वैदिक काल (VEDIC PERIOD) Vaidik kaal


वैदिक काल (VEDIC PERIOD)

वैदिक काल के संबंध में जानने का प्रमुख स्रोत वैदिक साहित्य ही है। वेद शब्द की उत्पत्ति विद्धातु से हुई जिसका अर्थ है जानना । वेद श्रुत परम्परा से आगे बढ़े थे उनका लिखित रूप बाद में दिया गया। वेदों का अपौरूषेय कहा जाता है। वैदिक साहित्य से तात्पर्य होता है वैदिक संहिताओं और वेदों से निसृत और उससे संबद्ध साहित्य । वैदिक साहित्य को चार भागों में विभाजित किया जाता है-

(1) वेद - मूलत: वेद चार हैं जो आर्यों के पवित्र ग्रन्थ हैं, इन्हें संहितायें भी कहा जाता है जो इस प्रकार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनका सहयोगी साहित्य भी वैदिक साहित्य के अन्तर्गत आता है। इन सबका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:-

(a) ऋग्वेद - इसे सबसे अधिक पवित्र तथा प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद माना गया है। पतंजलि के - अनुसार इसकी 21 शाखायें थीं, परन्तु वर्तमान में एक ही 'शौनक संहिता' उपलब्ध होती है। ऋग्वेद का संगठन दो प्रकार से किया गया है- अष्टक क्रम और मण्डल क्रम। अष्टक क्रम के अनुसार ऋग्वेद को सुक्त आठ अष्टकों में विभाजित हैं। प्रत्येक अष्टक में आठ-आठ अध्याय हैं। ये अध्याय 2006 वर्गों में विभक्त हैं। तथा प्रत्येक वर्ग में पाँच मन्त्र हैं। मण्डल क्रम के अनुसार 'ऋग्वेद' में 10 मण्डल हैं। इसमें 85 अनुवादक तथा 10589 मन्त्र हैं। इसका रचना काल 1500 ई.पू. तक माना गया है। इसमें आर्यों के धर्म, दार्शनिक चिन्तन, सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक जीवन का परिचय मिलता है।

(b) यजुर्वेद - यजुर्वेद का महत्व यज्ञों और कर्मकाण्डों के लिए अधिक है। यजुर्वेद दो प्रकार का है- शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद में मन्त्रों का संकलन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में इनका विनियोग बताया गया है।

(c) सामवेद - सामवेद के मन्त्रों का संकलन यज्ञों के अवसरों पर मन्त्रों का गान करने के लिए हुआ था। सामवेद का अर्थ है संगीत। इसके दो भाग हैं- पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक । सम्पूर्ण सामवेद में 1549 मन्त्र हैं।

(d) अथर्ववेद - कुछ लोगों का विचार है कि पहले तीन ही वेद थे। अथर्ववेद की रचना बाद में हुई थी। इसकी नौ शाखायें प्रसिद्ध हैं।

(2) उपवेद चार वेदों के चार उपवेद भी कहे जाते हैं- आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अथर्ववेद।

(3) ब्राह्मण ग्रन्थ - ब्राह्मण साहित्य की रचना वेदों का अर्थ और स्वरूप स्पष्ट करने के लिए हुयी थी। यह वैदिक धर्म आदि के स्रोत माने जाते हैं। अब तक उपलब्ध ब्राह्मण ग्रन्थों में प्रमुख इस प्रकार हैं:-
(i) ऐतरेय ब्राह्मण, (ii) कौषीतकि ब्राह्मण, (iii) शतपथ ब्राह्मण, (iv) तैत्तरीय ब्राह्मण (v) गोपथ ब्राह्मण ।

(4) आरण्यक अरण्य अर्थात् वन में लिखे जाने से इन्हें आरण्यक कहा जाता है। प्रमुख - आरण्यक इस प्रकार हैं-
(i) ऐतरेय आरण्यक, (ii) शांखायन आरण्यक, (iii) बृहदारण्यक, (iv) तैत्तरीय आरण्यक (v) मैत्रायणी आरण्यक ।

(5) उपनिषद- उपनिषद वैदिक साहित्य में अध्यात्म और आत्मचिन्तन को प्रतिष्ठित करने के लिए जाने जाते हैं। इनके पहले यज्ञों और कर्मकाण्डों ने वैदिक धर्म को बहुत अधिक पाखण्डी सा बना दिया था। उपनिषदों ने वैदिक धर्म को पुनः आत्मचिन्तन से जोड़ दिया। उपनिषद वह ज्ञान है जो गुरू अथवा आत्मा के समीप बैठकर प्राप्त किया जाता है। इनमें ब्रह्म, जीव, प्रकृति, सृष्टि, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि का चिन्तन प्राप्त होता है। वर्तमान में 13 उपनिषदों को महत्वपूर्ण माना जाता है -

ऐतरेय, कौशीतकि, बृहदाराएण्यक उपनिषद, ईशावास्योपनिषद, तैत्तरीय उपनिषद, मैत्रायणी उपनिषद, कठोपनिषद, श्वेताश्वेतर उपनिषद, छान्दोग्य उपनिषद, केनोपनिषद, मुण्डको पिनषद इत्यादि ।