पृथ्वी की आयु आकलन सम्बन्धी विभिन्न विधियाँ Prithvi ki aayu aklan sambandhi vibhinna vidhiya


पृथ्वी की आयु आकलन सम्बन्धी विभिन्न विधियाँ

ग्रह के रूप में पृथ्वी का जन्म किस समय हुआ तथा इसकी आयु क्या है ? यह विद्वानों तथा वैज्ञानिकों के समक्ष एक चुनौती भरा रहस्य रहा है। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत किए गए मतों को निम्नलिखित सात शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है-

  1. धार्मिक विचारधारा के आधार पर आर्क विशप अंशर पादरी ने अपनी पुस्तक 'The Annals of the World' (1658) - में बताया कि ईसाई धर्मानुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ईसा से 4,004 वर्ष पूर्व हुई है। पारसी धर्म के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ईसा से 1,000 वर्ष पूर्व हुई। हिन्दू धर्म की पुस्तक 'मनुस्मृति' में पृथ्वी की आयु को लगभग 2 अरब वर्ष बताया गया। आश्चर्य का विषय है कि आधुनिक समय में वैज्ञानिकों द्वारा की गई पृथ्वी की आयु की गणना भी लगभग 2 अरब वर्ष आती है।
  2. अवसादन के आधार पर - पृथ्वी की प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी के धरातल पर ठोस आग्नेय चट्टानों का आवरण था। बाद में अपक्षय एवं अपरदन प्रक्रिया प्रारम्भ होने से भारी मात्रा में चट्टानी अवसाद सागरीय तली में जमा होने लगे। यदि वर्तमान में विभिन्न साधनां द्वारा सागरों में अवसादी के जमाव की गति को ज्ञात कर लिया जाए. साथ ही सागर की तली में जमे अवसादों की कुल मोटाई को ज्ञात कर लिया जाए. तो पृथ्वी की आयु की गणना आसानी से की जा सकती है। इस आधार पर पृथ्वी की आयु 2.14 अरब वर्ष आती है।
  3. सागरीय लवणता के आधार पर - वैज्ञानिकों का यह मानना है कि महासागरों का जल प्रारम्भ में खारा (नमकीन) नहीं था। पृथ्वी का जन्म होने के बाद से ही धरातल पर बहने वाली नदियाँ भारी मात्रा में नमकीन जल महासागरों में गिराती रही है। एडमण्ड हेली नामक विद्वान् ने सागरों में उपस्थित कुल नमक की मात्रा तथा प्रति वर्ष नदियों द्वारा सागरी में नमक डालने की मात्रा के आधार पर पृथ्वी की आयु 1.5 अरब वर्ष निर्धारित की है।
  4. पृथ्वी के शीतल होने की दर के आधार पर - स्कॉटलैण्ड के वैज्ञानिक लॉर्ड केल्विन (Lord Kelvin) का मानना था कि प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी का तापमान 4,500 डिग्री सेये था। इसके बाद वह धीरे-धीरे ठण्डी होती गई। यदि पृथ्वी की वर्तमान ठण्डे होने की दर तथा पृथ्वी के वर्तमान तापमान को ज्ञात कर लिया जाए तो पृथ्वी की आयु की गणना की जा सकती है। भूगर्भ में रेडियोधर्मी तत्वों की उपस्थिति प्रमाणित होने के बाद उक्त विधि का कोई महत्व नहीं रह जाता क्योंकि भूगर्भ में उपस्थित रेडियोधर्मी तत्व विखण्डित तथा विघटित होकर भूगर्भ में ताप उत्पन्न करते रहते है जिससे भूगर्भ के ताप में वृद्धि हो जाती है।
  5. अपरदन की दर के आधार पर - इस सन्दर्भ में विद्वानों का यह मानना है कि वर्तमान समय तक परतदार चट्टान की अधिकतम गहराई 5,28,000 फीट (100 मील) है जबकि 1 फीट अपरदन में सामान्यतया 10,000 वर्ष का समय लगता है। इस दर से पृथ्वी की अपरदन प्रारम्भ होने से आयु लगभग 5.28 अरब वर्ष आती है और यदि हम पृथ्वी के जन्म को इससे दुगना मान ले तो पृथ्वी की आयु 10.56 अरब वर्ष आती है। वर्तमान में वैज्ञानिक इस मत से पूर्णतया असहमत है।
  6. चन्द्रमा की ज्वारीय शक्ति के आधार पर - वैज्ञानिक यह मानते है कि चन्द्रमा पृथ्वी से प्रति वर्ष 13 सेमी दूर हट जाता है जबकि पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी 3.84 लाख किमी है। इस आधार से चन्द्रमा को वर्तमान दूरी तक पहुँचने के लिए लगभग 3 अरब वर्ष लगे होंगे। इस आधार पर यदि पृथ्वी का जन्म चन्द्रमा के जन्म से अरब वर्ष पूर्व का माने तो पृथ्वी की आयु लगभग 4 अरब वर्ष निर्धारित होती है।
  7. रेडियोधर्मी तत्वों के विघटन की दर के आधार पर - पृथ्वी की समस्त बट्टानों में रेडियोधर्मी तत्व किसी-न-किसी रूप में आवश्यक रूप में उपस्थित रहते हैं। ये सभी रेडियोधर्मी तत्व विघटित होकर सीसे तथा हीलियम जैसे तत्वों में परिवर्तित हो जाते हैं। वैज्ञानिक विधियों द्वारा प्रत्येक चट्टान में सीसे की वर्तमान मात्रा को ज्ञात किया गया। उस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि चट्टानों में रेडियोधर्मी तत्वों के विघटित होने की प्रक्रिया लगभग 1.5 अरब वर्ष पूर्व हुई तरल अवस्था मे ठोस अवस्था की चट्टानों में आने के लिए पृथ्वी को कुछ समय लगा होगा। इस प्रकार रेडियोधर्मी तत्वों के विघटन के आधार पर पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष से 3 अरब वर्ष के मध्य मानी गई है।
भूवैज्ञानिक समय सारणी

