चट्टान : उत्पत्ति, प्रकार तथा संरचना Chattan utpatti prakar tatha sanrachna


चट्टान : उत्पत्ति, प्रकार तथा संरचना

चट्टानों का अर्थ एवं परिभाषाएँ (MEANING AND DEFINITIONS OF ROCKS)

पृथ्वी की सतह का निर्माण चट्टान द्वारा होता है। कठोर वस्तु के लिये चट्टान शब्द का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी, बालू, कंकड़, ग्रेनाइट आदि सभी के लिये भूगोल विषय में इसका प्रयोग किया जाता है।" आर्थर होम्स के अनुसार, "अधिकांश चट्टानें खनिजों का ही मिश्रित अंश होती हैं। अतः उनमें कई खनिजों का पाया जाना स्वाभाविक होता है। इन खनिजों में रासायनिक तत्वों का योग रहता है। प्रत्येक चट्टान में एक से अधिक खनिजों का सम्मिश्रण पाया जाता है।" वॉरसेस्टर के अनुसार, "सभी चट्टानों में दो या अधिक खनिज होते है अर्थात् चट्टाने चट्टान निर्मित करने वाले खनिजों का मिश्रण होती हैं।" (Nearly all rocks contain two or more minerals, that is to say rocks are composed of certain rock making minerals.)

प्रसिद्ध विद्वान लोवक के अनुसार, “चट्टान अपने वातावरण का प्रतिफल होती है। जब वातावरण बदलता है, तो चट्टान भी बदलती है।" (A rock should be conceived as a product of its environment. When environment is changed, the rock changes.) प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता नूफ के अनुसार, “चट्टान वह पदार्थ है जिससे पृथ्वी का बाह्य आवरण निर्मित हुआ है।"

चट्टानों को परिभाषित करते हुए आर. एस. पवार लिखते है "चट्टानें खनिजों का प्राकृतिक मिश्रण हैं जिससे भूपटल की संरचनात्मक इकाई का निर्माण होता है।" (Rocks are natural aggregate of minerals, which form the structural unit of the crust.)

उत्पत्ति के आधार पर चट्टानों का वर्गीकरण -

(CLASSIFICATION OF ROCKS ON THE BASIS OF ORIGIN) चट्टानों का निर्माण खनिजों के मिश्रण से होता है। इनके रंग-रूप में अन्तर खनिजों की भिन्नता के कारण ही होता है। खनिजों की संख्या के आधार पर इनके कई भाग हैं। उत्पत्ति एवं निर्माण विधि के आधार पर इनके निम्नलिखित तीन प्रकार हैं-
(1) आग्नेय चट्टानें, (2) परतदार चट्टानें, (3) कायान्तरित चट्टानें ।

(1) आग्नेय चट्टानें

'आग्नेय' शब्द की उत्पत्ति इग्निस शब्द से हुई है। इसका अर्थ 'अग्नि' होता है। पृथ्वी पर आन्तरिक क्रिया के फलस्वरूप जब धरातल का पिघला पदार्थ ठोस रूप धारण कर लेता है, तो आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति होती है। पृथ्वी के भीतरी भाग में मध्यवर्ती गहराइयों में बहुत उच्च तापमान एवं दबाव के मध्य जो पदार्थ अर्द्ध द्रव अवस्था में एकत्रित है, उसे मैग्मा (Magma) कहते हैं। ज्वालामुखी के मुख से मैग्मा के साथ-साथ अनेक गैसें भी निकलती हैं। अतः द्रव पदार्थ लावा कहलाता है। लावा तथा मैग्मा के ठण्डे होने के कारण आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है।

वॉरसेस्टर महोदय के अनुसार, "आग्नेय चट्टाने पिघले पदार्थों के ठोस होने की क्रिया से बनती है।" (Igneous rocks are formed through the solidification of molten material.)

