व्यवस्थापन (vyavasthapan)


व्यवस्थापन

व्यवस्थापन भी सामाजिक अन्तःक्रिया का एक रूप है । यह सामाजिक प्रक्रिया प्रत्येक व्यक्ति , समूह , देश जाति और संस्कृति में पाई जाती है । दो संस्कृतियाँ मिलती हैं , एक सांस्कृतिक समूह के लोग दूसरे सांस्कृतिक समूह में जाते है , एक सांस्कृतिक समूह का कानून दूसरे सांस्कृतिक समूह पर लागू किया जाता है- इन सभी अवस्थाओं में संस्कृतियों में संघर्ष होता है , किन्तु यह संघर्ष अधिक दिनों तक स्थायी नहीं रहता है । दोनों संस्कृतियाँ एक दूसरे को तो आत्मसात नहीं कर पाती है । फिर भी वे एक - दूसरे के साथ अनुकूलन कर लेती है । वातावरण में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । यह आवश्यक नहीं है कि समस्त परिवर्तन व्यक्ति के अनुकूल ही हो । कुछ परिवर्तन प्रतिकूल भी हो सकते है । प्रतिकूल परिवर्तन से व्यक्ति शीघ्र ही सामंजस्य नहीं कर पाता , इसलिए संघर्ष करता है । संघर्ष के बावजूद भी व्यक्ति वातावरण को अपनी इच्छानुसार नहीं बदल सकता है । फलतः धीरे - धीरे वातावरण के साथ समायोजन कर लेता है । समायोजन की इसी प्रक्रिया को व्यवस्थापन कहते हैं । इसी प्रकार प्रेम और द्वेष मानव मन की दो अवस्थाएँ है । मन में जब द्वेष की भावना उग्र हो जाती है तो विद्रोह का जन्म होता है । यह विद्रोह अधिक दिन तक स्थायी नहीं रहता है । व्यक्ति की मनोवृत्ति में परिवर्तन आता है । यह अवस्था में वह प्रेम तो नहीं करता है । प्रेम और द्वेष दोनों के बीच की इसी अवस्था का नाम व्यवस्थापन है ।

व्यवस्थापन की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने व्यवस्थापन की निम्न परिभाषाएँ दी है -

( 1 ) मैकाइवर और पेज के अनुसार- ' व्यवस्थापन का अभिप्राय विशेषकर उस प्रक्रिया से है जिससे मनुष्य अपने पर्यावरण से सामंजस्य की भावना उत्पन्न कर लेता है । '
( 2 ) रयूटर और हार्ट के अनुसार- " एक प्रक्रिया के रूप में व्यवस्थापन प्रयत्नों का वह क्रम है जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं ही आदतों और दृष्टिकोणों का इस प्रकार निर्माण करते है जिसमे परिवर्तन दशाओं के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सके । एक दशा के रूप में व्यवस्थापन संबंधों की वह स्वीकृति और मान्यता है . जिसके द्वारा समूह में व्यक्ति की स्थिति अथवा सम्पूर्ण सामाजिक संगठन में समूह की स्थिति के परिभाषित करती है । "
( 3 ) आगवर्न और निमकॉफ के अनुसार- " व्यवस्थापन शब्द का प्रयोग समाजशास्त्रियों द्वारा विरोधी व्यक्तियों तथा समूहों के समायोजन के लिए किया जाता है । "

( 4 ) गिलिन और गिलिन के अनुसार- " व्यवस्थापन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति और समूह सहयोगी एकता की स्थापना के लिए अपनी विरोधपूर्ण क्रियाओं का उससे सामंजस्य कर लेते हैं । "
( 5 ) जोन्स- " एक अर्थ में व्यवस्थापन असहमत रहने के लिए समझौता कहा जा सकता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि व्यवस्थापन एक प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति या समूह कुछ समय के लिये अपनी क्रियाओं में इन प्रकार परिवर्तन कर लेते है कि बाध्य परिस्थितियाँ उनके अनुकूल हो जाती है और ऐसा इसलिए करते है ताकि वे एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति कर सकें ।

