नवतारा परिकल्पना Navtara parikalpana


नवतारा परिकल्पना

नवतारा परिकल्पना के प्रमुख आधार -

होयल तथा लिटिलटन ने अपनी परिकल्पना के प्रस्तुत करने से पूर्व यह तथ्य प्रमाणित हो चुका था कि ब्रह्माण्ड में सूर्य व अन्य तारों का निर्माण हाइड्रोजन तथा हीलियम जैसे हल्के तत्वों से हुआ है जबकि ग्रहों का निर्माण ऑक्सीजन, सिलिका, लोहा, कैल्सियम तथा एल्यूमिनियम जैसे भारी तत्वों से हुआ है। तब कुछ वैज्ञानिकों के समक्ष यह प्रश्न आया कि जब ब्रह्माण्ड में स्थिति तारों में तथा ब्रह्माण्ड के रिक्त स्थान पर भारी तत्व नहीं थे तो यहां व उपग्रहों में भारी तत्व कहाँ से आए ? इसी प्रश्न का समाधान होयल तथा लिटिलटन ने अपनी नवतारा परिकल्पना में किया।

होयल तथा लिटिलटन के अनुसार, "सूर्य जैसे साधारण तारे में हाइड्रोजन के जलने से हाइड्रोजन हीलियम जैसे हल्के तत्व में परिवर्तित होती रहती है। हाइड्रोजन को हीलियम तत्व में परिवर्तित न होकर भारी तत्वों में परिवर्तित होने के लिए सूर्य की तुलना में कई सौ गुने अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। जब किसी तारे का तापमान सूर्य के तापमान से 300 गुना अधिक हो जाता है तो वहाँ हाइड्रोजन के जलने से भारी तत्वों का निर्माण होने लगता है। इतना अधिक तापमान केवल उन तारों में मिलता है जो अधि-नवतारा (Super Nova) अवस्था में होते हैं।"

नवतारा तथा अधि - नवतारा क्या है ? होयल तथा लिटिलटन ने अपनी परिकल्पना में निम्नलिखित दो तथ्यों को प्रमुखता दी - 

  1. समस्त तारों का निर्माण हाइड्रोजन से हुआ है। 
  2. हाइड्रोजन गैस के निरन्तर जलते रहने से इन तारों में ऊर्जा उत्पन्न होती रहती है।

ब्रह्माण्ड में स्थित इन तारों में हाइड्रोजन के जलते रहने में इनमें निरन्तर हाइड्रोजन की कमी होती जाती है। ऐसी स्थिति में तारे को ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए संकुचित होना पड़ता है। संकुचन क्रिया के कारण तारे के केन्द्र पर ताप व दबाव अधिक बढ़ जाता है। साथ ही तारे के संकुचित हो जाने के कारण तारे की घूर्णन गति में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है जिससे तारे का अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force) भी बढ़ जाता है, फलस्वरूप तारे में से पहले जलते हुए हल्के पदार्थ तथा बाद में भारी पदार्थ तारे से बाहर दूर तक एक दिव्य प्रकाश के साथ फेंक दिए जाते है। ऐसे दिव्य प्रकाश वाले तारे को नोवा या नवातारा कहा जाता है। अन्तरिक्ष में नवतारे की चमक अन्य तारों की तुलना में काफी अधिक होती है तथा ऐसा लगता है कि आकाश में कोई नया तारा उदय हो रहा हो, किन्तु कुछ समय बाद इस नवतारे की चमक क्षीण होकर समाप्त हो जाती है। सूर्य

कभी-कभी अन्तरिक्ष में यकायक किसी तारे की दिव्य चमक सूर्य के प्रकाश की तुलना में 10 करोड़ से 40 करोड़ गुनी तक अधिक तेज हो जाती है जिससे तप्त पदार्थ अधिक तेजी से भयंकर विस्फोट के साथ फेंके जाते है फलस्वरूप तारे का समस्त पदार्थ अन्तरिक्ष में बिखर जाता तथा इस प्रकार के तारे अधी-नवतारा(Super Nova) कहलाते हैं।

