नीला सियार कहानी Neela siyar kahani


नीला सियार

एक बार एक भूखा सियार जंगल से निकलकर गांव की ओर चल पड़ा। जैसे ही • वह गांव के निकट पहुंचा, चारों ओर से कुत्तों ने उसे घेर लिया। उसने सोचा कि वापस जंगल की ओर भाग जाए, किन्तु अपने पीछे पड़े कुत्तों की भीड़ देखकर उसे यह विचार त्याग देना पड़ा। अब तो उसके सामने एक ही रास्ता था कि गांव में ही जाकर किसी घर में छिप जाए, अन्यथा ये कुत्ते उसे फाड़कर खा जाएंगे।

मृत्यु को सामने देखकर बड़े-बड़े दिलवालों के पसीने छूट जाते हैं। जबकि सियार तो स्वभाव से ही कायर होता है। वह बेचारा गांव की ओर भागा। कुत्ते भी उसके पीछे-पीछे भाग रहे थे।

अंधेरी रात में जिधर भी उसे रास्ता मिल रहा था, वह भागा जा रहा था। भागते- भागते वह एक धोबी के घर में जा घुसा। वहां पर नीले रंग से भरी हुई एक नांद रखी थी। सियार उसी में जा गिरा, जिससे वह नीले रंग में रंग गया। कुत्तों ने उसे इधर-उधर खोजा, किन्तु जब सियार कहीं भी नजर न आया तो वे निराश होकर चले गए। सियार नीले नांद से बाहर निकला तो ठंड के मारे उसका सारा शरीर कांप रहा था। थोड़ी देर तक वह भट्ठी में जल रही आग के पास बैठा रहा।

सुबह जैसे ही सूर्य की किरणों में उसने अपने शरीर को देखा तो अनुभव किया कि उसका तो सारा शरीर ही नीले रंग का हो गया है। ऐसा रंग तो जंगल में किसी भी सियार का नहीं था। उसने सोचा कि क्यों न वह इस रंग का लाभ उठाए।

यह सोचकर उसने जंगल के सारे सियारों को इकट्ठा किया। उसका नीला रंग देखकर सब चकित रह गए। " अरे भाई, देख क्या रहे हो! मैं कल रात जंगल की देवी के मन्दिर में गया था।

उसने मुझे यह आदेश दिया है कि मैं इस जंगल पर राज करूं और साथ ही उसने मेरा रंग भी नीला कर दिया है, ताकि राजा की पहचान अलग से हो सके।" अपनी चतुराई बघारते हुए सियार ने कहा।

सियार अपनी जाति के किसी साथी को वन का राजा बने देखकर बहुत प्रसन् हुए। वे सब उसे लेकर जंगल में घूमते हुए उसकी 'जय-जयकार' करते रहे। नीला रं वास्तव में ही उसे राजा जता रहा था। फलस्वरूप दूसरे हिंसक पशु जैसे भेड़िया, बा शेर भी उसे अपना राजा मानकर उसकी सेवा करने लगे।

समय बीतने के साथ सियारों ने देखा कि उनकी जाति के राजा पर दूसरे जानव का प्रभाव अधिक बढ़ गया है। उन्हें तो अब वह पूछता भी नहीं है। अतः वे सब दुः होकर एक स्थान पर इकट्ठे हो इसका कोई उपाय सोचने लगे। उनमें एक सियार बबूढ़ा और अनुभवी था। सबका दुःख समझकर उसने अन्य सियारों से कहा- " भाइर मैं तुम्हारे दुःख को अच्छी तरह समझता हूं। तुम लोग किसी प्रकार की चिन्ता मत क उसने हमारा अपमान किया है। हम उससे बदला लेकर ही रहेंगे।" "मगर यह कैसे सम्भव हो सकता है। अब तो शेर जैसे हिंसक पशु भी अपना राजा मानकर उसके सेवक बन गए हैं।"

"हां, यही तो उसकी पूर्खता है। उसे यह नहीं पता कि उसका यह नीला रंग सबसे बड़ा धोखा है। यदि उन हिंसक पशुओं को पता चल गया कि इसका रंग धोखा है तो...।"

"मगर अब हमें क्या करना चाहिए? यहां तो हमारी कोई पूछ ही नहीं है। " 'आज रात को हम लोग उसके आस-पास जंगल में छिप जाएंगे और अवसर पाते ही जोर-जोर से अपना स्वाभाविक स्वर करेंगे। वह हमारा स्वर सुनकर स्वयं पर काबू नहीं रख पाएगा। जैसे ही उसके मुंह से सियार का स्वर निकलेगा तो शेर, चीता, भेड़िया सब समझ जाएंगे कि यह जाति का सियार है और बाकी का काम तो वे अपने आप ही कर देंगे।"

सभी सियार इस बात पर सहमत हो गए। रात होते ही उन्होंने जोर-जोर से अपने स्वरों में 'हुवां-हुवां' करना आरम्भ कर दिया। जिसका जो स्वभाव होता है, उसे वह छोड़ नहीं सकता।

उस सियार के साथ भी यही हुआ। जैसे ही उसने सियारों का स्वर सुना, उसने भी 'हुवां-हुवां' करना आरम्भ कर दिया। उसका वास्तविक स्वर सुनते ही पास बैठे शेर को उसकी असलियत का पता चल गया। क्रोध से भरे शेर ने तत्क्षण उसे धर दबोचा और उसका शरीर फाड़ते हुए कहा- "धोखेबाज! सियार होते हुए भी तूने मुझ शेर को अपना नौकर बनाकर रखा।" बस, इसी के साथ उस सियार का अन्त हो गया।