखना चाहता हूँ । जादूगरनी पहले तो कुछ सोचती है और फिर हां कर देती है । मनोहर इस बात को सुनकर खुश हो जाता है और जादूगरनी को अपनी पत्नी के अलावा अपनी गुरु मानकर भी उस से शिक्षा लेने लगता है । लगभग 13 साल हो चुके होते हैं, जब जादूगरनी ने मनोहर को गंगा नदी के तट पर से गायब किया था ।

दूसरी ओर मनोहर की पत्नी बहुत ही कष्ट सहकर अपने घर का गुजारा चला रही थी, और उसकी एक बेटी भी होती है, जो 13 वर्ष की हो चुकी होती है । उस लड़की का नाम आशा होता है । वे दोनों मां बेटी आशा के मामा के साथ ही रहते हैं । साथ ही साथ चुन्नी नाम का एक लड़का जो आशा को अपनी बड़ी बहन के समान मानता है । और बचपन में वह उसके घर पर खेलने भी जाया करता था । इस तरह आशा और उसकी मां का भी घर पर मन बहल जाया करता था ।

वहां मनोहर जादूगरनी से बंगाल का पूरा जादू सीख चुका होता है । और एक दिन समय देखकर जब जादूगरनी बीमार होती है । तभी जादूगरनी मनोहर को कहती है कि आप बाजार से सब्जियां लेकर आ जाइए । जादूगरनी घर के एक पलंग पर लेटी होती है । मनोहर समय का सदुपयोग कर एक थैला लेकर बाजार की ओर निकल पड़ता है । मनोहर बंगाल का जादू से सीख लेने के पश्चात तुरंत ही एक उल्लू के रूप में परिवर्तित हो जाता है । और वहां से उड़ता हुआ, वह मध्य प्रदेश के गुवाडी नाम के गांव में वापस आता है, जहां उसका घर था । उसे आते-आते रात हो जाती है । और वह अपने घर का दरवाजा खटखटा ता है तभी आशा की मां रात की लगभग 2:30 बजे दरवाजा खोलती है, और देखती है । कि उसका पति लौट आया है । पहले तो वह बहुत ही आश्चर्य में पड़ जाती है । उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकलते और फिर मुंह से बोलने की जरूरत भी क्या थी । सारी बातें तो उसके आंसुओं ने कह डाली थी । वह रोते हुए मनोहर के गले लग जाती है और मनोहर अपनी बेटी को भी देखता है उस समय वह सो रही होती है । मनोहर अपनी बेटी को जगाता है, और उसे कहता है कि मैं ही तुम्हारा पापा हूं । मनोहर की पत्नी की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहता । वह तुरंत अपने भैया और भाभी को भी जगाती है । मानो उस रात कोई त्यौहार मनाने का समय हो सारा परिवार खुश हो जाता है ।

लेकिन बंगाल में जादूगरनी को पता चल जाता है, कि मनोहर ने उसे धोखा दिया है ।

यहां मनोहर और उसकी पत्नी खुशी से रहने लगते हैं, और सुबह उठते ही मोहल्ले वालों को भी आश्चर्य होता है कि आज 13 साल बाद मनोहर फिर से कैसे आ गया । कुछ लोगों ने तो यह मान लिया था, कि मनोहर गंगा नदी में डूब कर मर चुका होगा । लेकिन मनोहर की पत्नी को विश्वास था कि उसका पति मरा नहीं है, और वह वापस जरूर आएगा । वापस आने के बाद मनोहर अपने परिवार को पूरी कहानी सुनाता है । जिस पर विश्वास करना मोहल्ले के लोगों और परिवार का बहुत कठिन था । कुछ क्षण के लिए तो आशा के मामा मामी को उसकी बातें झूठी लगती है । परंतु इतने सालों के बाद जब वह वापस आया था तो उन्हें लगता है कि हो सकता है मनोहर सच बोल रहा हो ।

