समाजशास्त्र की प्रकृति Samajshashtra ki prakrati


समाजशास्त्र की प्रकृति (NATURE OF SOCIOLOGY)

वर्तमान युग विज्ञान का युग है। हर ज्ञान पटना और परिस्थितिवैज्ञपर आपने कर प्रयास किया जाता है। जो ज्ञान, पटना और परिस्थितिविज्ञान-सम् है, उसे ही सत्य माना जाता है। जब किसी भी विज्ञान की प्रकृति पर विचार किया जाता है यह होता है कि उस विज्ञान के अध्ययन की पद्धति अथवा तरीका वैज्ञानिक है? विज्ञान में जिस घटना अथवा परिस्थिति की विवेचना की जाती है, वह विज्ञान की कसौटी पर सही नहीं ? समाजशास्त्र की प्रकृति के अन्तर्गत हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि इसके अध्ययन की पद्धति अ तरीके वैज्ञानिक है अथवा नहीं?

समाजशास्त्र तुलनात्मक रूप से एक नया विज्ञान है। नया विज्ञान होने के समाजशास्त्र की प्रकृति के बारे में विवाद का होना नितान्त ही स्वाभाविक है। पिछली शताब्दियों में समाजशास्त्र में जो सबसे अधिक चर्चा का विषय बना, वह था इसकी प्रकृति के बारे में समाजशास्य की प्रकृति को लेकर तीन प्रकार की विचारधाराओं पर चर्चा हुई।

(1) समाजशास्त्र विज्ञान है.
(2) समाजशास्त्र कला है, तथा
(3) समाजशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है। समाजशास्त्र की प्रकृति को समझे बिना इसकी विज्ञान की अवधारणा को समझना अत्यन्त ही कठिन कार्य है। विज्ञान को प्रमुख रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(a) प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science), और
(b) सामाजिक विज्ञान (Social Science)

कुछ समाजशास्त्री इसे यथार्थ और प्राकृतिक विज्ञान नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि समाजशास्त्र प्राकृतिक विज्ञानों (भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र) से भिन्न है। यही कारण है कि इसे पदार्थ विज्ञान नहीं कहा जा सकता है। कुछ विद्वान ऐसे भी हैं, जो समाजशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति यथार्थ और वास्तविक विज्ञान मानते हैं। कुछ विद्वान् समाजशास्त्र को सीमित दायरे में करना और विज्ञान का समन्वयात्मक विज्ञान मानते हैं। विद्वानों में समाजशास्त्र की प्रकृति के सम्बन्ध में इन भ्रांतियों के बारे में बीरस्टीड ने लिखा है। कि "सामाजिक घटनाओं में कुछ भी कृत्रिमता, विलक्षणता या अलौकिकता नहीं है। सामाजिक घटनाएँ उतनी प्राकृतिक है, जितनी की युवक की आकर्षण शक्ति, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण या विद्युत शक्ति और एक नगर उतना ही प्राकृतिक है, जितना की वाल्मीकि।”

समाजशास्त्र की प्रकृति के वैज्ञानिक होने के विवाद में चलने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आखिर विज्ञान क्या है? समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि विज्ञान क्या है? विज्ञान की अवधारणा को स्पष्ट करने के बाद ही समाजशास्त्र की प्रकृति का ज्ञान हो सकेगा। आधुनिक मानवअधिक बौद्धिक धक है। वह हर एक वस्तु से विज्ञान और तर्क पर करना चाहता है। यही बात समाजशास्त्र के सम्बन्ध में लागू होती है। शास्त्र के बारे में भी ऐस ही प्रश्न किये जाते है कि- समाजशास्त्र विज्ञान है या नहीं? समाज अध्ययन पद्धति वैज्ञानिक है या नहीं? इन प्रश्नों के सम्बन्ध में समाजशास्त्रियों में मतभेद हो सकते हैं, किन्तु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि समाजशास्य विज्ञान है। इस करन की पुष्टि के लिए अनेक प्रकार के तर्क दिये सकते हैं। सबसे पहले यह जानना आवश्यक प्रतीत होता है कि विज्ञान क्या है? और फिर यह देखना कि समाजशास्त्र की पद्धतियों में और विज्ञान की पद्धतियों में समानता है या नहीं? तभी समाज के सम्बन्ध में निश्चित रूप से यह कहा जायेगा कि समाजशास्त्र विज्ञान है या नहीं?

