परतदार चट्टानें (SEDIMENTARY ROCKS) Paratdar chattane


परतदार चट्टानें (SEDIMENTARY ROCKS)

परतदार चट्टाने धरातल पर पायी जाती है। इनकी उत्पत्ति अवसाद के जमा होने के कारण होती है। इन्हें अवसादी चट्टाने भी कहा जाता है। यह धरातल के 75% भाग पर पायी जाती है। अंग्रेजी में इन्हें Sedimentary Rocks कहा जाता है। यह शब्द लैटिन भाषा के Sedimentum से बना है जिसका तात्पर्य Setting down (नीचे बैठना होता है। इनका निर्माण लगातार एवं धीरे-धीरे निक्षेपण के कारण ही होता है। वॉरसेस्टर महोदय के अनुसार, "अवसादी चट्टानें जैसा कि अवसाद का तात्पर्य है, प्राचीन चट्टानों के टुकड़ों और खनिज पदार्थों के किसी-न-किसी रूप में संगठित हो जाने तथा परतों में व्यवस्थित हो जाने से बनती हैं।" (Sedimentary rocks, as the sediment implies, are composed largely of fragments of older rocks and minerals that have been more or less thoroughly consolidated and arranged in layers or strata.)

इन चट्टानों का निर्माण यः तीन प्रमुख चरणों में होता है :

  1. पहले चरण में सभी अवसाद वायु, जल अथवा अन्य कारको द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाये जाते हैं,
  2. दूसरे चरण में इन्हें जमाया जाता है और अन्त में
  3. अवसाद जमकर कठोर बनते जाते है।

परतदार चट्टानों में पाए जाने वाले प्रमुख खनिज क्ले, क्वार्ट्ज तथा केल्साइट है। इनके अतिरिक्त डोलोमाइट, फेल्सपार, लौह अयस्क, जिप्सम आदि खनिज पाये जाते है।

परतदार चट्टानों के प्रकार (Types of Sedimentary Rocks) -

परतदार चट्टानों को निम्नांकित दो आधोरों पर विभाजित किया जा सकता है।

I. अवसादों की उत्पत्ति के आधार पर : परतदार चट्टानों की उत्पत्ति में सहायक अवसादों के आधार पर परतदार चट्टानों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। (अ) यान्त्रिक क्रियाओं द्वारा निर्मित अथवा चट्टान चूर्ण निर्मित परतदार चट्टाने, (ब) रासायनिक विधि द्वारा निर्मित परतदार चट्टानें, (स) जैविक तत्वों से निर्मित परतदार चट्टाने ।

(अ) यान्त्रिक क्रियाओं द्वारा निर्मित अथवा चट्टान चूर्ण निर्मित परतदार चट्टानें (Mechanically Formed or Clastic Rocks) - चट्टान चूर्ण निर्मित परतदार चट्टाने निम्नलिखित हैं :

  1. गुटिकामय चट्टानें (Rudaceous Rocks) – गुटिकामय चट्टानों का निर्माण बड़े कणों के द्वारा होने के कारण इन्हें परतदार चट्टान कहा जाता है। इनका व्यास 4 मिलीमीटर से 64 मिमी तक होता है। इनके बड़े पत्थरो को गोलाश्मिका (Cobble) कहा जाता है जो व्यास में 64 से 256 मिमी तक होते है। इनसे भी बड़े पत्थरों को गोलाश्म (Boulder) कहा जाता है जो ब्यास में 256 मिमी से भी अधिक पाए जाते हैं।
  2. बालुकामय चट्टानें (Aranaceous Rocks) - बालू तथा बजरी के मिश्रण से बनी सट्टाने बालुकामय चट्टाने कहलाती है। इनमें क्वार्ट्ज की प्रधानता होती है। ये सरन्ध्रमय होती है। बलुआ पत्थर इसका उत्तम उदाहरण है। बालू के कण सिलिका, कैल्सियम कार्बोनेट द्वारा मिलकर बालुकामय चट्टान निर्मित करते हैं।
  3. मृण्मय चट्टानें (Argillaceous Rocks) - ये चीकामय चट्टानें हैं। इनका निर्माण मृदा के बारीक कणों के निक्षेपण से होता है। जल में बड़े-बड़े कण भी घुलकर मिट्टी का रूप ले लेते है। इनका निर्माण बारीक कणों से होता है, अतः ये असरन्ध्री होती है, किन्तु कमल होने से शीघ्रता से अपरदित हो जाती है।

(ब) रासायनिक विधि द्वारा निर्मित परतदार चट्टानें (Chemically formed Sedimentary Rocks) - ये चट्टानें निम्नलिखित हैं :

