बघेली लोक साहित्य (bagheli lok sahitya)
बघेली लोक साहित्य की दृष्टि से सिंगरोली, उमरिया, अनूपपुर, रीवा, सतना, शहडोल तथा सीधी जिले आते हैं । बघेली लोक साहित्यकारों में बैजनाथ पाण्डे, शंभू काका, कालिका प्रसाद त्रिपाठी, बाबूलाल दाहिया, चण्डी प्रसाद चण्ड, अमोल बटोरोही प्रमुख हैं । बघेली लोक साहित्य को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँट सकते हैं ।
( अ ) लोकगीत, ( ब ) लोकगाथा, ( स ) लोककथा, ( द ) लोकनाट्य, ( इ ) लोक सुभाषित / प्रकीर्ण साहित्य
( अ ) बघेली लोकगीत - बघेली लोकगीतों में जहाँ बघेलखण्ड के पारम्परिक रीति - रिवाज का वैभव प्रसारित है, वहीं बघेलखण्ड की लोक - संस्कृति भी दृष्टिगोचर होती है । लोकगीतों में जितनी लोक राग की विविधता और विषयों की विभिन्नता मिलती है, उतनी किसी अन्य लोक साहित्य में नहीं । गोमती प्रसाद विकल ने ' बघेली संस्कृति और साहित्य ' पुस्तक में लोकगीतों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया है ।
- संस्कार गीत - जन्म गीत, सोहर गीत, प्रसव पूर्व के गीत, प्रसव बाद के गीत, अन्य भाव के गीत, मुण्डन गीत । यज्ञोपवीत में माटी मांगल्या, मंत्री पूजन, छिरा उतराई, रिसाई गीत एवं भीख गीत हैं । विवाह गीत में वर पक्ष में 18 प्रकार के गीत हैं, जबकि कन्या पक्ष में 28 प्रकार के गीत मिलते हैं । इसके अलावा गौना गीत तथा मृत्यु संस्कार गीत भी प्रचलित हैं ।
- ऋतु गीत - वर्षा गीत, बारहमासा गीत, फगुआ, चैती, कजरी - झूला गीत एवं हिंडुली गीत आदि ।
- क्रिया गीत - श्रम गीत, खेल गीत, नृत्य गीत, बेलनहाई गीत, गैलहाई गीत मिलते ।
- जातीय गीत - कहार कोरी गीत, कोल- कोरी गीत, चमार गीत, अहीर गीत . नाऊ - बारी गीत, धोबी गीत आदि ।
- अन्य गीत - कबीर गीत, लोरी गीत, गारी गीत, मंत्र गीत एवं भिक्षा गीत हैं । इनके अलावा शृंगार गीत के अन्तर्गत कोटवरहाई दादर, कहरहाई दादर, वरिहाई दादर एवं चमरहाई दादर हैं । इसके साथ ही त्योहार उत्सव गीत एवं देवी - देवताओं के गीत विविध अवसरों पर गाये जाते हैं ।
( ब ) बघेली लोकगाथा - लोक साहित्य में प्रचलित वह कथा जो पद्यात्मक हो लोकगाथा कहलाती है । बसुदेवा या श्रवण बघेलखण्ड के पारम्परिक गाथा गायक हैं जो श्रवण कुमार की गाथा के साथ - साथ, कर्ण गाथा, मोरध्वज गाथा, गोपचन्द गाथा, भरथरी गाथा, भोले बाबा की गाथा का गायन करते हैं । भरथरी लोकगाथा में राजा भरथरी और रानी पिंगला की गाथा का गायन होता है । इसके अलावा विभिन्न जातियों की लोकगाथा विद्यमान है, जैसे- लोरकी अहीरों की जातीय लोकगाथा है । बघेली लोकगाथा में आल्हा - ऊदल की गाथा सबसे लोकप्रिय है ।
( स ) बघेली लोककथा - गद्य में प्रचलित कहानी को लोक साहित्य में लोककथा के नाम से जाना जाता है । बघेली में लोककथा की प्राचीन परम्परा है । बघेली लोककथा को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है ।
( 1 ) पशु कथा,
( 2 ) परीकथा,
( 3 ) धार्मिक कथा,
( 4 ) मिथ कथा,
( 5 ) साहसिक कथा,
( 6 ) पौराणिक कथा,
( 7 ) आनुष्ठानिक कथा आदि हैं । उनमें केउटी का घोड़ा ( क्योटी का घोड़ा ), गदेलई ( बालहठ ) तथा बाप - पूत की कथा प्रसिद्ध है ।
( द ) बघेली लोकनाट्य - बघेली लोक साहित्य में लोकनाट्य की परम्परा अतिप्राचीन है । मनोरंजन की दृष्टि से मनुष्य लोकजीवन में घटित घटनाओं को मंच पर प्रस्तुत करता है, उन्हीं घटनाओं को लोकनाट्य कहते हैं । प्रमुख लोकनाट्य निम्न प्रकार से हैं ।
- छाहुर नाट्य - दीपावली से गोप अष्टमी तक अहीर, तेली और कुम्हार जाति के लोगों द्वारा किया जाने वाला नाट्य छाहुर नाट्य है ।
- मनसुखा नाट्य - यह नाट्य बघेलखण्ड में प्रायः त्योहारों एवं उत्सवों के अवसर किया जाता है । यह कृष्ण के मित्र मनसुखा पर किया जाने वाला नाट्य है ।
- हिंगोला नाट्य - प्रायः यह मंच - रहित सीधा और सरल लोकनाट्य है जो हिंगोला देवी की स्तुति में किया जाता है ।
- जिन्दबा ( नटकोरी ) - नाट्य- यह मूलतः स्त्री - नाट्य है । इसमें स्त्रियों द्वारा विभिन्न प्रसंगों पर हास्य के साथ अभिनय तथा गायन सहित किया जाता है । पुरुषों द्वारा इसे देखने पर उनकी झाडू एवं मूसलों से पिटाई होती है ।
- लकड़बग्धा नाट्य - इस नाट्य के द्वारा अहेरी एवं वन्य - पशु और मनुष्य के हार्दिक योग का अभिनय किया जाता है ।
- नोटंकी - यह दाम्पत्य जीवन के प्रसंगों को हास्य - व्यंग्य के साथ प्रस्तुत किया जाने वाला नाट्य है ।