आधुनिक युग में विज्ञान शब्द सर्वत्र और सर्वाधिक प्रचलित है। हमारा दैनिक जीवन विज्ञान से अ प्रभावित है। भोजन, वस्त्र, निवास तथा अन्य अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति विज्ञान के माध्यम से श्री जाती है। सामाजिक जीवन विज्ञान से अत्यधिक प्रभावित है। व्यक्ति परिवार, पड़ोस शिक्षण संस्थाएँ, आर्थिक संस्थाएँ और राजनैतिक संस्थाएँ, विज्ञान के प्रभाव से वंचित नहीं है। विज्ञान के सम्बन्ध में अनेक धारणाएँ हैं। कुछ लोग यांत्रिकी (Mechanism) को विज्ञान मानते है, तो कुछ लोग प्रौद्योगिकी (Technology) को। कुछ लोग विज्ञान का सम्बन्ध प्रयोगशाला पद्धति से लगाते हैं। परन्तु ये धारणाएँ उचित नहीं।

समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति (Scientific Nature of Sociology)-

विज्ञान तथा वैज्ञानिक पद्धति की विवेचना करने के उपरान्त यह प्रश्न पुनः उपस्थित होता है कि समाजशास्त्र की प्रकृति कैसी है? इसकी प्रकृति वैज्ञानिक है अथवा नहीं? इस प्रश्न के उत्तर में यह क जा सकता है कि समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है। इस कथन की पुष्टि के लिए निम्न प्रमाण प्रस्तुत किया जा सकता है।

