बुंदेली लोक साहित्य (bundeli lok sahitya)


बुंदेली लोक साहित्य

बुंदेली लोक साहित्य को निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टौंस ।

छत्रसाल सो लरन की,
रही ना काहू हौस ।

उक्त दोहे में बुन्देलखण्ड की सीमा को गोरेलाल तिवारी ने इस प्रकार दिखाया है- ' भारत के मध्य भाग में नर्मदा के उत्तर और यमुना के दक्षिण में विंध्याचल पर्वत की शाखाओं के समाकीर्ण और यमुना की सहायक नदियों के जल से सिंचित सृष्टि - सौन्दर्य अलंकृत जो प्रदेश है, वही बुन्देलखण्ड है । बुन्देली लोक साहित्य की सीमा का विस्तार इन्हीं क्षेत्रों को ध्यान में रखकर देख सकते हैं । बुन्देली लोक साहित्य में ईसुरी ' कवि का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है । लोक कवि ईसुरी द्वारा रचित ' फाग ' अत्यधिक प्रचलित है । बुन्देली लोक साहित्य को पाँच प्रकार से विभक्त किया गया है

1. बुंदेली लोकगीत - लोकगीत जनजीवन की भावपूर्ण एवं लयबद्ध शाब्दिक अभिव्यक्ति है । बुंदेली लोकगीतों में जातीय विशेषतायें एवं आदिम परम्परायें दृष्टिगोचर होती हैं । इसमें संस्कृति और संस्कार के विविध चित्रों के साथ - साथ मनोरंजन के तत्व भी मिलते हैं । बुंदेली लोकगीतों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
( 1 ) संस्कार गीत - बुंदेली लोक साहित्य में प्रत्येक संस्कार से संबंधित लोकगीत प्रचुर मात्रा में बिखरे हुये हैं । सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से ये संस्कार गीत अत्यन्त मूल्यवान हैं । जैसे- सोहर के गीत, बाई गीत, भौं लटकनी, नरा छीनना, रोचना, छटी, दस्टोन ( चौक ), कुआँ पूजन, मुण्डन, अन्न प्रासन, कर्ण छेदन, देवी गीत एवं पालन आदि के गीत विविध अवसर पर गाये जाते हैं ।
( 2 ) विवाह गीत- विवाह गीत भी यद्यपि संस्कार गीत ही हैं, जिसे निम्न चार भागों में बाँटा गया है

  • विवाह पूर्व के गीत- इसके अन्तर्गत वर - वधू पक्ष के विचार विमर्श लघुन ( लगुन ), मटिया बना, मंडप, मातृ ( माता ) पूजन, बाबू पूजन, देवी - देवताओं, चंदन, तेल, हल्दी एवं चीकट के गीत आते हैं ।
  • विशेष गीत- इसमें वर पक्ष एवं वधू पक्ष दोनो के गीत सम्मिलित हैं । वर पक्ष में बनरा एवं वधू पक्ष में सोहाग, बनरी, ऊबनी एवं बारात आगमन की प्रतीक्षा के गीत गाये जाते हैं ।
  • विवाह - समय के गीत- इसमें द्वाराचार, कुंवर - कलेऊ, चढ़ाव, पाँव - पखरई, भाँवर, गारी एवं विदा के गीत सम्मिलित हैं ।
  • विवाह - पश्चात् गीत- इसमें कंकण छोड़ने का गीत, दादरा एवं बाई गीत आदि आते हैं ।

