पत्रकारिता के विभिन्न प्रकारों पर एक निबंध (patrakarita ke vibhinna prakaro par ek nibandh)
वर्तमान में पत्रकारिता का क्षेत्र असीमित हो गया है । आज मानव की जिज्ञासा का एक भी बिन्दु या क्षेत्र पत्रकारिता के प्रभाव या आभा से अछूता नहीं है । यहाँ तक कि मानव, पशु, पक्षी, जीव - जन्तु सभी के व्यक्तिगत जीवन में भी अनाधिकार पूर्ण दखलन्दाजी पत्रकारिता के नाम पर हो रही है । आज पत्रकार अपनी रुचि एवं प्रवृत्ति के अनुसार विशिष्ट क्षेत्रों का चयन कर अपनी कलम चला रहे हैं । इन क्षेत्रों का संक्षेप में विवरण निम्नानुसार है -
( 1 ) अन्वेषी या खोजी पत्रकारिता- किसी समाचार को साक्ष्य एवं तथ्यपूर्ण बनाने के लिये जब पत्रकार अपने स्वयं के बल पर इन जानकारियों को खोज निकालता है, जो जानकारियाँ सामान्य जन के संज्ञान में नहीं होतीं लेकिन सार्वजनिक महत्व की होती हैं, वह सब अन्वेषण या खोजी पत्रकारिता का अंग मानी जाती हैं । वर्तमान में ' पीत ' पत्रकारिता के रूप में यह क्षेत्र बदनाम हो चुका है । कई समाचारों को अगर काल्पनिक प्रसंगों, अफवाहों, अप्रमाणित तथ्यों के आधार पर प्रकाशित कर दिया जाये तो वह पत्रकारिता की तौहीन है । ऐसे हालातों में पत्रकार जासूस या अन्वेषणकर्त्ता की भूमिका अदा कर सच्चाई निकाल कर लाता है । वर्तमान में आर्थिक विषमताओं, उलट - फेरों, और आकण्ठ भ्रष्टाचार में संलिप्त विभागों - अधिकारियों से सही खबर के मिलने की गुंजाइश न के बराबर रहती है । ऐसे में सूझबूझ और तर्कसंगत् विवेक वाला पत्रकार खोजी प्रवृत्ति से ही सत्य के निकट पहुँचता है और पाठकों को सत्य से अवगत कराता है । जैसे- ' वाशिंगटन पोस्ट ' के दो संवाददाता वर्नस्टाइन और वुडवर्ग ने अपनी प्रतिभा तथा तत्परता के बल पर गुप्तचर का युगान्तरकारी कार्य किया, फलतः ' वाटरगेट काण्ड ' से सत्ता परिवर्तन हुआ ।
( 2 ) आर्थिक या व्यावसायिक पत्रकारिता- आज की पत्रकारिता पूँजीपतियों के इर्द - गिर्द घूमने तथा दया पर पलने वाली कही जाने लगी है । इसके पीछे मुख्य कारण वर्तमान में एक सफल समाचार पत्र के लिये उसकी सफल या सुदृढ़ आर्थिक स्थिति का होना आवश्यक है । यह सुदृढ़ता बाजार से मिलने वाले विज्ञापन पर निर्भर है । यह विज्ञापनदाता पूँजीपति वर्ग है, इसीलिये आज अखबार की मुख्य धुरी पूँजीपति बन गये हैं । विभिन्न व्यापारिक और वाणिज्यिक खबरों का प्रकाशन अब पत्रों में प्रमुख के साथ होने लगा है । यही कारण है कि अब प्रायः सभी समाचार पत्र एक - एक, दो - दो पेज व्यापार - वाणिज्य, कार्पोरेट जगत् आदि के नाम से ही देने लगे हैं । शेयर बाजार, मुद्रा बाजार, पूंजी बाजार, वस्तु बाजार, पंचवर्षीय योजना, बैंक की योजनायें, ग्रामोद्योग, उद्योग, श्रम, बजट, और राष्ट्रीय आय के समाचार अब पाठकों की रुचि का केन्द्र बनते जा रहे हैं । इसीलिये तो ' द इकोनामिक टाइम्स ', ' दैनिक अकोला बाजार समाचार ', ' व्यापार भारती ', और ' फाइनेन्शियल एक्सप्रेस ' जैसे महत्वपूर्ण पत्रों द्वारा उद्योग - व्यवसाय की जानकारी दी जा रही है ।
