कायान्तरित चट्टानें (METAMORPHIC ROCKS) kayantarit chattane


कायान्तरित चट्टानें
(METAMORPHIC ROCKS)

ये चट्टानें मेटा (Meta) तथा मोरफे (Morphe) शब्द से बनी हैं जिनका अर्थ परिवर्तित रूप से हैं अर्थात् जो चट्टाने परिवर्तित रूप से बनती हैं, वे कायान्तरित चट्टानें है। रूप परिवर्तन के कारण इन्हें रूपान्तरित कहा जाता है। चट्टानों का रूपान्तरण अत्यधिक ताप, सम्पीडन तथा विलयन द्वारा होता है। उच्च तापमान, दबाव अथवा दोनों के प्रभाव से आग्नेय तथा परतदार (अवसादी) चट्टानों का मूल रूप परिवर्तित हो जाता है। इन परिवर्तनों के कारण बनी चट्टानें कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं।

वॉरसेस्टर महोदय के अनुसार, "रूपान्तरित चट्टानों के अन्तर्गत उन चट्टानों को सम्मिलित किया जाता है, जिनके आकार तथा संघटन में विघटन बिना ही परिवर्तन होता है।" (Metamorphic rocks include rocks that have been changed either, in form or composition without disintegration.) चट्टानें कायान्तरित होकर पहले की अपेक्षा अधिक कठोर हो जाती है। इनमें कभी-कभी रखे भी उत्पन्न हो जाते हैं।

कायान्तरण के अभिकर्ता (Agents of Metamorphism) जिन तत्वों से चट्टानों के मूल रूप में परिवर्तन होता है, उन्हें रूपान्तरण के अभिकर्ता कहा जाता है। ये ताप, दबाव तथा घोल आदि हैं।

(1) ताप (Heat) - रूप परिवर्तन का सबसे महत्वपूर्ण कारण ताप है। इसके कारण चट्टानें ढीली पड़ जाती हैं। ताप के कारण चट्टाने फैलती हैं। चट्टानों का रूपान्तरण ताप की मात्रा पर निर्भर करता है। तापमान अधिक होने पर रूपान्तरण भी अधिक होता है। तापमान की अधिकता से चट्टानें पिघलती हैं एवं उनके कणों का रूप परिवर्तित होने लगता है।

(2) घोल (Solution ) - जल का स्वाभाविक गुण है कि वह सभी वस्तुओं को घोलने का प्रयास करता है। कार्बन डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन के जल में मिल जाने से इसकी घुलनशील शक्ति में वृद्धि हो जाती है। अतः चट्टानों का रूप परिवर्तन होने लगता है।

(3) दबाव या सम्पीडन (Pressure) - पर्वत निर्माणकारी हलचलों एवं भूकम्प आदि से चट्टानों पर अधिक दबाव पड़ता है। दबाव के कारण चट्टाने न केवल टूटती अपितु उनमें स्थानान्तरण होता है जिससे वे टूटती है एवं परिवर्तित हो जाती हैं।

कायान्तरित चट्टानों के प्रकार (Types of Metamorphic Rocks) कायान्तरित चट्टानों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है :

(अ) मूल चट्टानों के आधार पर मूल चट्टानों के आधार पर कायान्तरित चट्टानें निम्नलिखित हैं -

  1. परिआग्नेय चट्टानें (Ortho Metamorphic Rocks) - परिआग्नेय चट्टानें वे हैं जो आग्नेय चट्टानों के रूप परिवर्तन से बनती हैं, यथा नीस जो ग्रेनाइट चट्टान का परिवर्तित रूप है।
  2. परिअवसादी चट्टानें (Para-Metamorphic Rocks) - ये चट्टाने अवसादी चट्टानों से बनती हैं। उदाहरणार्थ- शैल चट्टान स्लेट में तथा चूना पत्थर संगमरमर में बदल जाता है।
  3. पुनः परिवर्तित चट्टानें (Bi-Metamorphic Rocks) - एक बार चट्टानों में परिवर्तन हो जाने के बाद यदि उनमें दोबारा परिवर्तन हो जाता है तो उन्हें पुनः परिवर्तित चट्टाने कहा जाता है।

(ब) तहों की बनावट के आधार पर - तहां की बनावट के आधार पर चट्टानें निम्नलिखित हैं : (1) पत्राभिकृत चट्टानें, (2) अपत्राभिकृत चट्टानें।