दूसरे ही दिन की रात को फिर से मनोहर के घर के दरवाजे पर दस्तक होती है । वह और कोई नहीं वही बंगाल की जादूगरनी थी । जादूगरनी भी बंगाल से उड़कर उसके घर पहुंच जाती है । जब मनोहर की पत्नी दरवाजा खोल कर उससे पूछती है कि आप कौन हो ? तो जादूगरनी उसे पलट कर जवाब देती है, कि मैं मनोज की पत्नी हूं । और आशा की मां को यकीन हो जाता है कि मनोहर सच कह रहा था । तभी आशा की मां जादूगरनी को अंदर आने को कहती है । लेकिन जादूगरनी अंदर नहीं आती । जादूगरनी की नजर उसी वक्त आशा पर पड़ती है, वह देखती है कि 13 साल पहले उसने कितनी बड़ी गलती की थी । वह मनोहर को बुलाने को कहती है और यह बात सुनकर आशा की मां बहुत डर जाती है । और कहती है कि हम पर रहम कर तुम यहां से चली जाओ । जादूगरनी फिर भी उसे बुलाने को कहती है । वह डरते हुए मनोहर को जगाती है, मनोहर भी जादूगरनी को देखकर सहम जाता है । और कहता है कि तुम यहां कैसे आ गई । तभी जादूगरनी कहती है कि 13 सालों बाद भी तुम्हें अपनी पत्नी और बेटी की याद आ गई । मेरे भी तो दो बच्चे हैं उनका क्या होगा । मनोहर कहता है की गलती तो तुम्हारी थी मैं तो पहले ही शादीशुदा था और मैं अपनी पत्नी को धोखा कैसे दे सकता था । और बंगाल में जो कुछ भी हुआ वह भी तुम्हारी ही गलती थी । जादूगरनी को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह कहती है कि वह दो बच्चे भी तो तुम्हारे ही हैं जब भी तुम्हें उनकी याद आए या मेरी याद आए तो आप उन्हें मिलने घर जरूर आइएगा । इतना कहकर जादूगरनी मनोहर और उसकी पत्नी के सामने से गायब हो जाती है ।

आशा की मां मनोहर से कहती है कि इस भयानक डायन ने तुम्हें 13 सालों तक कितना परेशान किया होगा । और उसकी आंखों में फिर से आंसू आ जाते हैं । मनोहर कहता है कि कोई बात नहीं जो भी हुआ वह भगवान का ही कोई खेल होगा । उस रात आशा उसकी मां और मनोहर तीनों को नींद नहीं आती । बात करते-करते सुबह हो जाती है  ।मनोहर कहता है कि अब तुम चिंता मत करो वह तो जा चुकी है । और अब वह कभी वापस भी नहीं आएगी । और मैं भी तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा । लेकिन आशा की मां के आंसू तो रुक ही नहीं रहे थे तभी आशा की मां कहती है कि मैंने मां दुर्गा को एक वचन दिया था । मनोहर पूछता है कैसा वचन ? आशा की मां एक धार्मिक औरत थी । और इसलिए वह कहती है कि मैंने मन्नत मांगी थी कि यदि आप वापस आ जाएंगे, तो मैं मां दुर्गा को पांच बकरे बली स्वरूप दूंगी । इस बात के लिए मनोहर हां कर देता है और कुछ ही दिन बाद आशा के मामा मामी मनोहर और उसकी पत्नी घर पर एक बहुत बड़ी पूजा रखते हैं । जिसमें मोहल्ले के अधिकाधिक लोग भी शामिल होते हैं । पूजा का समय शुरू हो जाता है, और आशा की मां के शरीर में मां दुर्गा आ जाती है । पूजा चलते-चलते बकरों की बलि का समय हो जाता है, और एक व्यक्ति पांचों बकरों को एक साथ एक ही बार में कटने के लिए क्रमवार खड़ा कर देता है । आशा की मां जिनके शरीर में मां दुर्गा का प्रवेश हुआ होता है वह एक बड़ी तलवार उठाती है और उन पांचों बकरों को काटने के लिए उनके सामने आ जाती है । लेकिन तभी उन पांचों में से एक बकरा पीछे की ओर हो जाता है, और उस बकरे को आगे करने के लिए मनोहर बकरे का कान पकड़कर उसे खींचता है । लेकिन तभी मां दुर्गा तलवार चला देती है, जिसके कारण उस बकरे की गर्दन तो नहीं कर पाती केवल 4 बकरों की गर्दन कटती है, और मनोहर की गर्दन कट जाती है । यह सब देख कर आशा के मामा मामी और मोहल्ले के लोग डर और सहम जाते हैं । यह भयानक दृश्य आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है । उस समय लोगों को समझ नहीं आता कि क्या किया जाए । उन चार बकरों के साथ मनोहर की गर्दन भी कटी पड़ी होती है । और खून पूरे कमरे में फैल चुका होता है । तभी आशा की मां में जो मां दुर्गा थी वह घर से बाहर निकलती है और एक बड़ के पेड़ को फाड़ कर उसमें समा जाती है । शायद माता ने सोचा होगा कि यदि आशा की मां को मैं यही छोड़ कर चली जाती, तो शायद उसे सजा भुगतनी होती । अब आशा अकेली हो जाती है, और वहां पर पुलिस आ जाती है । पुलिस के पूछने पर मोहल्ले वालों का यही जवाब होता है जो उन्होंने देखा था । पर पुलिस वालों को यह बात हजम नहीं होती की आशा की मां बरगद के पेड़ में समा चुकी है । पुलिस वालों को लगता है कि सभी लोग झूठ बोल रहे हैं, इसे एक अनचाही घटना और मोहल्ले वालों की रजामंदी से केस रफा-दफा कर दिया जाता है ।