यद्यपि आग्नेय चट्टानें धरातल पर सबसे पहले बनी है, तथापि ज्वालामुखी की क्रिया द्वारा इनका निर्माण क्रम अभी भी जारी है। इनमें से कुछ चट्टानें बहुत ही प्राचीन और कुछ नवीन है।

आग्नेय चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks)

लावा तथा मैग्मा के ठण्डे होने से आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति हुई। अतः चट्टानों की स्थिति तथा संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों के निम्नलिखित भेद है-

(1) अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें। (2) बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें।

(1) अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें ( Intrusive Igneous Rocks) - जब भीतरी भागों से निकला हुआ लावा भू-गर्भ की दरारों में ठण्डा होकर जम जाता है तो उसे अन्तर्वेधी चट्टाने कहते है। जैसे ग्रेनाइट, स्फटिक एवं फेल्सपार आदि। मैग्मा के धीरे-धीरे जमा होने के आधार पर अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जाता है :

  1. पातालीय आग्नेय चट्टानें (Plutonic Igneous Rocks) - जब लावा पृथ्वी के आन्तरिक भागों में जमकर ठोस हो जाता है, तो पातालीय चट्टानों की उत्पत्ति होती है। इस चट्टान के कणों का आकार बड़ा होता है। ये चट्टानें ग्रेनाइट की बनी होती हैं, जो ज्यादातर पठारी भागों में पायी जाती है। भारत में ये चट्टाने राँची के पठार, सिंहभूम एवं राजस्थान में पायी जाती है।
  2. मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें (Intermediate Rocks) – जब मैग्मा भू-गर्भ की सन्धियों में एकत्र होकर ठोस हो जाता है तो मध्यवर्ती चट्टानों की उत्पत्ति होती है। पातालीय चट्टानों की तुलना में इनके जमा होने में समय कम लगता है। अतः इनमें पाए जाने वाले वे मोटे होते हैं। इनके प्रमुख रूप लैकोलिथ. लैपोलिथ, फैकोलिथ, डाइक तथा सिल आदि है।

(2) वहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें (Extrusive Igneous Rocks) - जब मैग्मा पृथ्वी के आन्तरिक भागों में न जमकर ऊपरी भागों में लावा के रूप में जम जाता है, तो बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति होती है। ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाले पदार्थ लैपिली, ज्वालामुखी बम्ब तथा ज्वालामुखी राख आदि है। ये पदार्थ शीघ्र ही धरातल पर जमा हो जाते हैं। अतः इनमें वे नहीं पाए जाते है। बेसाल्ट इनका उत्तम उदाहरण है। इन चट्टानों में क्षार की मात्रा कम तथा लोहा, चुना एवं मैग्नीशियम की मात्रा अधिक पायी जाती है।

(अ) रासायनिक संरचना के आधार पर रासायनिक संरचना की दृष्टि से आग्नेय चट्टानों के दो

  1. अम्ल आग्नेय चट्टानें
  2. पैठिक आग्नेय चट्टानें

(1) अम्ल आग्नेय चट्टानें (Acid Igneous Rocks) – जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 80% तथा अन्य खनिज 20% पाये जाते हैं, उन्हें अम्ल आग्नेय चट्टाने कहते हैं। इसमें सोडियम, लोहा, मैग्नीशियम की कमी पायी जाती है। इन चट्टानों पर ऋतु अपक्षय का प्रभाव बहुत कम होता है। इसमें लोहा, मैग्नीशियम एवं सोडियम की कमी पायी जाती है। अतः इनका रंग फीका होता है। ऋतु अपक्षय का प्रभाव कम होने के कारण इसका उपयोग इमारतों के निर्माण में किया जाता है। ग्रेनाइट (Granite) इसका उत्तम उदाहरण है।

(2) पैठिक आग्नेय चट्टानें (Basic Igneous Rocks) – इन चट्टानों में सिलिका का अंश 95% से 55% के मध्य पाया जाता है। ऐलुमिनियम, चूना, सोडियम, मैग्नीशियम तथा पोटैशियम जैसे अन्य ऑक्साइड सम्मिलित होते हैं। ये चट्टानें गहरे रंग की तथा भारी होती हैं। इनमें सिलिका की कमी होती है। अत: देर में जमती हैं। इससे इनके द्वारा अधिकतर पठारों का निर्माण होता है। बेसाल्ट (Basalt) इसका उत्तम उदाहरण है।

(a) कणों की बनावट के आधार पर कण के आधार पर आग्नेय चट्टानों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है -