पृथ्वी के धरातल के ठोस बनने एवं महाद्वीप तथा महासागर के सर्वप्रथम निर्माण के साथ ही पृथ्वी की तब से लेकर वर्तमान तक के ऐसे विविध क्रियाकलापों को व्यवस्थित रूप से समझने का भूवैज्ञानिकों द्वारा निरन्तर प्रयास किया गया है। इसके लिए महाद्वीपों पर पर्वत निर्माण की घटनाएँ, अवसादी चट्टानों का अध्ययन, स्थलाकृतियों की अवस्था, ज्वालामुखी की क्रिया एवं विविध प्रकार के जीवावशेष एवं उनका विविध कालो से प्रत्यक्ष सम्बन्ध, महासागरों का खारापन एवं उनमें विविध रसायनों के एकत्रित होने का समय-चक्र, अजैविक से जैविक दशा के लिए नितान्त आवश्यक 17 तत्वों का विकास जिन्हें आज 'जीवन के आधार रसायन' (Chemical code of life) कहते है, आदि सभी तथ्यों के अध्ययन को क्रमानुसार व्यवस्थित करके उन्हें अति प्राचीनकाल से वर्तमान काल तक के समय चक्र में विभाजित किया है। इसी कारण ऐसे समय चक्र को वृहत् खण्ड या महाकल्प (Era) में अध्याय या युगों में एवं अन्य उप इकाइयों में विभाजित किया गया है।

सम्भवतः महासागरों का निर्माण लगभग 125-150 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ, लेकिन महासागर में जीवन के लिए आवश्यक आधारभूत 17 रसायनों का विकास बहुत बाद में हुआ। अतः जीवों के विकास की प्राथमिक दशा सम्भवतः आज से 50-60 करोड़ वर्ष पूर्व हुई होगी। अतः इस समय से बाद के भूवैज्ञानिक इतिहास के व्यवस्थित विकास एवं प्रमाण के लिए विविध युगों की अवसादी चट्टानों, इनके मध्य सुरक्षित जीवावशोष, विकास दशा, आदि के आधार पर व्यवस्थित या सारणीबद्ध करते रहे है। इसे ही भूवैज्ञानिक समय-सारणी स्थलाकृतियों का अवस्थावार विकास, ह्रास व पुनः विकास, पर्वत निर्माणकारी घटनाओं का कालक्रम, आदि माणी का आश्रय लिया जाता है। इन्हें ही भूवैज्ञानिक विशेष रूप से उपयोग कर उद्देश्य, कार्यक्रम, जीव बढ़ते है। संक्षेप में यह कालक्रम निम्न प्रकार से मोटे तौर पर उपविभाजित है।