( 3 ) ग्रामीण पत्रकारिता ( आंचलिक पत्रकारिता ) - भारत गाँवों का देश है । यह सुनते कहते और पढ़ते हम थकते नहीं हैं लेकिन आजादी के 60 वर्ष बाद भी भारतीय पत्रकारिता में 80 प्रतिशत भारत की तस्वीर आस्मिक घटनाओं से अधिक नहीं उभरी । दरअसल अब तक ग्रामीण पत्रकारिता की अवधारणा सुनिश्चित नहीं हो पाई है । भारत के अधिकांश समाचार - पत्र महानगरों तक सिमटे रहे हैं, फिर भी आज कुछ समाचार - पत्रों की नजर गाँवों तक पहुँची है और उन्होंने आँचलिक संवाददाता खड़े कर खेती - किसानी, कृषि - बागवानी, ग्रामीण – अँचल से, चौपाल में, खेति - खलिहान आदि शीर्षकों से स्थायी कॉलम्स के सहारे गाँवों की ओर झाँकना शुरू किया है । इतना ही नहीं मृत प्रायः होती लोकसंस्कृति, संस्कार और पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं की ओर प्रमुख समाचार - पत्रों ने ध्यान आकर्षित करना प्रारम्भ किया । कृषि पत्रकारिता में मिट्टी, खेती, बीहड़, बंजर भूमि, उर्वरा शक्ति, फसलें, पैदावार, कृषि रसायन, कीट रसायन वनस्पति, औषधि, पशुपालन, बाजार - भाव, दुग्ध उत्पादन, तिलहन उत्पादन, फल उत्पादन आदि से सम्बन्धित समाचार आते हैं ।
( 4 ) पुरातत्व एवं ऐतिहासिक पत्रकारिता- भारत के अधिकांश क्षेत्रों में ऐतिहासिक स्थल और पुरातत्व के महत्व की चीजें मिल जाया करती हैं । इन ऐतिहासिक स्थलों को पर्यटन स्थलों में परिणित करने तथा इनकी ऐतिहासिक विशेषतायें और महत्व बताने हेतु जो पत्रकार कार्य करते हैं, वह पुरातात्विक पत्रकारिता के विकास पुरुष कहलाते हैं । इसी के अन्तर्गत पुरातात्विक महत्व की वस्तुयें भी आती हैं । प्रायः समाचार पत्र अपने परिशिष्ट विशेष में इनका उल्लेख करते हैं ।
( 5 ) न्यायालयीन पत्रकारिता- हमारे देश में लाखों मामले कोर्ट - कचहरी में न्याय की प्रतीक्षा में हैं, जिन में से प्रतिदिन ही किसी - न - किसी मामले की सुनवाई और निर्णय होता है लेकिन इन निर्णयों में जो सार्वजनिक महत्व के होते हैं, उन्हें प्रकाशित किया जाता है । इस कार्य के लिये बड़े - बड़े समाचार पत्र पृथक से न्यायालयीन पत्रकार नियुक्त कर देते हैं जो न्यायालयीन मामलों पर नजर रखते हैं । कोर्ट के फैसले, वारण्ट, सम्मन, आरोप - पत्र आदि का प्रकाशन इन्हीं के द्वारा होता है ।
( 6 ) संसदीय पत्रकारिता- देश के उत्थान - पतन का प्रतिबिम्ब संसद को और राज्यों के विकास का प्रतिबिम्ब विधानसभाओं को माना जाता है । लोकसभा - राज्यसभा विधानसभा, विधानपरिषद् आदि में जनकल्याणकारी योजनाओं की रूपरेखा से लेकर उनके सफल क्रियान्वयन पर चर्चा परिचर्चा, तर्क - वितर्क, बहसें होती हैं । इनसे आम जनता का रूबरू होना आवश्यक होता है । इसके लिये संसदीय संवाददाता नियुक्त रहते हैं । ये संवाददाता समझ - बूझ वाले, कानून के खासकर संसदीय प्रणाली की नियमावली के ज्ञाता होते हैं । संसद में विशेष पत्रकार दीर्घा होती है ।