व्यवस्थापन की प्रकृति

व्यवस्थापन की प्रकृति संबंधी निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं ।
( 1 ) संपर्ष का परिणाम ( Outcome of Conflict ) - व्यवस्थापन संघर्ष का स्वाभाविक परिणाम है । संघर्ष के बीजों से ही व्यवस्थापन का विशाल वृक्ष तैयार होता है । संघर्ष अनिरन्तर प्रक्रिया है । कुछ समय बाद संघर्ष को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है और इसके लिये व्यवस्थापन की आवश्यकता पड़ती है । युद्ध के मैदान में शान्ति के बारे में सोचा - विचारा जाता है । दो देशो , दो व्यक्तियों , दो समूहों में पहले संघर्ष होता है और इस संघर्ष के बाद व्यवस्थापन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है । जब तक संघर्ष नहीं होगा , व्यवस्थापन करना संभव नहीं है ।
( 2 ) अधिकांशत : अचेतन प्रक्रिया ( Mostly Unconcious Process ) - व्यवस्थापन एक प्रक्रिया है , किन्तु अधिकांशतः यह प्रक्रिया अचेतन होती है । सामाजिक संबंध अमूर्त होते है । इन संबंधों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है । इस प्रभाव का हमें कोई ज्ञान नहीं होता है । धीरे - धीरे हम व्यवस्थापन की प्रक्रिया में आगे बढ़ते राते है जिसका ज्ञान हमें बहुत बाद में होता है , इसलिए अधिकांश अवस्थाओं में व्यवस्थापन की प्रक्रिया अचेतन होती है ।
( 3 ) निरन्तर प्रक्रिया ( Continuous Process ) - व्यवस्थापन एक प्रक्रिया है और मॉक प्रक्रिया निरन्तर होती है , उसमें कभी भी बाधा नहीं आती है । इसलिए व्यवस्थापन की प्रक्रिया गतिशील रहती है । जैसे श्वास प्रक्रिया हमेशा गतिशील रहती है ।
( 4 ) सार्वभौमिक प्रक्रिया ( Universal Process ) - व्यवस्थापन सभी देश काल और समाजों में है इसीलिए व्यवस्थापन की प्रक्रिया भी सार्वभौमिक होती है । हर समय होता रहता है । व्यवस्थापन का संबंध सामाजिक संबंधों से है और संबंध हर समाज में पाये जाते हैं इसलिए व्यवस्थापन की प्रक्रिया भी सार्वभौमिक होती है ।
( 5 ) प्रेम और घृणा मिश्रित ( Ambivalence ) - समाज में सहयोग और संघर्ष दोनों ही पाये जाते है , व्यवस्थापन भी संघर्ष का ही परिणाम होता है और व्यवस्थापन के द्वारा ही सहयोग स्थायी होता है । सहयोग प्रेम पर और संघर्ष घृणा पर आधारित है । जिस प्रकार व्यवस्थापन में सहयोग और संघर्ष दोनों सन्निहित रहते है उसी प्रकार इसमें प्रेम और घृणा भी समान रूप से विद्यमान रहते हैं । इसीलिए आगबर्न और निमकॉफ ने लिखा है कि " व्यवस्थापन में घृणा और प्रेम की प्रवृत्तियों का सह अस्तित्व है । "

व्यवस्थापन के प्रकार

व्यवस्थापन विभिन्न प्रकार का होता है । यह समय और परिस्थितियों पर निर्धारित होता है । व्यवस्थापन के प्रमुख प्रकार निम्न है :
( 1 ) व्यवस्थापन का एक रूप वह है जिसमें दो व्यक्ति या दो समह समान शक्तिशाली होने के कारण प्रतिस्पर्धा छोड़कर कार्य करते हैं इसमें दोनों पक्षों का समान अस्तित्व बना रहता है ।
( 2 ) दो व्यक्तियों या दो समूहों में जब संघर्ष या युद्ध होगा तो इसमें एक स्थिति ऐसी आती है जब एक व्यक्ति या समूह दूसरे का लोहा मान लेता है और अपनी पराजय स्वीकार कर लेता है ।
( 3 ) व्यवस्थापन परतंत्रता के रूप में भी होता है । इसमें व्यक्ति या समूह अपने से दूसरे को प्रधानता देता है । यह व्यवस्थापन गौड़ता के रूप में होता है ।
( 4 ) एक प्रकार का व्यवस्थापन निर्बल या समूह और व्यक्ति के बीच में होता है । इसे समझौता व्यवस्थापन कहा जाता है ।

