ढोंगी साधु कहानी ( dhongi sadhu kahani )


ढोंगी साधु

साधु होने का ढोंग इस संसार में अनेक प्रकार के लोग करते हैं लेकिन बदनाम हो जाते हैं असली साधु । साधु दो प्रकार के होते हैं एक तो तन का साधु और दूजा मन का साधु जो लोग तन के साधु होते हैं उन्होंने तो आजकल इसे एक व्यापार सा बना लिया है । जोगी का चोला धारण करके रुपए कमाने का अच्छा व सीधा सा व्यापार , बड़ा लंबा चौड़ा व्यापार फैलाते हैं और यह व्यापार ईश्वर के नाम पर चंदा इकट्ठा करना है । जिसमें इन्हें बिना श्रम के ही पेट पूजा की सामग्री उपलब्ध हो जाती है ।

इस प्रकार ढोंगी साधु समाज में एक बोझ की तरह कार्य करते हैं ना तो वे स्वयं कुछ कमाते हैं बल्कि दूसरों की कमाई हुई संपत्ति को भी नष्ट कर देते हैं । फिर भी दानवीर लोग पुण्य के चक्कर में पड़कर और भी दान करते जाते हैं । क्योंकि यह बेचारे उनकी वेशभूषा को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं ढोंगी साधु ऐसी वेशभूषा बनाकर आते हैं मानो सतयुग के जोगी कलयुग में बसे हो ।

परंतु ढोंगी साधु ऐसा करके लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाते हैं वह उनमें कपट व द्वेष की भावना पाई जाती है । वह ऐसे लोगों को ही ढोंगी साधु कहा जाता है अब बात आती है मन के साधु की मन के साधु की वेशभूषा साधारण परंतु उसके मन में ज्ञान रूपी सागर उछाले मारता हुआ अवश्य प्रतीत हो जाता है । वह अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहता है।

अर्थात जो लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं वह लोग इन तरह के साधुओं को दान ना देकर ऐसे लोगों की मदद करते हैं जिन्हें उनकी अधिक आवश्यकता हो वह मन के साधु की संगत करिए जो जीवन की सही दिशा दे सके और बात रही पाप पुण्य की तो वह मनुष्य के कर्मों पर निर्भर है ।