( 7 ) खेल पत्रकारिता- प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का प्रमुख हिस्सा खेल भी है । हर एक की किसी न किसी खेल में रुचि है । अपनी - अपनी रुचि के अनुसार सब खेल की खबरें पढ़ना चाहते हैं । ' क्रिकेट ' का बुखार तो सब के सिर चढ़ के बोलने लगा है । इस आवश्यकता की पूर्ति खेल पेज, खेल जगत् द्वारा होती है । कुछ खेल विशेष जैसे ' क्रिकेट सम्राट ' आदि किताबें भी प्रकाशित हो रही हैं । ऐसे ही ' खेल - खिलाड़ी ', ' स्पोर्ट्स वीक ', ' खेल जगत् ', ' खेल युग ' आदि अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है । खेल पत्रकारिता में पत्रकार के लिये खेल से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान और नियमों की जानकारी होना चाहिये ।
( 8 ) बाल पत्रकारिता- नन्हें - मुन्नों की बाल - सुलभ चेष्टाओं को भी पत्रकारिता में स्थान मिलने लगा है । बच्चों की दुनियाँ अलग - ही होती है । उनकी बातें, व्यवहार, जिज्ञासा, कौतूहल और दिल को छू जाने वाली हरकतें इन सबको सहेजकर बच्चों की पत्रिकायें भी प्रारम्भ हुयीं और समाचार - पत्रों में विशेष परिशिष्ट भी । बाल मन के मनोभावों को समझने के लिये वरिष्ठ पत्रकारों को दायित्व सौंपे जाते हैं । बालकों की रुचि, प्रवृत्ति और आकांक्षाओं के अनुरूप सामग्री का चयन कठिन होता है, फिर भी वर्तमान में 'बाल सखा', 'चंपक', 'चंदामामा', 'पराग', 'नंदन', 'चुन्नू मुन्नू', 'बाल - भारती', 'चकमक' आदि पत्रिकाओं ने बच्चों की भावनाओं को उड़ेला है ।
( 9 ) फिल्मी पत्रकारिता- दूरदर्शन ने फिल्मी पत्रकारिता को सर्वाधिक महत्व का बना दिया है । दर्शकों का एक बड़ा वर्ग फिल्मी जगत् में होने वाली छोटी से छोटी घटना को समाचार के रूप में जानना चाहता है । चूँकि इस जगत् की सर्वाधिक चर्चा रहती है, और इसी जगत् की नग्नता पाठकों और दर्शकों में वृद्धि का कारण बनती है इसलिये इस जगत् के परिशिष्ट सप्ताह में दो दो बार प्रकाशित होते हैं । इस क्षेत्र की पत्रकारिता रोमांस और रोचकता से परिपूर्ण होती है । वैसे 'मधुपुरी', 'स्टारकॉस्ट', 'स्टारडम्स' आदि पत्रिकायें भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं ।
( 10 ) रेडियो पत्रकारिता- संवाददाता चाहे रेडियो के लिये काम करे या किसी समाचार पत्र का प्रतिनिधित्व करे दोनों में कोई विशेष अन्तर नहीं । रेडियो और प्रेस, दोनों के रिपोर्टर घटनाओं और परिस्थितियों में समाचार की तलाश कर, उसका समाचारिक मूल्यांकन करते हैं और फिर पाठकों व श्रोताओं के समक्ष इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि उनका समाचार सामयिक और जनता के लिये सुरूचिपूर्ण लगे । रेडियो और समाचार - पत्रों के समाचारों के चयन और प्रस्तुतीकरण का मापदण्ड एक समान होते हुये, रेडियो समाचार में वाचन की दृष्टि से उच्चारण का ध्यान रखते हुये ही शब्दों का चयन और संयोजन करना होता ।