  1. समाजशास्त्र विज्ञान है - विज्ञान व्यवस्थित या क्रमबद्ध ज्ञान को कहते हैं। समाजशास्त्र और जीवशास्त्र को इसलिए विज्ञान कहा जाता है, क्योंकि इसके सम्बन्ध में प्राप्त ज्ञान व्यवस्थित है। यही बात अन्य विषयों के बारे में भी लागू होती है। समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन व्यवस्थित ढंग से करता है, इसलिए यह एक विज्ञान है। अमेरिकन समाजशास्त्री वार्ड ने लिखा है कि "समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।"
  2. समाजशास्त्र वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करता है - समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति वैज्ञानिक है और इसके नियम सार्वभौमिक होते है। इन नियमों की परीक्षा और पुनः परीक्षा की जा सकती है। समाजशास्त्र की वैज्ञानिक पद्धतियाँ निम्न हैं - अवलोकन, व्यक्तिगत और अध्ययन पद्धति, समाजमिति, सामाजिक सर्वेक्षण आदि। इन पद्धतियों के माध्यम से समाज से सम्बन्धित तथ्यपूर्ण नियमों का निर्माण किया जा सकता है।
  3. समाजशास्त्र वास्तविक घटनाओं का अध्ययन करता है - समाजशास्त्र आदर्श विज्ञान नहीं है, जहाँ 'क्या होना चाहिए' का वर्णन किया जाता है। समाजशास्त्र तो वास्तविक परिस्थितियों का अध्ययन करता है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि समाजशास्त्र 'क्या है' वर्णन करता है। सामाजिक परिस्थितियाँ। जिस रूप में हैं, समाज में जो तथ्य जिस रूप में पाये जाते हैं उनका ठीक उसी रूप में अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र अपने अध्ययन में कल्पना का सहारा नहीं लेता है और न अफवाहों को ही अपने अध्यय का आधार बनाता है। वह तो वर्तमान परिस्थिति को जिस रूप में देखता है, उसका उसी रूप में अध्ययन करता है। तथ्यों का संग्रहण तथा वर्गीकरण करता है। इन्हीं के आधार पर नियमों का निर्माण करता है। इन नियमों की परीक्षा और पुनः परीक्षा की जा सकती है।
  4. समाजशास्त्रीय नियम सर्वव्यापी है - समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है। यदि समाज की परिस्थितियां परिवर्तित न हो तो समाज के नियम भी नहीं बदलेंगे और एक ही प्रकार के सभी समाज पर समान रूप से लागू जैसे औद्योगीकरण के द्वारा जन्म होगा, विपरित परिवार, विटित व्यक्तित्वको जन्म देंगे की और साधनों की कमी से निर्धनता बेकारी, अशिक्षा और भिक्षावृत्ति का विकास होगा।
  5. समाजशास्त्रीय सिद्धान्त - कार्यकरण सम्बन्धों पर आहिर एक के पीछे एक कारण होता है और कानिष्ठ सम्बन्ध होता है।करण कर या सिद्धान्त समाज पर भी लागू होता है। समाज भी सभी मटनाएँ जादू का है, उसके पीछे एक कारण होता है जैसे भारत में संयुक्त परिवार नष्ट हो रहे हैं, उसके पीछे एक कारण होना चाहिए। भारत में बेकारी की बढ़ती हुई समस्या के पीछे कोई कारण होना चाहिए।
  6. समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों की परीक्षा - जिस प्रकार भौतिकशास्त्र के नियम सार्वभौमिक और सार्वदेशिक होते है, उनकी परीक्षा और पुनः परीक्षा की जा सकती है, यह नियम समाजशास्त्र पर भी लागू होते है। अपरिवर्तित परिस्थितियों में समाजशास्त्र के नियम भी परिवर्तित होगे। वे सभी देश और सभी कालों पर समान रूप में लागू होते हैं और इन सिद्धान्तों की परीक्षा और पुन परीक्षा की जा सकती है। जैसे विघटित परिवार विघटित व्यक्तित्व को जन्म देगा, इस सिद्धान्त की किसी भी देश, काल और परिस्थितियों में परीक्षा की जा सकती है।
  7. समाजशास्त्र भविष्यवाणी करता है जिस प्रकार भौतिक विज्ञानों के द्वारा क्या है के आधार पर क्या होगा' की ओर संकेत किया जा सकता है उसी प्रकार समाजशास्वीय अध्ययन के द्वारा . उसी समाजशास्त्र वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर भविष्यवाणी कर सकता है। परिवार में होने वाले परिवर्तन के आधार पर व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन के आधार पर भविष्य में जाति का क्या रूप होगा- समाजशास्त्री इसे बता सकता है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि विज्ञान के जितने तत्व होते है, वे सभी समाजशास्त्र में पाये जाते हैं। समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धतियाँ वैज्ञानिक है। सामाजिक घटनाओं का कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है और भविष्यवाणी को जा सकती है। अतः समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है।

समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति पर आपत्तियाँ (Objections Against Scientific Nature of Sociology)

समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है। इस कथन को पुष्टि के लिए अनेक तर्क दिए गये है और ऐसा सिद्ध किया गया है कि समाजशास्त्र विज्ञान है। अनेक विद्वानों ने समाजशास्त्र की इस वैज्ञानिक प्रकृति पर आपत्तियों की है। अर्थात् समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की आलोचना की है और सिद्ध किया है कि समाजशास्त्र विज्ञान नहीं है। समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति पर प्रमुख आपत्तियों निम्नांकित हैं