उसके कुछ दिन बाद आशा को भी मां दुर्गा की सवारी आने लगती है । तभी मां दुर्गा से क्रोधित आशा के मामा मामी उनसे सवाल पूछते हैं । कि माता आशा के पिता के साथ आपने उसकी मां को भी छीन लिया है । इस बात का माता को बहुत दुख होता है । और वह कहती है कि यदि आप लोग कहें तो मैं आशा की मां को वापस कर सकती हूं । लेकिन मोहल्ले के कुछ लोगों की राय होती है की आशा की मां एक पवित्र स्थान पर और मां दुर्गा के साथ है । उसे इस दुनिया में लाकर फिर से मोह माया के बंधन में ना ही डालें तो ज्यादा अच्छा है । आशा के मामा मामी को यह बात समझ में आ जाती है, और वह आशा की मां को वापस लेने से मना कर देते हैं ।

तब तक आशा के पिता मनोहर का क्रिया कर्म भी हो चुका होता है । और कुछ ही दिन बाद आशा अपने घर में ही शांत बैठी होती है तभी चुन्नी उसका मन बहलाने के लिए उसके घर आता है । वह उसे बहुत शांत करने की कोशिश करता है लेकिन शायद मां-बाप के अलग होने का दुख दुनिया के बाकी दुखों से सबसे बड़ा होता है । और तभी आशा के पिता मनोहर की आत्मा आशा के शरीर में प्रवेश कर जाती है । मनोहर भी एक बहुत बड़ा जादूगर बन चुका था, और इसलिए वह भी कभी भी कहीं भी आ जा सकता था । जब इस बात का पता मामा मामी को चलता है, तो वह बहुत दुखी होते हैं । लेकिन शायद मनोहर के वापस आने का कोई विशेष ही कारण था । यह बात पूरे क्षेत्र में फैल जाती है । पर अच्छी बात यह थी कि मनोहर अपनी बेटी और परिवार वालों को कोई कष्ट नहीं देता था ।