( 11 ) टेलीविजन पत्रकारिता- दूरदर्शन के समाचार लिखते समय का विशेष ध्यान रखा जाता है । समाचार को समय के दायरे में ही स्पष्टता, प्रभावोत्पादक बनाकर प्रस्तुत करना होता है । इस तरह के समाचारों की शैली कठिन नहीं होनी चाहिये । दूरदर्शन के समाचारों की प्रामाणिकता उनके सचित्र समाचारों से होती है । इसलिये समाचार से सम्बन्धित चित्र भी होना चाहिये ।
( 12 ) फोटो पत्रकारिता- फोटो समाचार का प्राण होते हैं । फोटो पत्रकार की नजर पैनी होनी चाहिये । यह उसके स्वयं के कला - कौशल पर निर्भर करता है कि जो बात लम्बा - चौड़ा समाचार नहीं कह पाती, उससे भी कहीं अधिक प्रभावशाली बात फोटो कह देता है । फोटो पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक है । प्राकृतिक रूपों, पशुओं, वैज्ञानिक तकनीकि विकास, उपकरणों, ऐतिहासिक भवनों, दृश्यों, उत्सवों, समारोहों, घटनाओं, दुर्घटनाओं, प्रकृति प्रकोपों आदि के चित्र प्रतिदिन देखने को मिल जाते हैं । इन चित्रों की श्रृंखलामय प्रस्तुति फोटोफेशन, फोटोगैलरी, चित्र प्रदर्शनी आदि में देखी जा सकती है ।
( 13 ) व्याख्यापरक पत्रकारिता समाचारों को तथ्यपूर्ण जानकारी भेंटवार्ता और सम्बन्धित का वर्जन, वाइट आदि लेकर प्रस्तुत कर व्याख्यापरक पत्रकारिता में आता है । इसी के अन्तर्गत समाचार विश्लेषण का कार्य आता है, समाचार की पृष्ठभूमि तथा उसके भावी परिणाम को निर्देशित करने की समस्या है, जिसे व्याख्यापरक पत्रकारिता द्वारा हल किया जाता है । यह कार्य वरिष्ठ और अनुभवी पत्रकारों द्वारा किया जाता है ।
( 14 ) विकास पत्रकारिता सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक आदि सम्बन्धी समग्र विकास के पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली विकास पत्रकारिता कहलाती है । इसमें कभी - कभी सनसनीखेज और उत्तेजनात्मक तथ्य भी आ जाते हैं । इस क्षेत्र में केन्द्र सरकार की जनहितकारी योजनाओं को 'योजना' नामक पत्रिका द्वारा प्रस्तुत किया जाता है ।
( 15 ) भेंटवार्ता पत्रकारिता- भेंटवार्ता अपने में ही एक हुनर है । समाचार संकलन के सभी तरीकों मंत यह अत्यन्त प्रभावकारी होता है । भेंटवार्ता के लिये संवाददाता को जिससे भेंट करनी है, उसकी पूर्ण जानकारी होनी चाहिये । जिस विषय पर बात करनी है, उसकी तथ्यात्मक जानकारी होनी चाहिये । भेंटवार्ता करने वाले संवाददाता का व्यवहार पूर्ण शालीन और मर्यादित होना चाहिये । भेंटवार्ता पत्रकार में मिलनसारिता हाजिरजवाबी, कल्पनाशीलता, आदि गुण होना आवश्यक है ।