  1. सिलिका प्रधान चट्टानें (Siliceous Rocks) - इन चट्टानों में सिलिका की मात्रा अधिक होती है। इनमें नोवा क्यूलाइट तथा फ्लिट प्रमुख है। गर्म पानी के स्रोतों में घुले हुए सिलिका के जमाव से नोवाक्यूलाइट का निर्माण होता है। सिलिका का जमाव यलोस्टोन नेशनल पार्क तथा आइसलैण्ड के आस-पास बहुत पाया जाता है।
  2. चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks) - विश्व के उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय छिछले सागरों के जल में घुले हुए चुने तथा जीव-जन्तुओं के अवशेषों से बनी होने के कारण इन्हें चुना प्रधान चट्टाने कहा जाता है। ये चट्टानें कठोर होती हैं, किन्तु जल के सम्पर्क में आने से सरलता से घुल जाती है। चूना, पत्थर, खड़िया, डोलोमाइट आदि इस प्रकार की चट्टाने है।
  3. क्षारीय चट्टानें (Saline Rocks) - जब बहता हुआ जल मार्ग में मिलने वाले खनिज लवणों को घोलकर किसी झील या आन्तरिक सागर में मिलता है जिससे वाष्पीकरण द्वारा जल तो उड़ जाता है, किन्तु खनिज लवण नीचे रह जाते हैं जिससे वे नीचे परत के रूप में जमा हो जाते है। नमक, जिप्सम, पोटाश तथा शोरा ऐसी ही चट्टानों के रूप है।

(स) जैविक तत्वों से निर्मित परतदार चट्टानें (Organically formed Sedimentary Rocks) - जब वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं के अवशेषों के निक्षेपण से चट्टानों का निर्माण होता है तो उन्हें जैविक तत्वों से निर्मित चट्टाने कहा जाता है। इनमें प्रमुख निम्नलिखित है

  1. कार्बनयुक्त चट्टानें (Carbonaceous Rocks) – इनमें कार्बन की प्रधानता होती है। दलदल एवं कीचड़ में पेड़ पौधा के संचयन से इनका निर्माण होता है। भूमि के उथल-पुथल के कारण जल के समीप उसे हुए पेड़-पौधे जल में दब जाते है तथा इनके ऊपर मिट्टियों का जमाव हो जाता है।
  2. सिलिका प्रधान (Siliceous) – सागरों में पाए जाने वाले कुछ जीवों में मिलिका को मात्रा अधिक होती है। इनमें डायटम एवं रेडियोलोरिया प्रमुख है। ये मरकर नीचे जाना होते जाते है जो एक चट्टान का रूप ले लेते हैं।
  3. चूना प्रधान (Calcareous ) - इन चट्टानों में चुना पत्थर तथा खड़िया प्रमुख है। चूना पत्थर सागरी में पाए जाने वाले प्रवाल तथा मौलस्क आदि जीवधारियों तथा वनस्पतियां द्वारा बनता है। सागरों में चुना प्रधान जीवों में प्रमुख ग्लोबिजेरिना तथा टैरोपोड होते है। इनमें कैल्सियम (ग्लीविजरिता) की मात्रा 64.6% होती है। टैरोपोड की शारीरिक रचना में कैल्सियम कार्बोनेट की मात्रा 80% तक होती है। ये अधिकतर उष्ण कटिबन्धीय महासागरों में पाए जाते हैं।

II. निर्माण में सहायक साधन एवं जमाव स्थान के आधार पर : इस आधार पर परतदार चट्टानीको निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. जलीय चट्टानें (Aqueous Rocks) – जल का कार्य वायु की अपेक्षा अधिक क्षेत्र पर होता है। जल द्वारा अवसाद के जमाव के आधार पर इन्हें तीन भागों में बाँटा गया है:
    • समुद्री चट्टानें (Marine Rocks) - इनका निर्माण सागरी में नदियों द्वारा अवसाद जमा करने से होता है।
    • झीलकृत चट्टानें (Lacustrin Rocks) - नदियों एवं पवनों द्वारा झीलों में जमा किए गए निक्षेपण से बनी चट्टाने झीलकृत चट्टाने कहलाती है।
    • नदीकृत चट्टानें (Riverine Rocks) - नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नदियों के जल में घुल अवसाद के जमा होने से निर्मित चट्टाने नदीकृत चट्टाने कहलाती है। भारत में जलोढ़ या कार्य सिद्धों के जनाव इस प्रकार की चट्टानों के रूप है।
  2. वायूढ़ चट्टानें (Aeolin Rocks) - वायु द्वारा उड़ाकर लाए गए कणों के किसी स्थान पर जमा होने से निर्मित चट्टानें वायूढ़ चट्टाने कहलाती हैं। चीन में लोयस मिट्टी का क्षेत्र इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।
  3. हिमानी चट्टानें (Glacial Rocks) - जब हिमानियाँ अपने साथ कंकड़-पत्थर बहाकर लाती हैं। तो इधर-उधर छोड़ती हैं तो अवसाद जमा होने से हिमानी चट्टानों का निर्माण होता है।

परतदार चट्टानों का वितरण (Distribution of Sedimentary Rocks) - परतदार चट्टाने विश्व के लगभग 75% भाग पर फैली हैं। ये केवल पृथ्वी के ऊपरी धरातल पर ही पायी जाती है। भारत में इनके क्षेत्र नर्मदा, तापी (ताप्ती), महानदी, दामोदर, कृष्णा, गोदावरी आदि नदियों की घाटियों में पाये जाते हैं।