  1. वैज्ञानिक तटस्थता का अभाव समाजशास्त्र विज्ञान नहीं है, क्योंकि उसमें तटस्थता कर अभाव पाया जाता है। भौतिकशास्त्री तटस्थ रहकर अध्ययन करता है, किन्तु समाजशास्त्री अपने अध्ययन में तटस्थ नहीं रह सकता है। इसका कारण यह है समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है। समाज वैज्ञानिक अनुसंधान का एक भाग होता है। अतः वह अपने अध्ययन में तटस्थ नहीं हो सकता है। साथ ही समाजशास्त्री उद्देगों और भावनाओं से अपने को अलग नहीं रख सकता, इस कारण भी उसका अध्ययन तटस्थ नहीं हो सकता है। इंजीनियर कमरे की लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई तटस्थ होकर ठीक-ठीक नाप लेगा, किन्तु व्यक्ति के सम्बन्धों, भावनाओं की माप तटस्थ होकर नहीं की जा सकती है।
  2. प्रयोगशाला का अभाव प्रयोगशाला विज्ञान का आवश्यक अंग है। प्रयोगशाला के अभाव में तथ्यों की प्रमाणिकता प्राप्त नहीं हो सकती है। समाजशास्त्र के पास ऐसी कोई प्रयोगशाला नहीं है। मनुष्य को भौतिक वस्तुओं की भाँति टेस्ट ट्यूब (Test tube) में रखकर उनका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति के व्यवहार की नाप करनी हो, तो उस व्यक्ति को प्रयोगशाला में नहीं ले जाया जा सकता है। विघटित परिवार और अपराधों की नाप प्रयोगशाला में नहीं की जा सकती है। इन सभी कारणों से समाजशास्त्र के नियम वैज्ञानिक नहीं हो सकते हैं।
  3. सामाजिक घटनाओं की माप असम्भव - विज्ञान की पूर्णता इसमें है कि उसके द्वारा तथ्यों को नापा-तौला जा सकता है। समाजशास्त्री के लिए सामाजिक घटनाओ की माप संभव नहीं है। सामाजिक घटनाएँ अमूर्त होती हैं। जो अमूर्त है, जिसे देखा और हुआ नहीं जा सकता है, उसकी माप कैसे की जा सकती है? वैज्ञानिक मकान की लम्बाई और चौड़ाई की माप कर सकता है, किन्तु समाजशास्त्री पिता-पुत्र के सम्बन्धों की माप नहीं कर सकता है। इसलिए समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है।
  4. भविष्यवाणी का अभाव - समाजशास्त्र भविष्यवाणी नहीं कर सकता है क्योंकि समाज सतत् परिवर्तनशील है। समाज की घटनाएं सतत् परिविर्तत होती रहती है। जब समाज की घटनाएँ परिवर्तित होती रहेगी, तो इसके सम्बन्ध में भविष्यवाणी भी नहीं की जा सकेगी। भविष्यवाणी के अभाव में समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है।
  5. सार्वभौमिकता का अभाव समाजशास्त्र के विज्ञान होने के सम्बन्ध में अन्तिम आपत्ति - यह है कि जिस प्रकार भौतिकशास्त्र के नियम रूस, इंग्लैंड, अमेरिका और भारत में समान रूप से होंगे उसी प्रकार समाजशास्त्र के नियम सार्वभौमिक नहीं है और सभी जगह समान रूप से लागू नहीं होते। हैं। अतः समाजशास्त्र विज्ञान नहीं है।
  6. आपत्तियों का मूल्यांकन (Evaluation of Objections)

समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति के सम्बन्ध में तर्क दिये गये हैं। कुछ विद्वानों ने इन तर्कों का खण्डन किया है। समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की आलोचना की है। दोनों पक्ष जो समाजशास्त्र को विज्ञान मानता है और जो नहीं मानता हमारे सामने है। दोनों पक्षों ने अपने तर्कों की पुष्टि के लिए अनेक प्रमाण दिये है। ऐसा कहना गलत नहीं है कि दोनों पक्षों ने अपने तर्कों की पुष्टि में अतिश्योक्ति की है - बढ़ा- चढ़ाकर कहा है। यहाँ इन दोनों पक्षों का मूल्यांकन किया जायेगा -

