बायो गैस ( Bio Gas )
हमारे देश में कृषि एवं पशुपालन को विशेष महत्व दिया जाता है । यहाँ कृषि अपशिष्ट तथा पशुओं की बहुतायत होने के कारण गोबर सरलता से उपलब्ध है । ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इन्हें सीधे जलाकर ऊर्जा प्राप्त करने का प्रचलन है । इससे ऊर्जा का एक बड़ा भाग प्रकृति में विलीन हो जाता है तथा पर्यावरण को भी हानि होती है । अब इसका उपयोग गैसीय ईंधन प्राप्त करने के लिए किया जाता है जिसे बायोगैस या जैव गैस कहते है । पशुओं के गोबर तथा कृषि अवशिष्ट का जब पानी के साथ ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन होता है तब एक गैसीय मिश्रण प्राप्त होता है, जिसे बायो गैस कहते है । बायो गैस मेथेन ( CH4 . ), कार्बन डाइआक्साइड ( CO2 ), हाइड्रोजन ( H2 ) नाइट्रोजन ( N2 ) तथा हाइड्रोजन सल्फाइड ( H2S ) का मिश्रण है । इसका मुख्य घटक मिथेन है । बायो गैस को गैस स्टोव में जलाकर ऊष्मा प्राप्त की जा सकती है । इसका उपयोग सड़कों में प्रकाश करने के लिए तथा इंजन चलाने के लिए भी किया जा सकता है ।
हमारे देश में सामान्य रूप से प्रचलित बायोगैस के दो प्रकार के डिजाइन इस्तेमाल किए जाते हैं । इनमें से एक में गैस की गुंबदनुमा टंकी स्थिर रहती हैं तथा दूसरे में गैस होल्डर अर्थात् टंकी पानी में तैरती रहती है । बायो गैस सयंत्र में गोबर तथा पानी का घोल डाला जाता है । उत्पन्न बायो गैस पाइपों द्वारा उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराई जाती है । लगातार बायोगैस उपलब्ध कराने के लिए यह आवश्यक है कि सयंत्र में नियमित रूप से अवशिष्ट जैव द्रव्यमान की आपूर्ति होती रहे । बायोगैस सयंत्र में जैव द्रव्यमान के अतिरिक्त मानव मल - मूत्र का उपयोग भी किया जा सकता है । कुछ शहरों में घरेलू मल - जल का विसर्जन विशाल बायोगैस सयंत्रों में किया जाता है । इससे न केवल लाभप्रद गैस उपलब्ध होती है, वरन् जल प्रदूषण की समस्या भी नियंत्रित रहती है ।
बायोगैस बिना धुएँ के जलती है तथा बहुत अधिक ऊष्मा उत्पन्न करती है । घरेलू इस्तेमाल के लिए यह एक उपयुक्त ईंधन है । गैस बन जाने के पश्चात् सयंत्र में स्लरी ( बचा हुआ घोल ) बनी रहती है, जिसमें अत्यधिक मात्रा में नाइट्रोजन तथा फास्फोरस यौगिक होते हैं । इसलिए यह एक अच्छी खाद के रूप में इस्तेमाल की जाती है ।