  1. पत्राभिकृत चट्टानें (Foliated Rocks) - इन चट्टानों के कण बारीक होते है। जब इन्हें तोड़ा जाए तो सतह के समानान्तर निश्चित क्रम में टूटती है। प्रायः अधक की अधिकता से चट्टान में यह गुण विकसित होता है। इनके उदाहरण स्लेट, फाइलाइट, शिष्ट तथा नीस आदि है।
  2. अपत्राभिकृत चट्टानें (Non-Foliated Rocks) - ये भट्टे कणों वाली कठोर चट्टानें होती है जिनकी रचना जल में परिवर्तन के कारण होती है। इनमें कण व्यवस्थित नहीं होते हैं अतः नहीं का विकास नहीं हो पाता है। इनमें प्रमुख संगमरमर, क्वार्ट्जाइट, एन्थेसाइट, सर्पेण्टाइन आदि है।

(स) परिवर्तन के अभिकर्ता के आधार पर इस आधार पर कायान्तरित चट्टानों के निम्नलिखित उप विभाग हैं :

  1. स्थिर कायान्तरण (Static Metamorphism ) - स्थिर कायान्तरण वह है जिसमें चट्टान में अपने स्थान पर ही रूप परिवर्तन हो जाय। ऊपरी दबाव के कारण आन्तरिक भाग की चट्टानों में होने वाला परिवर्तन स्थिर कायान्तरण कहलाता है।
  2. तापीय कायान्तरण (Thermal Metamorphism ) - ताप के कारण पदार्थ की स्थिति में परिवर्तन आ जाता है तथा इनके रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है। जब भू-गर्भ से मैग्मा निकलता है तो वह मार्ग की चट्टानों का रूप परिवर्तित कर देता है। चूना पत्थर ताप के कारण संगमरमर में बदल जाता है।
  3. उष्ण जलीय कायान्तरण (Hydro-Thermal Metamorphism ) - जब तप्त जल के सम्पर्क में चट्टानें आती है तो खनिज जल से रासायनिक क्रिया करते है। इस रासायनिक क्रिया के कारण चट्टानों में रूप परिवर्तन होता है। यही उष्ण जलीय अथवा रासायनिक कायान्तरण है।
  4. गतिज रूपान्तरण (Dynamic Metamorphism ) - जब परतदार चट्टानों में क्षैतिज बलों के कारण दबाव पड़ता है तो उनमें मोड़ पड़ जाते है जिससे वह अधिक गहराई तक चली जाती हैं। गहराई पर तापमान की अधिकता पायी जाती है जिससे उनका रूपान्तरण हो जाता है। उदाहरणार्थ- कोयला ग्रेफाइट में तथा शैल स्लेट में परिवर्तित हो जाती है।

(द) कायान्तरण के क्षेत्र के आधार पर कायान्तरण के क्षेत्र के आधार पर चट्टानं निम्नलिखित हैं-

  1. स्थानीय कायान्तरण (Local Metamorphism) - स्थानीय कायान्तरण वह है जिसमें कायान्तरण किसी सीमित क्षेत्र पर ही होता है।
  2. स्पर्श कायान्तरण (Contact Metamorphism) - स्पर्श कायान्तरण वह है जिसमें कुछ चट्टाने ताप एवं दबाव के स्पर्श मात्र से अपना रूप बदल लेती हैं। जब भू-गर्भ से मैग्मा एवं लावा निकलता है तो उसके स्पर्श में आने वाली अनेक चट्टानें पिघल जाती है तथा उनका रूप परिवर्तन हो जाता है। लैकोलिथ अथवा लैपोलिथ के स्पर्श के सिल एवं डाइक सदैव के लिए परिवर्तित हो जाती है।
  3. प्रादेशिक कायान्तरण (Regional Metamorphism) - जब कायान्तरण की क्रिया किसी विस्तृत क्षेत्र में होती है तो उसे प्रादेशिक कायान्तरण कहा जाता है। भू-गर्भ में पर्वत निर्माणकारी हलचल द्वारा ताप एवं दबाव के कारण बड़े पैमाने पर परिवर्तन हो जाता है अर्थात् वहाँ पायी जाने वाली आग्नेय एवं परतदार चट्टानों में कायान्तरण हो जाता है।
कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ -

इनकी निम्नलिखित विशेषताएँ है।

  1. इन चट्टानों में स्फटिक भी पाए जाते हैं।
  2. इन चट्टानों पर ताप एवं दबाव का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः परतदार (अवसादी) चट्टानों के जीवाश्म नष्ट हो जाते हैं और कुछ आग्नेय चट्टानों के खनिज द्रव्य पिघलकर एकत्रित हो जाते हैं।
  3. कायान्तरित होकर ये चट्टाने पहले से अधिक कठोर एवं असरन्धी हो जाती है।
  4. ये चट्टाने ऋतु अपक्षय की क्रिया से अप्रभावित रहती है।
  5. इन चट्टानों में पाए जाने वाले कण प्राय व्यवस्थित रूप में पाए जाते हैं।
  6. रूपान्तरण होने से मूल चट्टानों के मौलिक एवं रासायनिक गुण परिवर्तित हो जाते हैं।
कायान्तरित चट्टानों का वितरण -

