Naka 1984 Kahani


नाका 1984

चारों तरफ लोगों के चीखने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी जैसे मोहल्ले में किसी की शादी हो लेकिन वह शादियों की आवाज नहीं थी लोगों के मारने और काटने की आवाज थी रमेश और उसका बड़ा भाई अपने घर के भीतर चुपचाप बैठे थे और रमेश की मां उन दोनों के लिए खाना बना रही थी रमेश का मन अंदर ही अंदर खुद को खाए जा रहा था वह सोच रहा था कि आने वाले समय में क्या होने वाला है तभी उसका बड़ा भाई कहता है ।
कर्फ्यू खुल गया है जल्दी चलो ।
रमेश - ठीक है चलता हूं ।
रमेश की मां - संभल कर जाना और हो सके तो नाका के सामने से मत जाना ।
रमेश - ठीक है ।
रमेश अपनी छोटी सी किराना दुकान से एक बोरा निकाल कर लाता है और अपने बड़े भाई के साथ बाइक में घर से निकल पड़ता है ।
कर्फ्यू केवल 2 घंटे के लिए खुला था और चारों तरफ पुलिस का पहरा ।
कर्फ्यू के दौरान घूमने वाले व्यक्ति को तुरंत गोली मारने का आदेश आर्मी को दिया गया था ।
रमेश और चुन्नी बड़ी तेजी से मार्केट की ओर जा रहे थे तभी उन्हें एक दुकान में दरवाजा खुला मिला ।
वहां पहुंचने के बाद ।
चुन्नी - यार रमेश जल्दी-जल्दी सामान ले लो जहां से जल्दी निकलना पड़ेगा और घर पहुंचना पड़ेगा
वैसे तो रमेश काफी शांत स्वभाव का था लेकिन उस दिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था ।
रमेश और उसका भाई दोनों गेहूं की बोरी और कुछ खाने पीने का सामान बाइक में लाद लेते हैं और मार्केट से घर की ओर आने लगते हैं ।
लगभग 2 घंटे कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता और एक पुलिस वाले की नजर उन पर पड़ जाती है जो नाका के सामने खड़ा था ।
रमेश - भाई गाड़ी तेज चलाओ पुलिस वाले ने हमें देख लिया है ।
तभी चुन्नी गाड़ी तेज कर लेता है लेकिन पुलिसवाला दूर से ही उसे एक बहुत बड़ा डंडा फेक कर मारता है जो रमेश के भाई के पैर पर पड़ जाता है ।
वह दर्द के कारण कुछ नहीं बोल पाता और गाड़ी वहीं रोक लेता है ।
गुस्से में आकर रमेश तुरंत गाड़ी से उतर जाता है और देखता है कि वह घर के बहुत नजदीक भी हैं और आसपास उस पुलिस वाले के अलावा और कोई नहीं था ।
तभी पुलिसवाला दोबारा हमला करने के लिए उनके पास आता है और रमेश तुरंत पुलिस वाले का हाथ पकड़कर तोड़ देता है ।
और उसे लात मार कर जमीन पर गिरा देता है ।
चुन्नी तुरंत बाइक चालू करता है और घर की और तेजी से जाता है दोनों भाई घर आ जाते हैं ।
तभी रमेश की मां उसके बड़े भाई के पैर में लगी चोट देखती है और रोने लगती है ।
रमेश - तू रो मत मा उस पुलिस वाले का हाथ तोड़ कर आया हूं मैं उसे ठीक करने के लिए कोई अस्पताल भी नहीं खुला है आज ।
चुन्नी - ऐसा नहीं करना चाहिए था वह बाद में इसका बदला जरुर लेगा ।
रमेश - अरे तो वह कौन सा हमें पहचानता है उसके अंदर कुछ ज्यादा ही अकड़ भरी थी सारी निकाल दी ।
मां - रमेश अब तू एक काम कर तुम दोनों बाहर नहीं जाओगे ।
तभी पड़ोस से एक औरत रमेश के घर तुरंत पहुंचती है वह कहती है ।
- अम्मा भैया अनाज लाए हैं क्या ? ।
रमेश - हां ! रुक जाओ मैं तराजू लेकर आता हूं ।
औरत - लेकिन आप लोगों को आने में इतनी देर कैसे हो गई ।
रमेश - उस दुकान में बहुत भीड़ थी और आते समय एक पुलिस वाला टकरा गया सारा दिमाग खराब कर दिया उसने ।
औरत - पता नहीं भैया अब क्या होगा घर के पैसे भी खत्म होते जा रहे हैं और यह कर्फ्यू खत्म होने का नाम ही नहीं लेता ।
रमेश - चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा ।
चुन्नी - मुझे तो लग रहा है अपना देश कभी नहीं सुधरेगा यहां पर लोग एक दूसरे का ही खून बहाते रहते हैं ।
रमेश - अब पूरी दुनिया को तो हम नहीं सुधार सकते ना ।