व्यवस्थापन की पद्धतियाँ

व्यवस्थापन दो व्यक्तियों या दो समूहों के बीच में होता है । यह व्यवस्थापन किन विधियों से होता है । दूसरे शब्दों में व्यवस्थापन के कौन कौन से यंत्र या साधन है ? संक्षेप में व्यवस्थापन की निम्न विधियाँ हैं ।
( 1 ) समझौता ( Compromise ) - समझौता दो व्यक्तियों या समूहों के बीच होता है । समझौता का मुख्य कारण यह है कि इसमें दोनों व्यक्ति या दोनों समूह समान शक्तिशाली होते है । जब किसी बात पर दो समूहों के बीच संघर्ष होने की संभावना रहती है और इससे हानि दिखाई पड़ती है तो दोनों समझौता कर लेते हैं । दोनों दलों के बीच विरोध की भावना तो बनी रहती है , किन्तु सामान्य बातो पर समझौता कर लिया जाता है । यह समझौता राजनैतिक दलों और राष्ट्रो के बीच में होता है ।
( 2 ) स्थिति परिवर्तन ( Coversion ) - इस प्रकार का व्यवस्थापन धर्म के क्षेत्र से होता है । अधिकांशतः निर्बल पक्ष वाले सबल पक्ष वालों की स्थिति के अनुसार ही अपनी स्थिति भी बदल लेते है । अधिकांशतः यह देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति अपना धर्म और अपनी संस्कृति को छोड़कर दूसरे की संस्कृति और धर्म को अपनाकर व्यवस्थापन करते हैं ।

( 3 ) पंच निर्णय ( Arbitration ) - पंच निर्णय के द्वारा भी व्यवथापन किया जाता है । इस प्रकार व्यवस्थापन पंचों की राय के अनुसार होता है । दोनों दल अपनी इच्छा से व्यवस्थापन नहीं करते है । जब दो व्यक्तियों या समूहों में संघर्ष होता है या संघर्ष होने की संभावना रहती है तो इस संघर्ष को टालने के लिए तीसरे व्यक्ति या समूह को समस्त अधिकार दे दिये जाते हैं । वहीं इन दोनों की मध्यस्थता करता है । इसके निर्णय के अनुसार दोनों को व्यवस्थापन करना पड़ता है ।
( 4 ) सहनशीलता ( Sublimation ) - सहनशीलता व्यवस्थापन का आधार है । यही सहनशीलता एकपक्षीय या दोनों पक्षों से संबंधित हो कती है । मानव स्वभाव में उदारता और सहानुभूति का प्रमुख स्थान है । इसके द्वारा वह दूसरे की स्थिति को -मझता है और उसी के अनुसार अपने को परिवर्तित कर लेता है ।
( 5 ) स्थानापन्ता ( Sublimsion ) - मनुष्यों के अनेक उद्देश्य होते है । ये सभी उद्देश्य पूरे नहीं हो पाते है । स्थानापन्न्ता के द्वारा मनुष्य या समूह उन उद्देश्यों को त्याग देते है जिनको प्राप्त करना कठिन होता है और उनके स्थान पर नवीन परिस्थितियों के अनुसार नवीन उद्देश्य निर्धारित कर लेते हैं ।
( 6 ) युक्तिकरण ( Rationalization ) - यह एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है । इसके द्वारा व्यक्ति या समूह क्रियाओं से स्वयं अपना व्यवस्थापन करना चाहता है । इस क्रिया के द्वारा व्यक्ति अपने कार्यों , विचारों और स्थिति को किसी न किसी तरीके के द्वारा उचित समझता है । जैसे जब विद्यार्थी परीक्षा में फेल हो जाता है , तो कहता है कि प्रश्न - पत्र कठिन था या परीक्षक का मूड ( mood ) कापी जाँचते समय अच्छा नहीं था ।
( 7 ) बल प्रयोग ( Coercion ) - व्यवस्थापन बल - प्रयोग के द्वारा भी किया जाता है । बल शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का हो सकता है । इसके द्वारा भी एक व्यक्ति या समूह दूसरे व्यक्ति या समूह को अपने अनुकूल बनाता है । युद्ध के पश्चात बल प्रयोग द्वारा ही विजेता और विजित में व्यवस्थापन होता है ।

