सिनेमा कहानी (Cinema Kahani)



सिनेमा


सिनेमा का रंग आज हर व्यक्ति पर देखने को मिलता है । और यह रंग एक ऐसा रंग है जो अब उतरना मुश्किल है और यह रंग वेशभूषा और भाषा का रंग है । लोगों के अंदर सिनेमा के रंग का इतना अधिक प्रभाव पड़ा है जिसके आगे भारतीय संस्कृति का रंग भी फीका पड़ गया है । पाश्चात्य वेशभूषा और भाषा के चलते भारतीय संस्कृति खुशी गई है । एक ऐसी संस्कृति जिससे भारत देश जाना जाता है भारत अपनी मातृभाषा देव भाषा को छोड़कर विदेशी भाषा अंग्रेजी से सभी सरकारी कामकाज करता है । इस तरह हमारे लोगों द्वारा ही विदेशी भाषा को महत्व देकर भारतीय संस्कृति को खंडित किया जा रहा है ।वह इन सब का कारण सिनेमा है आज भारतीय संगीत भी विदेशी भाषा का गुलाम हो गया है । अर्थात संगीत जैसी कला का भी अपमान है और इससे बड़ी शर्म की बात भारतीयों के लिए और कुछ नहीं हो सकती इसका कारण भी सिनेमा ही है । इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है

 वेशभूषा

प्राचीन भारत में वेशभूषा साधारण होती थी जिसके अंतर्गत पुरुष धोती कुर्ता व स्त्रियां साड़ी इत्यादि वस्त्र धारण किया करती थी । परंतु सिनेमा में विदेशी पहनावे को एक फैशन के रूप में अधिक महत्व दिया जाता है । जिसका प्रभाव लोगों पर अधिक देखने में आता है और यदि इसी तरह भारत के लोग अपनी ही संस्कृति का गला घोट दे रहे तो भारत और विदेशी देशों में कोई अंतर नहीं रह जाता । जो हमारे धर्म ग्रंथ वेद पुराणों के विरुद्ध है । और पहले तो अंग्रेजों ने केवल भारत पर राज किया था परंतु विदेशी संस्कृति भारतीयों के विचारों के साथ-साथ वेशभूषा पर भी राज कर रही है ।

 भाषा

अंग्रेजी भाषा को महत्व मिलने से लोग अंग्रेजी का अध्ययन अधिक करते हैं । वह भारत सरकार के सभी कार्य अधिकतर अंग्रेजी में भी होने लगे हैं जबकि हमारी मातृभाषा हिंदी है । तो क्या इसका अर्थ यह है कि भारत अपनी संस्कृति भूल गया है । वर्तमान में सिनेमा में जो संगीत प्रस्तुत किया जाता है जिसमें अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी किया जाता है । क्या यह भारतीय संस्कृति है ? जिसमें स्वदेश की भाषा का कम परंतु विदेशी भाषा को अधिक महत्व दिया जाता है । सिनेमा के अभिनेता भी अपनी भारतीय संस्कृति का अपमान कर विदेशी भाषा को अधिक महत्व देते हैं । उन्हें केवल एक अभिनेता के रूप में ही अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना चाहिए ना कि सामान्य भाषा में अर्थात भारतीय संस्कृति को खंडित करने में सिनेमा का सबसे बड़ा हाथ है ।

लेखक - संदीप चौहान