  1. फेनेरिटिक आग्नेय चट्टानें (Phaneritic Igneous Rocks) - इसमें आग्नेय चट्टानों के कण बड़े होते हैं। इसमें जो कण पाये जाते हैं, उन्हें यंत्र की सहायता से आसानी से देखा जा सकता है। इनमें कणों का आकार प्रायः सूक्ष्म से 1” तक होता है। पातालीय आग्नेय चट्टाने फेनेरिटिक आग्नेय चट्टाने हैं। इनमें ग्रेनाइट तथा डायोराइट प्रमुख हैं।
  2. कणविहीन आग्नेय चट्टानें (Glassy Igneous Rocks) - प्राय: इन चट्टानों में कणों का अभाव पाया जाता है, किन्तु कभी-कभी इनमें कण भी पाए जाते है। आब्सीडियन, पिचस्टोन, प्यूमिस तथा सीट इसके उदाहरण हैं।
  3. पेगमेटिटिक आग्नेय चट्टानें (Pegmatitic Igneous Rocks) – ये बहुत बड़े कणों वाली आग्नेय चट्टानें हैं। वॉरसेस्टर ने इनमें फेल्सपार तथा क्वार्ट्ज की अधिकता वाली ग्रेनाइट समूह की चट्टानों को सम्मिलित किया है। पेगमेटिटिक साइनाइट, पेगमेटिटिक डायोराइट तथा पेगमेटिटिक ग्रेनाइट इसके उदाहरण हैं।
  4. फ्रेगमेण्टल आग्नेय चट्टानें (Fragmental Igneous Rocks) - चट्टानों का यह प्रकार ज्वालामुखी के केन्द्रीय उद्गार से सम्बन्धित है। इसमें ब्रेसिया बम, प्यूमिस, लैपिली आदि सम्मिलित है।
  5. एफेनिटिक आग्नेय चट्टानें (Aphanetic Igneous Rocks) – ये बारीक कणों वाली आग्नेय चट्टानें हैं। इनमें पाए जाने वाले कण इतने छोटे होते है कि उन्हें बिना किसी यन्त्र के नहीं देखा जा सकता है। डाइक, सिल, स्टॉक आदि इसके उदाहरण है।
  6. फोरफाइरिटिक आग्नेय चट्टानें (Phorphyritic Igneous Rocks) – ये मिश्रित कणां वाली चट्टानें हैं। इनमें बड़े तथा सूक्ष्म एवं ग्लासी चट्टाने साथ-साथ पायी जाती है।

आग्नेय चट्टानों के क्षेत्र (Areas of Igneous Rocks) -

  1. इन चट्टानों में परतें नहीं होती, किन्तु वर्गाकार संधियाँ होती है। ये सन्धियाँ ही चट्टानों के निर्बल स्थल होती हैं; जहाँ ऋतु-अपक्षय का प्रभाव होता है।
  2. इन चट्टानों का सम्बन्ध ज्वालामुखी क्रिया से होने के कारण ये मुख्य रूप से ज्वालामुखी क्षेत्र में पायी जाती है।
  3. आग्नेय चट्टानों में कण गोल नहीं होते। ये भिन्न-भिन्न रूप तथा भिन्न प्रकार के स्फटिकों से बनी होती हैं। चट्टानों के टूटकर घिसने से ही कण गोल बनते है।
  4. ये चट्टानें कठोर (Hard) तथा आरन्ध्र (Non-porous) होती है। अतः जल कठिनाई से सन्धियों के सहारे इनमें पहुँच पाता है, परन्तु यान्त्रिक अथवा भौतिक अपक्षय का प्रभाव इन पर पड़ता है। अतः विखण्डन के फलस्वरूप इनके टुकड़े हो जाते हैं।
  5. इन चट्टानों में बहुमूल्य खनिज पदार्थ पाये जाते है एवं उनके चूर्ण से बनी लावा मिट्टी बड़ी उपजाऊ होती है।
  6. इन चट्टानों का निर्माण गर्म मैग्मा के ठण्डे होने से होता है। इस कारण इसमें जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं।

आग्नेय चट्टानों के क्षेत्र (Areas of Igneous Rocks) -

यह विश्व की सबसे प्राचीन चट्टाने हैं। इनकी आयु लगभग 15 अरब वर्ष आँकी गयी है। ऐसी चट्टाने प्रायद्वीपीय भारत में भी पायी जाती है। राजस्थान का अरावली पर्वत, छोटा नागपुर की गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ, राजमहल की श्रेणी और राँची का पठार इस प्रकार की चट्टानों के बने है । अजन्ता की गुफाएँ इन्हीं को काटकर बनायी गयी हैं।

आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (Economic Utility of Igneous Rocks) - 'आग्नेय चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते है। अधिकांश खनिज इसी प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं। लौह, अयस्क, हीरा, सोना, चाँदी, सीसा, जस्ता, ताँबा, मैगनीज आदि महत्वपूर्ण खनिज आग्नेय चट्टानों में पाये जाते हैं। प्रमुख आग्नेय चट्टानें निम्नलिखित हैं :

(1) ग्रेनाइट (Granite ) - ग्रेनाइट चट्टान सर्वाधिक गहराई पर पायी जाती है। इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होने के कारण इन्हें अम्ल चट्टाने भी कहा जाता है। अधिक गहराई पर पायी जाने के कारण इन्हें पातालीय चट्टान भी कहा जाता है। ये बड़े कणों वाली आग्नेय चट्टान होती है। इनका निर्माण गहराई में होता है अतः लावा धीरे-धीरे जमा होता है, इसीलिए इनके कणों की बनावट ठीक प्रकार से होती है। ये चट्टानें गहराई में पायी जाने वाली सबसे प्राचीन चट्टाने हैं, किन्तु पिघला हुआ मैग्मा पूर्व स्थित चट्टान में घुसकर जमा हो जाता है। इस चट्टान में पाए जाने वाले मुख्य खनिज फेल्सपार 52.3%, क्वार्ट्ज 31.3%, अभ्रक 11.5%, हार्नब्लेण्ड 2.4% लौह खनिज 2.0% तथा अन्य 0.51% है। सामान्य तौर पर इसका रंग हल्का होता है, किन्तु आर्थोक्लेज की मात्रा की अधिकता के कारण इसका रंग गुलाबी तथा हार्नब्लेण्ड एवं बायोराइट की अधिकता के कारण काला हो जाता है।

(2) बेसाल्ट (Basalt) - बेसाल्ट एक बाह्य आग्नेय चट्टान है। धरातल पर लावा के ठण्डा होकर जम जाने के कारण बेसाल्ट चट्टान की उत्पत्ति होती है। लावा तीव्रता से जमने के कारण इसके कणों का आकार छोटा होता है। यह कण चमकीले तथा ग्रेनाइट की तुलना में नीले रंग के भी होते है। नीले बेसाल्ट को ट्रेप भी कहा जाता है। इसमें फेल्सपार सर्वाधिक मात्रा में पाया मुलायम होते हैं। जाता है। इसके अतिरिक्त अगाइट, ऑलविन खनिज लौह तथा अन्य खनिज पाए जाते हैं। कुछ बेसाल्ट हरे व

(3) पेरिडोटाइट (Peridotite ) - यह ऑलविन तथा अगाइट नामक खनिज की अधिकता से बनी है। इनके अतिरिक्त हार्नब्लेण्ड, बायोराइट भी पाए जाते है। इसमें सिलिका की मात्रा कम होती है तथा कण मोटे होते है। यह महत्वपूर्ण चट्टान है क्योंकि इसमें निकिल, क्रोमियम एवं प्लेटिनम जैसी महत्त्वपूर्ण धातुएँ भी पायी जाती है।

(4) डायोराइट (Diorite ) - इन्हें पातालीय चट्टान भी कहते हैं। इनके कण बड़े होते है। यह चट्टानें ग्रेनाइट से भी अधिक भारी होती है। इसमें फेल्सपार सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। फेल्सपार के अतिरिक्त हार्नब्लैण्ड नामक खनिज भी पाया जाता है। इनके अतिरिक्त बायोराइट, अगाइट तथा पाइरोक्लीन नामक खनिज भी पाए जाते हैं। इसका रंग काला, गहरा भूरा तथा हरा होता है।

(5) ग्रेवो (Grabo) - यह आन्तरिक (पातालीय) आग्नेय चट्टान है जिसमें पाए जाने वाले कण मोटे होते हैं। इसका निर्माण फेल्सपार तथा अगाइट नामक खनिजों से हुई है। इसका रंग काला होता है क्योंकि इसमें पाइरोक्लीन तथा ऑलविन की अधिकता होती है। इसका रंग काले के अतिरिक्त गहरा हरा एवं धूसर होता है।

agney chattan ki sthiti

आग्नेय चट्टानों के क्षेत्र -

यह विश्व की सबसे प्राचीन चट्टाने हैं। इनकी आयु लगभग 15 अरब वर्ष आँकी गयी है। ऐसी चट्टाने प्रायद्वीपीय भारत में भी पायी जाती है। राजस्थान का अरावली पर्वत, छोटा नागपुर की गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ, राजमहल की श्रेणी और राँची का पठार इस प्रकार की चट्टानों के बने है । अजन्ता की गुफाएँ इन्हीं को काटकर बनायी गयी हैं।