(1) समाजशास्त्र के विज्ञान न होने में पहला तर्क दिया जाता है कि इसमें वैज्ञानिक तटस्थता का अभाव है। इन्जीनियर यन्त्रों से कमरे की माप कर सकता है। यह सत्य है कि समाजशास्त्री के पास ऐसे यंत्र नहीं है। किन्तु समाजशास्त्री इस ओर प्रयत्नशील हैं कि उनके द्वारा किये गये अध्ययन पूर्णप तटस्थ हों। समाजशास्त्र के द्वारा ऐसे उपकरण और विधियाँ ढूँढ़ने का प्रयास किया जा रहा है जिससे समाजशास्त्रीय अध्ययन अधिक-से-अधिक तटस्थ हो । समाजशास्त्र एक नया विज्ञान है, इसका अभी पूरा विकास नहीं हो पाया है। जिस दिन समाजशास्त्र का पूर्ण विकास हो जायेगा, इसके बारे में लोगों के ज्ञान में वृद्धि हो जायेगी, समाजशास्त्र के सिद्धान्त के निकट पहुँच जायेंगे। इन आधारो पर समाजशास्त्र को अवैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है। विकास की प्रक्रिया में इसकी प्रकृति विज्ञान की ओर ही है।

(2) दूसरा आपत्ति प्रयोगशाला के अभाव की है। खुला समाज ही समाजशास्त्र की प्रयोगशाला है। न्यूटन मार्कोनी और आडीज के पास कौन-सी प्रयोगशालाएं थी? खुली प्रकृति ही उनकी प्रयोगशत थी अतः प्रयोगशा के अभाव में भी प्रयोग किये जा सकते है। बोगार्डस ने समाजशास्त्र प्रयोगशाला को स्थापना के लिए निम्न सुझाव दिया है। उसके अनुसार समाजशास्त्र की प्रयोगशाल में निम्न यंत्र (Apparatus) होने चाहिए -

  • टाइपराइटर, हिसाब लगाने वाली मशीने तथा अन्य प्रकार की मशीनें।
  • अलमारियाँ अनुसंधान से सम्बन्धित कागजातों को रखा जा सके।
  • लोगों का साक्षात्कार (Interview) लेने के लिए एक सुन्यवास्थत कम हो।
  • ड्राइंग का पर्याप्त सामान सवा हाइग बनाने के लिए और ताकि ग्राफ और चित्र बनाये जा सके।
  • एक पुस्तकालय से जहां अनुसंधान से संबंधित सभी प्रकार को पुस्तकें और पत्रिकाएँ हो। यह पुस्तकालय इस प्रकार व्यवस्थित हो कि पुस्तके आसानी से प्राप्त की जा सक । इसमें बैठने की उचित सम्मेलन (Seminar) और कन्फेस के लिए वृक्ष होना चाहिए व्यवस्था हो। लिखने पढ़ने के समुचित सामान हो और कक्ष की दीवारों पर सामाजिक जीवन से सम्बन्धित चित्र हो ।
  • इस प्रकार समाजशास्त्र की प्रयोगशाला का निर्माण किया जा सकता है और समाजशास्त्रीय अध्ययनो को अधिक वैज्ञानिक बनाया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त अन्य मानचित्र और तालिकाएँ हो जिनमें सामुदायिक जीवन के चित्र हो ।

(3) तीसरी आपत्ति यह है कि सामाजिक घटनाओं को माप नहीं की जा सकती है। किन्तु क्या यह सत्य है कि माप ही विज्ञान का आधार है। क्या चिकित्साशास्त्री धर्मामीटर के बिना नाप की माप कर सकते हैं? अगर माप ही विज्ञान का आधार है तो क्या दर्जी और बढ़ई भी वैज्ञानिक है? उत्तर सरल है। माप विज्ञान का आधार नहीं है। सामाजिक घटनाएँ धीरे-धीरे मापी जाने लगी है। अतः समाजशास्त्र विज्ञान है।