आशा की शरीर में आने के पश्चात मनोहर बहुत से लोगों की मदद करने लगा था । वह अपने जादू से अनेक लोगों को ठीक करता था । भूत प्रेतों को भगाना, लोगों का झूठ पकड़ना, चोरों को पकड़ना, इस तरह से वह लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गया था । लेकिन अभी कुछ लोगों को यह पता नहीं था कि जादू मनोहर कर रहा है । क्योंकि सब लोगों को यही लगता था की एक 13 साल की बच्ची जिसका नाम आशा है, वह एक बहुत ही बड़ी जादूगरनी है । चुन्नी भी इस बात से खुश होता है कि इतनी छोटी उम्र में आशा को इतनी बड़ी ख्याति प्राप्त हो चुकी थी । वह विभिन्न स्थानों में जाकर बहुत से लोगों को ठीक किया करती थी । चुन्नी भी उसके मामा के घर आज में काम किया करता था उसका भी अपना एक सपना था कि वह एक गाड़ी लेकर एक अच्छी कमाई कर सकें धीरे-धीरे आशा बड़ी भी होती जा रही थी । लगभग 7 साल बीत जाते हैं और उसके मामा मामी आशा की शादी करने की सोचने लगते हैं लेकिन आशा की एक आंख थोड़ी सी तिरछी थी जिसके कारण लड़का मिलना बहुत ही मुश्किल हो रहा था । भले ही आशा प्रसिद्ध ही क्यों न थी । बड़ी मुश्किल से उसके मामा मामी उसके लिए एक लड़का ढूंढते हैं और उससे उसकी शादी करा देते हैं । वह लड़का अधिक दूर का नहीं था गांव का ही था । शादी के बाद भी आशा बहुत से लोगों की मदद किया करती थी । वह लगभग 20 साल की हो चुकी थी । और चुन्नी भी अपने मामा के गैरेज में काम करके कुछ पैसे इकट्ठे कर लेता है, और एक पुराना ट्रक लेकर आ जाता है । जिससे वह अच्छा पैसा भी कम आने लगता है । और इस खुशखबरी को सुनाने के लिए वह आशा के घर जाता है । और कहता है दीदी देखो आज मैंने अपना सपना पूरा कर लिया है । आशा भी बहुत खुश होती है । आशा भी अपनी मां की तरह धार्मिक थी और उसका असर चुन्नी पर भी पड़ा, वह भी मां दुर्गा की बहुत अधिक पूजा करने लगा । वह पूजा करने के लिए आशा के घर के मंदिर पर ही जाया करता था । इस तरीके से कुछ साल और बीत चुके थे आशा लोगों की मदद कर करके और भी ख्याति प्राप्त कर रही थी । लेकिन यह बात उसके पति को बिल्कुल पसंद नहीं आती थी । उसके पति का कहना था कि तुम लोगों की मदद तो करती हो लेकिन उनसे पैसे क्यों नहीं लेती । लेकिन आशा के शरीर में उसके पिता की आत्मा ऐसा करने से मना करती थी । उनका मानना था कि यदि हम लालच में आकर लोगों से पैसे लेने लगे तो हमारी विद्या का कोई मोल नहीं रह जाएगा । हमें ऐसे लोगों की भलाई के लिए ही खर्च करना चाहिए, और इसी सोच के चलते आशा अपने पति की बात नहीं मानती । यह सब देखकर आशा का पति कुछ दिनों बाद उसे मारने पीटने लगता है । और यह सब देख कर चुन्नी को बहुत ही दुख पहुंचता है । वह कुछ दिन के लिए आशा के घर जाना बंद कर देता है । फिर एक दिन आशा चुन्नी को बताती है, कि मेरा पति मुझे यहां से ले जाना चाहता है ।

वह बताती है कि लोगों की भलाई करना मेरे पति को पसंद नहीं आ रहा है । और इसलिए वह मुझे इस जगह से कहीं दूर ले जाना चाहता है, जहां पर लोग मुझे जानते ना हो । जहां पर कोई मुझसे मदद मांगने ना आ सके । लगभग 2 दिन बाद चुन्नी के मामा चंपालाल चौहान की अचानक तबीयत बिगड़ जाती है, और चुन्नी को पता चलता है कि उसके मामा के ऊपर उसी के परिवार के कुछ लोगों ने जादू टोना कर आया है । वह मदद मांगने आशा के घर आता है पर आशा का पति उसे मना कर देता है । दिन के समय आशा का पति काम पर चला जाता है । और तभी आशा मन बनाकर चुन्नी की मदद करने की सोचती है और वह चुन्नी के मामा के घर पहुंच जाती है । तभी वह देखती है, की चुन्नी के मामा चंपालाल को एक बहुत बड़ी शक्ति ने घेर रखा है । इतनी बड़ी शक्ति से आशा का कभी भी सामना नहीं हुआ था चंपालाल मृत्यु की कगार पर खड़े होते हैं । लेकिन आशा भी कुछ कम नहीं थी , आशा तुरंत ही अपनी शक्तियों से चंपालाल के घर से सभी बुरी चीजों को हटा देती है और उस समय चंपालाल अपने ही घर की खाट पर पड़े हुए थे, तभी उसने चंपालाल के घरवालों से कहा कि मैं इनकी खाट पर अभिमंत्रित ताबीज बांधकर जा रही हूं, किसी भी हालत में इन्हें इस खाट से मत उठाइएगा । उसके घर के लोग ऐसा ही करते हैं । चुन्नी यह सब देख कर खुश हो जाता है और फिर वह दोनों घर वापस आ जाते हैं ।