आग्नेय चट्टानों का आर्थिक उपयोग (Economic Utility of Igneous Rocks) 'आग्नेय चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते है। अधिकांश खनिज इसी प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं। लौह, अयस्क, हीरा, सोना, चाँदी, सीसा, जस्ता, ताँबा, मैगनीज आदि महत्वपूर्ण खनिज आग्नेय चट्टानों में पाये जाते हैं। प्रमुख आग्नेय चट्टानें निम्नलिखित हैं :

(1) ग्रेनाइट (Granite ) - ग्रेनाइट चट्टान सर्वाधिक गहराई पर पायी जाती है। इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होने के कारण इन्हें अम्ल चट्टाने भी कहा जाता है। अधिक गहराई पर पायी जाने के कारण इन्हें पातालीय चट्टान भी कहा जाता है। ये बड़े कणों वाली आग्नेय चट्टान होती है। इनका निर्माण गहराई में होता है अतः लावा धीरे-धीरे जमा होता है, इसीलिए इनके कणों की बनावट ठीक प्रकार से होती है। ये चट्टानें गहराई में पायी जाने वाली सबसे प्राचीन चट्टाने हैं, किन्तु पिघला हुआ मैग्मा पूर्व स्थित चट्टान में घुसकर जमा हो जाता है। इस चट्टान में पाए जाने वाले मुख्य खनिज फेल्सपार 52.3%, क्वार्ट्ज 31.3%, अभ्रक 11.5%, हार्नब्लेण्ड 2.4% लौह खनिज 2.0% तथा अन्य 0.51% है। सामान्य तौर पर इसका रंग हल्का होता है, किन्तु आर्थोक्लेज की मात्रा की अधिकता के कारण इसका रंग गुलाबी तथा हार्नब्लेण्ड एवं बायोराइट की अधिकता के कारण काला हो जाता है।

(2) बेसाल्ट (Basalt) - बेसाल्ट एक बाह्य आग्नेय चट्टान है। धरातल पर लावा के ठण्डा होकर जम जाने के कारण बेसाल्ट चट्टान की उत्पत्ति होती है। लावा तीव्रता से जमने के कारण इसके कणों का आकार छोटा होता है। यह कण चमकीले तथा ग्रेनाइट की तुलना में नीले रंग के भी होते है। नीले बेसाल्ट को ट्रेप भी कहा जाता है। इसमें फेल्सपार सर्वाधिक मात्रा में पाया मुलायम होते हैं। जाता है। इसके अतिरिक्त अगाइट, ऑलविन खनिज लौह तथा अन्य खनिज पाए जाते हैं। कुछ बेसाल्ट हरे व

(3) पेरिडोटाइट (Peridotite ) - यह ऑलविन तथा अगाइट नामक खनिज की अधिकता से बनी है। इनके अतिरिक्त हार्नब्लेण्ड, बायोराइट भी पाए जाते है। इसमें सिलिका की मात्रा कम होती है तथा कण मोटे होते है। यह महत्वपूर्ण चट्टान है क्योंकि इसमें निकिल, क्रोमियम एवं प्लेटिनम जैसी महत्त्वपूर्ण धातुएँ भी पायी जाती है।

(4) डायोराइट (Diorite ) - इन्हें पातालीय चट्टान भी कहते हैं। इनके कण बड़े होते है। यह चट्टानें ग्रेनाइट से भी अधिक भारी होती है। इसमें फेल्सपार सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। फेल्सपार के अतिरिक्त हार्नब्लैण्ड नामक खनिज भी पाया जाता है। इनके अतिरिक्त बायोराइट, अगाइट तथा पाइरोक्लीन नामक खनिज भी पाए जाते हैं। इसका रंग काला, गहरा भूरा तथा हरा होता है।

(5) ग्रेवो (Grabo) - यह आन्तरिक (पातालीय) आग्नेय चट्टान है जिसमें पाए जाने वाले कण मोटे होते हैं। इसका निर्माण फेल्सपार तथा अगाइट नामक खनिजों से हुई है। इसका रंग काला होता है क्योंकि इसमें पाइरोक्लीन तथा ऑलविन की अधिकता होती है। इसका रंग काले के अतिरिक्त गहरा हरा एवं धूसर होता है।