(4) समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति पर चौथी आपत्ति यह है कि समाजशास्त्र भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। भौतिक विज्ञानों के सभी नियम अन्तिम नहीं है। उन पर निरन्तर अनुसंधान हो रहे है। यह तो प्रकृति का नियम है। समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है। समाज के ड्रामा का अभिनेता व्यक्ति है। समाज और व्यक्ति दोनों बदलते रहते हैं। इससे समाजशास्त्र भविष्यवाणी नहीं कर सकता। यदि समाज की घटनायें परिवर्तित न हो तो समाजशास्त्री भी भविष्यवाणी कर सकता है। जिस प्रकार भौतिक विज्ञानों में नये अनुसंधान हो जाने से उसके सम्बन्ध में धारणा बदल जाती है, उसी प्रकार समाजशास्त्री भी भविष्यवाणी कर सकता है, बशर्ते समाज की घटनायें अपरिवर्तित रहें।

(5) समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की पांचवी आपत्ति यह है कि समाजशास्त्र के नियम सार्वभौमिक नहीं हैं। यह आपत्ति भी निराधार है। जिस प्रकार गणित के नियम (2+2=4) सभी समाजों में समान रूप से लागू होता है, ठीक उसी प्रकार समाजशास्त्र के नियम भी सभी समाजों में समान रूप से लागू होते हैं। उदाहरण के लिए पारिवारिक विघटन सभी समाजों में व्यक्तित्व को विघटित करता है। औद्योगीकरण का सभी समाजों में समान प्रभाव पड़ता है। मद्यपान पारिवारिक विघटन को प्रोत्साहित करेगा।

प्रसि समाजशास्त्री बीरस्टीड ने एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है- 'The Social Order'. इस पुस्तक में बीरगीड़ ने समाजशास्त्र की प्रकृति के सम्बन्ध में उत्पन्न भ्रान्तियों का निराकरण किया है। बीरस्टीड ने समाजशास्त्र की प्रकृति की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया है। ये विशेषताएँ इस प्रकार है-

  • समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, न कि प्राकृतिक विज्ञान ।
  • समाजशास्त्र एक शुद्ध विज्ञान है, न कि व्यावहारिक विज्ञान |
  • समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है, न कि मूर्त।
  • समाजशास्त्र एक श्रेणीबद्ध तथा प्रत्यक्षात्मक विज्ञान है, न कि आदर्शात्मका
  • समाजशास्त्र तर्कयुक्त एवं अनुभवसिद्ध दोनों विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, न कि विशेष विज्ञान। उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान है तथा इसके अध्ययन की विधियों वैज्ञानिक हैं।
वीरस्टीड के अनुसार समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति-

(Real Nature of Sociology According to Bierstedt) रॉबर्ट बीरस्टीड ने उपर्युक्त विवेचन के द्वारा समाजशास्त्र की प्रकृति को समझाने का प्रयास किया था। इस विवेचना के निम्न तीन प्रमुख आधार थे-

  1. समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की विशेषताएँ,
  2. समाज- शास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति पर आपत्तियाँ,
  3. इन आपत्तियों का मूल्यांकन।

इन विभिन्न विचारधाराओं के आधार पर बीरस्टीड ने कहा है कि भौतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञानों में अंतर है। इसी विचार को सामने रखकर उसने समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति की विवेचना की है, जो इस प्रकार है-

1. यह सामाजिक विज्ञान है न कि प्राकृतिक विज्ञान - विज्ञान प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते है- प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान। प्राकृतिक विज्ञान प्रकृति के अध्ययन से सम्बिन्धत है, जबकि सामाजिक विज्ञान सामाजिक घटनाओ के अध्ययन से। इसलिए सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के कारण सामाजिक विज्ञान समाजशास्त्र है, प्राकृतिक विज्ञान प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करते है।

2. यह वास्तविक विज्ञान है न कि आदर्शात्मक विज्ञान - समाजशास्त्र जीवन की वास्तविक घटनाओं से सम्बन्धित है। इसके अंतर्गत 'क्या है' का अध्ययन किया जाता है, 'क्या होना चाहिए' का अध्ययन नहीं किया जाता है। चूँकि यह विज्ञान है, इसलिए भविष्य के आदर्शों और कल्पनाओं से इसका सम्बन्ध न होकर जीवन की वास्तविकताओं से होता है। यही कारण है कि बीरस्टीड समाजशास्त्र को आदर्शात्मक विज्ञान न मानकर वास्तविक विज्ञान मानता है।