रमेश उस औरत को अनाज दे देता है ।
औरत - भैया ! जब तक यह कर्फ्यू नहीं खुल जाता और अगर मेरे पास पैसे नहीं रहते तो आप मदद जरूर करिएगा ।
रमेश - उसकी चिंता मत करो हम हैं ना ।
रमेश की मां - खाना बन गया है तुम दोनों हाथ मुंह धो लो और खाना खा लो ।
रमेश की मां थाली परोस देती है ।
सुबह सुबह का समय था लेकिन कर्फ्यू अभी भी लगा था सारे सिखो को लूटा जा रहा था ।
तभी मोहल्ले में किसी के घर का दरवाजा टूटने की जोरदार आवाज आती है ।
रमेश - यार यह कैसी आवाज है ऐसा लग रहा है जैसे बनिया काका के घर का दरवाजा टूटा है ।
चुन्नी - रुक जा रमेश ! बाहर जाना खतरनाक हो सकता है बाहर मत जा ।
रमेश - रुक तो जा यार देखो तो सही हुआ क्या है ? खिड़की से देख लूंगा ।
रमेश दिखता है कि बनिया काका के घर का मुख्य दरवाजा टूटा हुआ है ।
रमेश - ओए ! काका के घर में घुस गए मैं जा रहा हूं उनको बचाने ।
लेकिन कभी चुन्नी देखता है कि बनिया काका के घर के सामने 4 से 5 लोग जमा थे वह शायद कहीं बाहर के थे ।
बनिया काका के घर से चीखने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी ।
रमेश अपने घर के मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ने लगता है तभी चुन्नी उसे पीछे से आकर पकड़ लेता है ।
रमेश - अरे छोड़ यार ! पता नहीं क्या हो रहा होगा उनके घर में ।
चुन्नी - तू बाहर गया तो तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे वहां पर बहुत सारे लोग हैं तू उनसे नहीं निपट पाएगा ।
लगभग आधा घंटे बाद सारा मोहल्ला किसी श्मशान की तरह शांत हो जाता है ।
रमेश - भाई वो लोग चले गए मुझे छोड़ दे मुझे देखना है क्या हुआ है ।
रमेश बनिया काका के घर तुरंत पहुंचता है और काका के घर दाखिल होता है ।
अंदर का नजारा देखकर रमेश की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह घुटनों के बल बैठ जाता है ।
रमेश देखता है कि बनिया काका को रस्सी से बांध दिया गया था और उनकी तीन जवान बेटियों के साथ बलात्कार किया गया था ।
रमेश - म** साले ।
चुन्नी उसके पीछे आता है और बोलता है
चुन्नी - रमेश क्या हुआ ? ।
रमेश - भाई चलो फिर से नाका के पास ।
चुन्नी - जो भी हुआ बुरा हुआ लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता इस समय ।
रमेश बनिया काका की रस्सी खोल देता है ।
उस दिन का दिन एक बहुत बड़ी त्रासदी थी लगभग 1 महीने बाद कर्फ्यू खुलता है और सब कुछ पहले जैसा हो जाता है ।
रमेश एक नव युवा था लेकिन फिर भी उसे लगा कि देश में आज भी काफी सुधार की जरूरत आजादी मिलना काफी नहीं है ।
लगभग 2 साल बाद एक सिनेमाघर में रमेश और उसका भाई फिल्म देखने जाते हैं तभी रमेश को एक आदमी दिखता है ।
रमेश - भाई यह वही है जो काका के घर के सामने खड़ा था ।
रमेश का गुस्सा अपनी चरम सीमा पार कर चुका था ।
रमेश तुरंत थिएटर के अंदर से अपनी कुर्सी से उठता है और उस आदमी पर हमला कर देता है ।
उस आदमी को काफी चोटे आती है और वह लगभग बेहोश होने की स्थिति में होता है ।
सिनेमा घर में अफरा तफरी मच जाती है और फिल्म भी बंद कर दी जाती है लेकिन तभी ।
चुन्नी - रमेश ! चल यहां से अगर धोखे से मर गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे ।
वे दोनों थिएटर से भागकर घर आ जाते हैं ।
समय बदलता गया और लोग इस एक घटना को भूलने लगे लेकिन 1984 किया घटना जब इंदिरा गांधी को गोली लगी थी पूरा देश आज तक नहीं भूला ।
निष्कर्ष - फिल्मों में और असल जिंदगी में जीवन बहुत अलग होता है हमारे अतीत में बहुत सी बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई हैं लेकिन शायद उन्हें सुधारना रमेश के बस में नहीं था