विश्व के प्रायः सभी प्राचीन पठारों पर कायान्तरित चट्टानें मिलती है। भारत में ऐसी चट्टाने दक्षिण के प्रायद्वीप, दक्षिण अफ्रीका के पठार और दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील के पठार, उत्तरी कनाडा, स्केण्डेनेविया, अरब, उत्तरी रूस और पश्चिमी आस्ट्रेलिया के पठार पर पायी जाती है। इनमें सोना, हीरा, संगमरमर चाँदी आदि खनिज पाये जाते हैं।

कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग -

कायान्तरित चट्टानों में पाये जाने वाले खनिज मानव के लिये अनेक प्रकार से उपयोगी है। यहाँ सोना, चाँदी, हीरा कायान्तरित चट्टानें पायी जाती है। संगमरमर जो एक प्रमुख कायान्तरित चट्टान है, भवन निर्माण के लिए उपयोग में आता है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल एवं अनेक महत्वपूर्ण मन्दिर इसी प्रकार की चट्टान (संगमरमर से निर्मित है। एन्थेसाइट कोयला, ग्रेनाइट एवं हीरा भी बहुउपयोगी कायान्तरित चट्टान है । अभ्रक जैसे खनिज बार-बार कायान्तरण होने से बनते हैं। कठोर क्वार्ट्जाइट का निर्माण अवसादी चट्टान के कायान्तरण से हुआ है।

प्रमुख कायान्तरित चट्टानें -

(1) संगमरमर (Marble ) - संगमरमर चूना पत्थर का परिवर्तित रूप है। इसे कैल्साइट से बनाया जाता है। इसे अम्लीय परीक्षण द्वारा पहचाना जा सकता है। यह चिकनी, कठोर, रवेदार चट्टान है। शुद्ध संगमरमर श्वेत रंग का होता है, किन्तु कार्बन, हेमेटाइट व लिमोनाइट आदि अपद्रव्यों से कई आकर्षक रंगी में मिलता है। यथा हरा, काला, भूरा और लाल आदि। इस चट्टान में तापमान द्वारा जीवावशेष के सभी चिन्ह प्रायः नष्ट हो जाते हैं।

(2) स्लेट (Slate ) - स्लेट का निर्माण जलीय अवसादी चट्टानों से क्षेत्रीय रूपान्तरण के कारण होता है। इसका निर्माण प्रादेशिक स्थानान्तरण से होता है। यह सूक्ष्म कणों वाली कठोर चट्टान है। इस चट्टान में रंगहीन अभ्रक की अधिकता होती है । अभ्रक के अतिरिक्त क्वार्ट्ज क्लोराइड भी पाए जाते है। स्लेट का रंग धूसर, काला या हरा होता है। इसका उपयोग गृह निर्माण में होता है।

(3) शिष्ट (Schist ) - यह बारीक कणों वाली रूपान्तरित चट्टान है। शिष्ट चट्टान में अनेक खनिज, यथा— अभ्रक, बायोराइट, क्लोराइड, हॉर्नब्लैण्ड आदि पाए जाते हैं। किसी खनिज विशेष की अधिकता के आधार पर इसे उसी नाम से जाना जाता है, यथा-हॉर्नब्लैण्ड शिष्ट. क्लोराइड शिष्ट, माइका शिष्ट तथा क्वार्ट्ज शिष्ट आदि।

(4) नीस (Gneiss) - यह खुरदरे कण वाली कायान्तरित चट्टान है। इसका प्रमुख खनिज फेल्सपार इसका निर्माण कांग्लोमरेट तथा बड़े कणों वाली ग्रेनाइट चट्टान के रूपान्तरण से होता है। इसमें पत्राभिकृत का विकास पूर्णतट नहीं हो पाता है। इसका निर्माण करने वाले खनिज एक-दूसरे के समानान्तर होते है जिससे इसमें पट्टियों का विकास होता है।

नौस का उपयोग सड़क निर्माण में सर्वाधिक होता है। तमिलनाडु, मध्य प्रदेश तथा झारखण्ड में यह चट्टान प्रमुखता से पायी जाती है।