3. वह विशुद्ध विज्ञान है न कि व्यावहारिक विज्ञान - ज्ञान की कार्यविधियों को दृष्टि से विज्ञान दो प्रकार के होते हैं-

  • वे विज्ञान जो मात्र ज्ञान का संग्रह करते हैं और
  • वे विज्ञान जो ज्ञान का व्यावहारिक जीवन में उपयोग करते हैं।

इसी दृष्टि से विज्ञान को मौटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जाता है -
  • विशुद्ध विज्ञान और
  • व्यावहारिक विज्ञान।

समाजशास्त्र का तात्पर्य मात्र ज्ञान के संग्रह से है। इसकी उपयोगिता आदि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। इसीलिए समाजशास्त्र को व्यावहारिक विज्ञान न कहकर विशुद्ध विज्ञान कहा जाता है।

4. यह अमूर्त विज्ञान है - समाजशास्त्र ज्ञान की ऐसी शाखा है जिसका स्वरूप अमूर्त होता है। यह अमूर्त इसलिए है कि इसके अन्तर्गत 'सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और सम्बन्ध अमूर्त होते है। अभूत विषय सामग्री पर आधारित विज्ञान का स्वरूप भी अमूर्त होता है।

5. यह सामान्य विज्ञान है न कि विशिष्ट विज्ञान - समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सम्बन्धों की प्रकृति विशिष्ट न होकर सामान्य होती है। समबन्धों का सिर्फ सामाजिक स्वरूप ही नहीं होता है, अपितु वे धार्मिक और राजनैतिक क्षेत्रों से भी सम्बन्धित होते हैं इसीलिए समाजशास्त्र को विशिष्ट विज्ञान न कहकर सामान्य विज्ञान कहा जाता है।

6. यह अनुभवसिद्ध विज्ञान है - समाजशास्त्र वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है, इसलिए इस स्वरूप भीतार्किक है। इसकी विषय-सामग्री में केवल उन्हीं तथ्यों को स्थान प्रदान किया जाता है जो सर्क परी सिद्ध होते है। साथ ही यह विज्ञान मानव-अनुभव को भीमदत का लम्बा इतिहास अनुभव पर आधारित है। अनेक समाज की घटनाओं का आधार मानव होते है-उरण के लिए धर्म, नैतिकता प्रमाएँ परम्परा आदि। उपर्युक्त समस्त विषयों को सम्मिलित करने के कारण भी समाजशास्त्र को अनुभवसिद्ध विज्ञान कहा जाता है।

अत्यन्त संक्षेप में वीरस्टीड के अनुसार, समाजशास्त्र की प्रकृति की प्रमुख विशेषताएं निम्न है-

  1. समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।
  2. समाजशास्त्र वास्तविक विज्ञान है, आदर्शात्मक विज्ञान नहीं।
  3. समाजशास्त्र विशुद्ध विज्ञान है, व्यावहारिक विज्ञान नहीं।
  4. समाजशास्त्र अमूर्त विज्ञान है, मूर्त विज्ञान नहीं।
  5. समाजशास्त्र सामान्य विज्ञान है, विशिष्ट विज्ञान नहीं।
  6. समाजशास्त्र तार्किक और अनुभवसिद्ध विज्ञान है।

उपयुक्त विवचेन से स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है तथा इसके अन्तर्गत वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। चूंकि यह सामाजिक विज्ञान है और समाज की घटनाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। समाज की घटनाएँ प्राकृतिक घटनाओं से भिन्न प्रकृति की होती है। इसी दृष्टि से समाजशास्त्र की प्रकृति में भी कुछ भिन्नता है। फिर भी वैज्ञानिक पद्धतियों का व्यवस्थित प्रयोग करने के कारण इसकी प्रकृति को वैज्ञानिक कहा जाता है।