शाम के समय चुन्नी आशा के घर जाता है, और पूजा करता है । तभी आशा कहती है कि कल वह घर पर ही रहेंगे । तुम्हें तुम्हारे मामा को देखने नहीं जा पाऊंगी लेकिन तुम्हें इस बात का ध्यान रखना है कि उन्हें उस खाट से ना उठाया जाए । चुन्नीलाल यही बात अपने मामा के घर के लोगों को जाकर बताता है । तभी चंपालाल के कुछ रिश्तेदार उसके घर आते हैं और 2 दिन तक आशा भी चंपालाल के घर नहीं जा पाती । चंपालाल रिश्तेदारों का कहना होता है कि इन्हें यहां रखने से कोई फायदा नहीं होगा, इन्हें अस्पताल में दिखाना ज्यादा फायदेमंद है । चंपालाल इतने रईस होते हैं, कि पैसों की तो उन्हें कोई कमी नहीं रहती । लेकिन फिर भी वह इलाज कराने से मना कर देते हैं, क्योंकि उन्हें आशा की बात पर विश्वास था । वह अस्पताल नहीं जाना चाहते थे, और चुन्नी भी इस बात से सहमत था । परंतु चंपालाल के रिश्तेदारों द्वारा इस बात की जबरदस्ती की जाती है कि यदि चंपालाल को घर में ही रखा गया तो वे जरूर अपने प्राण छोड़ देंगे । इस बात पर चंपालाल के घर पर बहुत ही बहस होती है और चंपालाल को खाक से उठाकर अस्पताल ले जाया जाता है । लेकिन वही होता है जिसका डर था, 1 घंटे बाद ही चंपालाल की आत्मा उसका शरीर छोड़ देती है । और जब इस बात का पता आशा को चलता है तो वह बहुत ही दुखी होती है । वह इस बात का दोष अपने पति को देती है । और वह अपने घर पर लड़ाई भी करती है आशा का पति कहता है कि यदि किसी व्यक्ति की जान चली गई, तो इसमें मेरी क्या गलती है । लेकिन आशा गुस्से में आकर उसके पति से बहुत झगड़ा करती है वह बोलती है कि यदि तुम अपनी जीत नहीं छोड़ते तो शायद एक अच्छे इंसान की जान बच सकती थी । लेकिन आशा का पति अभी नहीं सुधरता वह इन सब चीजों से आशा को दूर ले जाना चाहता है । और कुछ ही दिन में वह बिना किसी को खबर किए हैं आशा को लेकर चला जाता है । चुन्नी आशा को बहुत ढूंढता है लेकिन आशा कहीं नहीं मिलती, और फिर चुन्नी की भी शादी हो जाती है । और फिर ऐसे अनेक मौके आए जब चुन्नी को आशा की जरूरत महसूस हुई । उस घटना के बाद लगभग 30 साल तक चुन्नी आशा को ढूंढता है, लेकिन आशा कहीं नहीं मिलती ।

इस घटना को एक कहानी के रूप में दर्शाया गया है, लेकिन यकीन मानिए यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक सत्य घटना है । यह घटना सन 1970 से शुरू होकर 2010 में खत्म हुई थी ऐसी ही बहुत सी कहानियां जो सत्य पर आधारित हैं । जो हम आपके लिए लेकर आएंगे ।