( 3 ) ऋतु - संबंधी गीत- बुंदेली लोक - जीवन में ऋतु का विशेष महत्व है । विभिन्न ऋतुओ में भावमय एवं सरस गीत गाये जाते हैं । ये ऋतु गीत सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, धार्मिक, सांस्कृतक, साहित्यिक एवं प्राकृतिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इसमें संजा के गीत, मामुलिया के गीत, गरबा गीत, सुअटा या नौरता गीत, दीवारी गीत प्रमुख हैं ।
( 4 ) भक्ति / धार्मिक गीत - भक्ति एवं धर्म - संबंधी गीत हिन्दू संस्कृति को जागृत करने की दृष्टि से विशेष उपयोगी हैं । ये विविध पर्व, उत्सव एवं त्योहार पर गाये जाते हैं । जैसे- देवी देवता संबंधी गीत ( शीतला माता, भैरों, हनुमान, दुर्गा, शिव आदि ), राधा - कृष्ण संबंधी गीत, तीर्थ यात्रा के भोलागीत, सामान्य पद एवं भजन आदि ।
( 5 ) श्रम - संबंधी गीत- बुन्देलखण्ड की अधिकांश जनता ग्रामीण है । यहाँ पर कृषक जातियों में होली गीत, बिरहा गीत, चरवाहों एवं गड़ेरियों के गीत, श्रम करते समय के गीत तथा फसल बोने और काटने के गीत प्रमुख हैं । इसके अलावा स्त्रियाँ चक्की पीसते समय चक्की ( घट्टी ) के गीत, पानी भरते समय पनघट के गीत बहुत ही भावमय ढंग से गाती हैं ।

2. बुंदेली लोकगाथा - इस लोकगाथा में पद्यबद्ध प्रबन्धात्मक कथा है, जो किसी व्यक्ति अथवा घटना पर केन्द्रित होती है । बुंदेली में निम्नलिखित लोकगाथायें मिलती हैं

  1. हरदौल की गाथा,
  2. मथुरावली की गाथा,
  3. कारसदेव की गाथा,
  4. ढोला - मारू गाथा,
  5. प्रवीण राय की गाथा,
  6. महारानी लक्ष्मीबाई की गाथा,
  7. मर्दनसिंह की गाथा,
  8. धनसिंह की गाथा इत्यादि ।

3. बुंदेली लोककथा - लोककथा वे होती हैं जिन्हें हम न तो यथार्थ कह सकते हैं और नही मात्र कल्पना । ये मानव - जीवन और उनके अनुभव से संचित वे कथायें हैं, जिससे मनुष्य लोक विश्वास की डोर से बँधा हुआ है और उन्हें वे विविध पर्व, व्रत, त्योहार एवं उत्सव के अवसर पर कहता अथवा सुनता आया है । बुंदेली लोककथायें इस प्रकार हैं- लोकव्रत संबंधी कथायें, भैयादूज, कार्तिक चौथ, सकट चौथ, हरछठ ( मोरछठ ), हरतालिका तीज, ज्वारे, दसामाता, देवशयनी, सुहागलन आदि लोककथायें हैं । लोक त्योहार एवं लोक - उत्सव संबंधी कथायें जैसे- सावन या राखीपूनो, होली, दसरओ, दिवारी, धनतेरस, तुलसी विवाह, शरद उत्सव आदि प्रसिद्ध हैं ।

4. बुन्देली लोकनाट्य - बुंदेलखण्ड में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों लोकनाट्य का मंचन किया जाता है । बुंदेली लोकनाट्य को बच्चों तथा प्रौढ़ों दोनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है । बच्चों द्वारा प्रस्तुत नाट्य ' अटकन - चटकन ' ' अब्बक - इब्बक ', ' इली मिली ', ' दो बालें आईं ', ' डुक्का - मुक्की का ढूँढ़ राई ', वट सावित्री तथा पुतरियाँ आदि हैं । प्रौढ़ों के प्रहसन विजयदशमी, गणेशोत्सव आदि त्योहार पर किये जाते हैं, तो कुछ लीला मंडलियों द्वारा विशेष अवसरों पर लोकनाट्य प्रस्तुत किये जाते हैं । बुंदेली लोकनाट्य के अन्तर्गत स्वांग मुख्य है प्रमुख स्वांग ' माहुलिया, कचरिया, बोने - भांग बोने, लोंग बोने, बाबूलाल, लाहोरिया, सुनार दाउज, भूरी भैंस, लुवाओनों - पोंचोंएनो, कुचबंदिया, नवाब आदि हैं ।

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