Sour Mandal ke nirman ki prakriya

नवतारा परिकल्पना की विवेचना - होयल के अनुसार प्रारम्भ में अन्तरिक्ष में एक युग्म तारा (Binary Star) का अस्तित्व था। युग्म में एक तारा सूर्य के रूप में था तथा दूसरा अधि- नवतारा था जिसका तापमान लगभग 5 अरब डिग्री से था। इस अधि-नवतारे में यकायक विस्फोट हुआ तथा इसका अधिकांश विस्फोटित पदार्थ सूर्य की ओर फेंक दिया गया। यह विस्फोट अधि- नवतारे में उस समय हुआ जबकि उसमें भारी पदार्थों की प्रधानता हो गई। अधि- नवतारे से जहाँ विस्फोटित पदार्थ सूर्य की ओर तेजी से गया वहीं अधि-नवतारे का अवशेष नाभिक केन्द्र विस्फोट के धक्के से सूर्य से दूर विपरीत दिशा में चलता हुआ अन्तरिक्ष में विलीन हो गया। दूसरी ओर अधि-नवतारे का जो विस्फोटित गैसीय पदार्थ सूर्य की ओर गया था, वह सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के चारों ओर चक्कर काटने लगा। सूर्य के चक्कर लगाते इस विस्फोटित पदार्थ, जो गैसीय रूप में था, के विभिन्न स्थानों में केन्द्रीय आकर्षण उत्पन्न होने से घनीभवन की क्रिया हुई जिससे पहले छोटे-छोटे पिण्ड निर्मित हुए जो बाद में विकसित होकर बड़े आकार के ग्रहों तथा उपग्रहों के रूप में परिवर्तित हो

लिटिलटन महोदय का मत होयल के मत से कुछ भिन्नता रखता है। लिटिलटन का मानना है कि अधि- नवतारे से विस्फोटित गैसीय पदार्थ केवल सूर्य की दिशा में न फेंका जाकर सभी दिशाओं में फेंका गया। जिससे विस्फोटित पदार्थ का केवल कुछ अंश ही सूर्य की ओर आकर्षित हो पाया। सूर्य की ओर गया यह विस्फोटित पदार्थ तस्तरीनुमा आकृति में सूर्य की आकर्षण शक्ति के कारण उसके चारों ओर घूमने लगा, साथ ही यह विस्फोटित पदार्थ एक बड़े ग्रह के रूप में तस्तरीनुमा आकृति में घूर्णन भी करने लगा। घूर्णन गति बढ़ने में यह तस्तरीनुमा ग्रह दो भागों में विभक्त हो गया। दो भागों में विभक्त ग्रहों में पुनः घूर्णन गति बढ़ने से विभाजन हुआ तथा इस प्रकार विस्फोटित पदार्थ में ग्रहों की एक श्रृंखला निर्मित हो गई। लिटिलटन का मानना है कि वर्तमान सौर मण्डल के सभी ग्रहों का निर्माण इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हुआ।

नवतारा परिकल्पना की पुष्टि के प्रमाण -

  1. यह परिकल्पना बताती है कि सौर मण्डल के ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण सूर्य से निसृत पदार्थ में नहीं हुआ है। नवतारे के तीव्र गति से परिभ्रमण करने के कारण ही सौरमण्डल के यहां तथा उपग्रहों में कोणीय संवेग सूर्य की तुलना में अधिक है। अतः यह परिकल्पना ग्रहां तथा उपग्रहों के कोणीय संवेग की अधिकता का तर्कपूर्ण ढंग से स्पष्टीकरण करने का प्रयास करती है।
  2. वर्तमान में अन्तरिक्ष में नवतारों तथा अधि-नवतारों की उपस्थिति यह बताती है कि यह परिकल्पना केवल कल्पनाओं पर ही आधारित नहीं है।
  3. ग्रहों व उपग्रहों में भारी तथा हल्के तत्वों की उपस्थिति का होना भी इस परिकल्पना से प्रमाणित हो जाता है।

नवतारा परिकल्पना की आलोचनाएँ -

  1. ग्रहों तथा उपग्रहों में परिभ्रमण गतियाँ किस तरह उत्पन्न हुई, इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस परिकल्पना में नहीं होता।
  2. सूर्य से ग्रहों तथा उपग्रहों की वर्तमान दूरियाँ किस प्रकार निर्धारित हुई, इसकी व्याख्या भी इस परिकल्पना में नहीं है।
  3. सूर्य के समीपवर्ती ग्रहों में भारी पदार्थ तथा दूरस्थ ग्रहो में हल्के पदार्थ मिलने का कारण इस परिकल्पना से स्पष्ट नहीं होता।
  4. लिटिलटन का यह मानना है कि ग्रहों का आकार बढ़ने पर उसकी घूर्णन गति में वृद्धि हो जाती है, सही नही है ।