व्यवस्थापन और समाज

समाज को एकीकृत करने के लिए अनेक प्रक्रियाएँ होती हैं । इन प्रक्रियाओं में व्यवस्थापन का महत्व सबसे अधिक है । व्यवस्थापन के समाज संतुलित रहता है और समाज के संतुलित रहने के कारण समाज का संगठन बना रहता है , इसलिए सामाजिक संगठन के लिए समाज में व्यवस्थापन महत्वपूर्ण प्रक्रिया है । समाज में प्रतियोगिता और संघर्ष की प्रक्रियाएँ भी निरन्तर क्रियाशील रहती है । यदि इन्हें नहीं रोका जाएगा तो समाज की प्रगति ही रुक जायेगी अतः सामाजिक प्रगति में लिये भी व्यवस्थापन का अत्यधिक महत्व है

व्यवस्थापन की प्रक्रिया के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों , समूहों , धर्मों , संस्कृतियों और विचारधाराओं में समन्वय स्थापित किया जा सकता है । ऐसा करने से समूह की शक्ति में वृद्धि होती है । व्यवस्थापन के द्वारा संस्थाओं में संशोधन होता है । नवीन परिस्थितियों के अनुसार समाज का संशोधन होता रहता है । जैसे जाति - व्यवस्था की संस्था अगर औद्योगीकरण और नगरीकरण के अनुसार अपने में संशोधन करती है तो समाप्त हो जाती । साथ ही इसके द्वारा आत्मसात को प्रोत्साहन मिलता है ।

व्यवस्थापन के परिणाम

यदि हम व्यक्ति की विवेचना उसके सामाजिक जीवन की दृष्टि से करे , तो ऐसा प्रतीत होता है कि इसका अत्यधिक महत्व है । संक्षेप में इसके परिणाम को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है ।

  1. सामाजिक जीवन संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से पूर्ण है । इसका परिणाम यह होता है कि समाज में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न होती है और इसका अवश्यभावी परिणाम होता है सामाजिक विघटन । इस प्रकार व्यवस्थापन असंतुलनकारी और विघटनकारी परिस्थितियों को सुधारने में सहायता करता है ।
  2. व्यवस्थापन समाज में सहयोग की स्थापना करता है । इससे सामाजिक विकास और प्रगति में मदद मिलती है ।
  3. व्यवस्थापन समाज में एकता की स्थाना करता है । व्यवस्थापन की सहायता से अंधी प्रतियोगिता में खर्च किया जाने वाला व्यर्थ का पैसा रोका जा सकता है । इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि उपभोक्ताओं को आवश्यक वस्तुएँ सस्ते मों पर प्राप्त होती है ।
  4. समाज - पक्तियों का अजायबघर है । इसमें विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति होते है । व्यवस्थापन के द्वारान विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों में समन्वय की स्थापना करने में मदद मिलती है ।
  5. व्यवस्थापन व्यक्तियों को नवीन परिस्थितियों के अनुकूलन करने के योग्य बनाता है ।
  6. व्यवस्थापन आत्मसात के लिए मार्ग प्रशस्त कर देता है ।

Popular posts from this blog

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि करांहि । मुक्ताफल मुक्ता चुगै, अब उड़ी अनत न जांहि ।।

हिन्दू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाई । कहै कबीरा सो जीवता, जो दुहूं के निकट न जाई ।।

गोदान उपन्यास का सारांश (godan upanyas ka saransh)