विद्युत रासायनिक सेल (vidyut rasaynik cell)


विद्युत रासायनिक सेल

आप सभी ने टार्च में लगे छोटे बल्ब से उत्पन्न प्रकाश को देखा है । टार्च में लगा बल्ब , टार्च के अंदर लगे सेल से प्राप्त ऊर्जा के कारण रोशनी देने लगता है । अब प्रश्न उठता है कि सेल को ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है ? सेल को ऊर्जा , सेल में भरे रासायनिक पदार्थों से प्राप्त होती है । अत : विद्युत सेल वह युक्ति है जिसके द्वारा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं ।
आईये , अब हम सन् 1800 में बने वोल्टाइक सेल के बारे में जानें । इस सेल में एक कांच के पात्र में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल लेकर उसमें तांबे एवं जस्ते की छड़ों को रखते हैं तथा संयोजी तार द्वारा इन छड़ों का संबंध चित्र की भांति टार्च के बल्ब से करते हैं , तो बल्ब प्रकाशित हो जाता है ।

vidyut rasaynik cell

इस सेल की सर्वप्रथम खोज वोल्टा नामक वैज्ञानिक ने की थी । इसलिए इस सेल का नाम उन्हीं के नाम पर वोल्टाईक सेल पड़ा । इस सेल को साधारण वोल्टीय सेल भी कहते हैं
वोल्टाइक सेल में जब तांबे व जस्ते की छड़ों या प्रोटों को कुछ दूरी पर सल्फ्यूरिक अम्ल में रखा जाता है तो सल्फ्यूरिक अम्ल से रासायनिक क्रिया के कारण तांबे को छह पनावेशित तथा जस्ते की छड़ ऋणावेशित हो जाती है । अर्थात् , तावे की छड़ का विभाव , जस्ते को छड़ के विभव से अधिक हो जाता है । इस सेल में धनावेशित तांबे की छड़ को एनोड या धन इलेक्ट्रोट तथा ऋणावेशित जस्ते की छड़ को कैथोड या वरण इलेक्ट्रोड कहते हैं । इस प्रकार सेल के एनोड व कैथोड में विभवांतर के कारण संयोजी तार द्वारा जड़ा बल्ब रोशनी देने लगता है ।
सेल के बाह्य परिपथ में धारा गदैव धन इलेक्ट्रोड ( एनोड ) से शण इलेक्ट्रोड ( कैथोड ) की ओर प्रवाहित होती है जबकि इलेक्ट्रॉन प्राण इलेक्ट्रोड से धन इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होते हैं ।