नर व मादा जनन तंत्र (nar mada janan tantra 2)


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जनन स्वास्थ्य -

जैसा कि हम देख चुके हैं, लैंगिक परिपक्वता एक क्रमिक प्रक्रम है तथा यह उस समय होता है जब शारीरिक वृद्धि भी होती रहती है । अतः किसी सीमा ( आंशिक रूप से ) तक लैंगिक परिपक्वता का अर्थ यह नहीं है कि शरीर अथवा मस्तिष्क जनन क्रिया अथवा गर्भधारण योग्य हो गए हैं । हम यह निर्णय किस प्रकार ले सकते हैं कि शरीर एवं मस्तिष्क इस मुख्य उत्तरदायित्व के योग्य हो गया है ? इस विषय पर हम सभी किसी न किसी प्रकार का दबाव है । इस क्रिया के लिए हमारे मित्रों का दबाव भी हो सकता है, भले ही हम चाहें या न चाहें । विवाह एवं संतानोत्पत्ति के लिए पारिवारिक दबाव भी हो सकता है । संतानोत्पत्ति से बचकर रहने का, सरकारी तंत्र की ओर से भी दबाव हो सकता है । ऐसी अवस्था में कोई निर्णय लेना काफ़ी मुश्किल हो सकता है ।

यौन क्रियाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में भी हमें सोचना चाहिए । हम कक्षा 9 में पढ़ चुके है कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को रोगों का संचरण अनेक प्रकार से हो सकता है क्योंकि यौनक्रिया में प्रगाढ़ शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं अत: इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि अनेक रोगों का लैगिक संचरण भी हो सकता है । इसमें जीवाणु जनित जैसे गोनेरिया तथा सिफलिस एवं वाइरस संक्रमण जैसे कि मस्सा ( Wart ) तथा HIV AIDS शामिल है । लैगिक क्रियाओं के दौरान क्या इन रोगों के संचरण का निरोध संभव है ? शिश्न के लिए आवरण अथवा कंडोम के प्रयोग से इनमें से अनेक रोगों के संचरण का कुछ सीमा तक निरोध संभव है । यौन ( लैगिक ) क्रिया द्वारा गर्भधारण की संभावना सदा ही बनी रहती है । गर्भधारण की अवस्था में स्त्री के शरीर एवं भावनाओं की मांग एवं आपूर्ति बढ़ जाती है एवं यदि वह इसके लिए तैयार नहीं है तो इसका उसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अतः गर्भधारण रोकने के अनेक तरीके खोजे गए हैं । यह गर्भरोधी तरीके अनेक प्रकार के हो सकते हैं । एक तरीका यात्रिक अवरोध का है जिससे शुक्राणु अडकोशिका तक न पहुँच सके । शिश्न को ढकने वाले कंडोम अथवा योनि में रखने वाली अनेक युक्तियों का उपयोग किया जा सकता है ।

दूसरा तरीका शरीर में हार्मोन संतुलन के परिवर्तन का है जिससे अंड का मोचन ही नहीं होता अतः निषेचन नहीं हो सकता । ये दवाएँ सामान्यतः गोली के रूप में ली जाती है । परंतु ये हार्मोन संतुलन को परिवर्तित करती हैं अत: उनके कुछ विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं । गर्भधारण रोकने के लिए कुछ अन्य युक्तियाँ जैसे कि लूप अथवा कॉपर - टी ( Copper - T ) को गर्भाशय में स्थापित करके भी किया जाता है परंतु गर्भाशय के उत्तेजन से भी कुछ विपरीत प्रभाव हो सकते हैं । यदि पुरुष की शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध कर दिया जाए तो शुक्राणुओं का स्थानांतरण रुक जाएगा । यदि स्त्री की अंडवाहिनी अथवा फेलोपियन नलिका को अवरुद्ध कर दिया जाए तो अंड ( डिंब ) गर्भाशय तक नहीं पहुँच सकेगा । दोनों ही अवस्थाओं मेंनिषेचन नहीं हो पाएगा । शल्यक्रिया तकनीक द्वारा इस प्रकार के अवरोध उत्पन किए जा सकते हैं । यद्यपि शल्य तकनीक भविष्य के लिए पूर्णत: सुरक्षित है, परंतु अमावध रानीपूर्वक की गई शल्यक्रिया से संक्रमण अथवा दूसरी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं । शल्यक्रिया द्वारा अनचाहे गर्भ को हटाया भी जा सकता है ।

इस तकनीक का दुरुपयोग उन लोगों द्वारा किया जा सकता है जो किसी विशेष लिंग का बच्चा नहीं चाहते, ऐसा गैरकानूनी कार्य अधिकतर मादा गर्भ के चयनात्मक गर्भपात हेतु किया जा रहा है । एक स्वस्थ समाज के लिए, मादा - नर लिंग अनुपात बनाए रखना आवश्यक है । यद्यपि हमारे देश में भ्रूण लिंग निर्धारण एक कानूनी अपराध है । हमारे समाज की कुछ इकाइयों में मादा भ्रूण की निर्मम हत्या के कारण हमारे देश में शिशु लिंग अनुपात तीव्रता से घट रहा है जो चिंता का विषय है । हमने पहले देखा कि जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं । एक समष्टि में जन्मदर एवं मृत्युदर उसके आकार का निर्धारण करते हैं । जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिंता का विषय है इसका मुख्य कारणयह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाना दुष्कर कार्य है । यदि सामाजिक असमानता हमारे समाज के निम्न जीवन स्तर के लिए उत्तरदायी है तो जनसंख्या के आकार का महत्व इसके लिए अपेक्षाकृत कम हो जाता है ।