Paratdar Chattane

परतदार चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics of Sedimentary Rocks) -

  1. समुद्र - जल में निर्मित होने के कारण इनमें लहरों और धाराओं के चिह्न एक-दूसरे को काटती हुई। क्यारियाँ, पगडंडियाँ, चूहों आदि के बिल उसी तरह मिलते हैं जिस प्रकार समुद्र तट की बालू में।
  2. ये चट्टानें भिन्न-भिन्न रूप की होती हैं जिनका निर्माण छोटे-बड़े भिन्न-भिन्न कणों से होता है।
  3. इन चट्टानों में परत अथवा स्तर होते है जो एक-दूसरे पर समतल रूप में जमे रहते हैं।
  4. ये चट्टानें स्थूल (Uncompacted) और छिद्रमय होती हैं।
  5. इन चट्टानों में वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं के जीवाश्म (fossils) पाये जाते हैं। इन्हीं चट्टानों से कोयला, स्लेट, संगमरमर, नमक, पेट्रोलियम आदि खनिज प्राप्त किये जाते हैं।
  6. परतदार चट्टानों को तोड़ने पर परतें अलग-अलग हो जाती हैं।
  7. ये चट्टानें अपेक्षया मुलायम होती है। इनका निर्माण सामान्यतट जल, पवन, हिम, जीव-जन्तु अथवा रासायनिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप होता है।
  8. इन चट्टानों में साधारणतः स्फटिक का अंश अधिक होता है तथा आग्नेय चट्टानों में पाए जाने वाले खनिजों का अंश कम पाया जाता है।

परतदार चट्टानों का आर्थिक उपयोग - अवसादी चट्टानें अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। बलुआ पत्थर, चूने के पत्थर आदि का उपयोग भवन निर्माण में किया जाता है। भवन निर्माण में चूने का सीमेण्ट खूब उपयोग किया जाता है जो चूने के पत्थर से तैयार किया जाता है। चूने एवं डोलोमाइट व अन्य मिट्टियाँ इस्पात उद्योग में काम में आती है। परतदार चट्टानों में चूने के पत्थर का उपयोग सीमेंट बनाने में किया जाता है। सीमेंट उद्योग आज विश्व के प्रमुख उद्योगों में गिना जाता है।

प्रमुख परतदार चट्टानें निम्नलिखित है—

(1) चूना पत्थर (Limestone ) - चूना पत्थर चूर्णविहीन चट्टान है। यह कैल्सियम कार्बोनेट का निक्षेप है। इसका निर्माण जैविक पदार्थों के अवक्षेप से होता है। इसमें पाया जाने वाला मुख्य खनिज कैल्साइट है। इसके अतिरिक्त क्वार्ट्ज, फेल्सपार, चीका आदि खनिज पाए जाते है। समुद्रों में शैवाल, मौलस्क, प्रवालु घांघा, सीप आदि जीवों के मर जाने से उनके कवच महाद्वीपीय मग्नतटों की तली पर जमा हो जाते है जो कालान्तर में चूना पत्थर का रूप धारण कर लेते हैं। इनमें कुछ चट्टानों के कण बारीक तथा रवे बारीक होते हैं। चूना पत्थर कई रंगों में पाया जाता है। जिसमें पीला, हल्का भूरा, लाल एवं काले रंग प्रमुख है।

(2) बलुआ पत्थर (Sandstone ) - बलुआ पत्थर का निर्माण बालू के कणों के संयोजन से होता है। अधिकाधिक रूप में इन पत्थरों का निर्माण क्वार्ट्ज के कणों से होता है। क्वार्ट्ज के अतिरिक्त इनमें फेल्सपार 'क्ले' कैल्साइट एवं डोलोमाइट, अभ्रक, लोहा आदि खनिज पाए जाते हैं। इन खनिजों के कण संयोजक पदार्थों द्वारा संयुक्त होकर चट्टान का निर्माण करते है। बलुई कणों के अत्यधिक दानेदार होने से इनके जुड़ते समय बीच में जगह खाली रह जाती है। इसमें बलुआ पत्थर पारगम्य होता है।

(3) शैल (Shale ) - मिट्टी की सबसे बारीक कण वाली परत शैल कहलाती है। इसके कण सर्वाधिक बारीक होते हैं। जुड़ते समय इसमें रिक्त स्थान नहीं होता है। इसकी सतह बहुत चिकनी होती है। इसमें मिट्टी के साथ क्वार्ट्ज, फेल्सपार, कैल्साइट, डोलोमाइट तथा अन्य खनिज भी मिले रहते हैं। यह चट्टान कई रंगों की होती है जिनमें भूरा, पीला, हरा एवं काला प्रमुख है। यह मुलायम चट्टान है तथा परिवर्तित होकर स्लेट चट्टान बन जाती है। इनके महीन चूरे से सीमेण्ट तथा टाइलें बनायी जाती हैं।