भारतेन्दुयुगीन कविता की मुख्य विशेषताएँ 2(bhartendu yug ki kavita ki mukhya visheshta 2)


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प्रेम-वर्णन- सखी ये नैना बहुत बुरे ।
तब सों भये पराये, हरि सों जब सों जाइ जुरे ।
मोहन के रस बस ह्वै डोलत तलफत तनिक बुरे॥

कलात्मकता का अभाव

भारतेन्दुयुगीन कविता की चौथी मुख्य प्रवृत्ति है- कलात्मकता का अभाव । नवयुग की अभिव्यक्ति करने वाली यह कविता कलात्मक न हो सकी । जिसके कारण ये हैं-

(1) इस काल में विचारों का संक्रांति काल था, जिसके कारण में इसमें कलात्मकता का अभाव रहा ।
(2) इस युग में कवि समाचार-पत्रों द्वारा अपनी कविता का प्रचार करते थे, इसलिए उन्हें इसे काव्यपूर्ण बनाने की चिंता नहीं थी ।
(3) भाषा का अस्तित्व और नागरी आंदोलन के कारण भी कविता कलात्मकता धारण न कर सकी । क्योंकि इस आंदोलन के लिए कवियों को जनमत जागरित करना था जो कि जनवाणी से ही संभव था ।

कहने का मतलब यह है कि इस युग के कवि तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवम् भाषा संबंधी समस्याओं में इतने व्यस्त थे कि वे नवयुग की चेतना को कलात्मक एवम् प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त न कर सके और उसमें सर्वत्र यथार्थ की अनुभूति की सच्चाई सरल भाषा-शैली में अभिव्यक्त हुई । जैसे,

खंडन-मंडन की बातें सब करते सुनी सुनाई ।
गाली देकर हाय बनाते बैरी अपने भाई । ।
हैं उपासना भेद न उसके अर्थ और विस्तार ।
सभी धर्म के वही सत्य सिद्धांत न और विस्तारो । ।

काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग

इस काल की भाषा प्रमुख रूप से ब्रजभाषा ही रही । खड़ीबोली गद्य तक ही रही थी । किन्तु इस युग के अंतिम दिनों में खड़ीबोली में कविता करने का आन्दोलन प्रारम्भ हो गया था, जिसके कारण द्विवेदी युग में कविता के क्षेत्र में खड़ीबोली का प्रयोग शुरू हो जाता है । बद्रीनारायण चौधरी, अंबिकादत्त व्यास, प्रतापनारायण मिश्र आदि कवियों ने भारतेन्दु काल में खड़ीबोली में कविता करने का प्रयास किया था । जैसे-

हमें जो हैं चाहते निबाहते हैं (प्रेमघन),
उन दिलदारों से ही,मेल मिला लेते हैं । (प्रेमघन)

भारतेन्दु की खड़ी बोली का एक उदाहरण देखें-
साँझ सबेरे पंछी सब क्या कहते हैं कुछ तेरा है ।

हम सब एक दिन उड़ जायेंगे यह दिन चार सबेरा है॥ इससे स्पष्ट है कि भारतेन्दु युग में खड़ी बोली में उच्चकोटि की रचना नहीं मिलती । इसका कारण स्पष्ट है कि इस युग ब्रज भाषा पर रिझे हुए थे । इस प्रकार भाव-व्यंजना का प्रधान माध्यम ब्रजभाषा ही रही ।

हास्य-व्यंग्य एवम् समस्या पूर्ति

इस युग में हास्य-व्यंग्यात्मक कविताएँ भी काफी मात्रा में लिखी गई । सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों तथा पाश्चात्य संस्कृति पर करारे व्यंग्य किए गए । इस दृष्टि से प्रेमघन और प्रतापनारायण मिश्र की रचनाएँ सर्वोत्तम हैं । समस्या-पूर्ति इस युग की काव्य-शैली थी और उनके मंडल के कवि विविध विषयों पर तत्काल समस्यापूर्ति किया करते थे । रामकृष्ण वर्मा, प्रेमघन, ब्रेनी ब्रज आदि कवि तत्काल समस्या-पूर्ति के लिए प्रसिद्ध थे ।

प्राचीन छंद-योजना

भारतेन्दु युग में कवियों ने छन्द के क्षेत्र में कोई नवीन एवम् स्वतंत्र प्रयास नहीं किया । इन्होंने परम्परा से चले आते हुए छन्दों का उपयोग किया है । भक्ति और रीति काल के कवित्त, सवैया, रोला, दोहा, छप्पय आदि छंदों का इन्होंने प्रयोग किया । जब कि जातीय संगीत का सादारम लोगों में प्रचार करने के लिए भारतेन्दु ने कजली, ठुमरी, खेमटा, कहरवा, गज़ल, श्रद्धा, चैती, होली, सांझी, लावनी, बिरहा, चनैनी आदि छन्दों को अपनाने पर जोर दिया था ।

इस प्रकार यह स्पष्ट है
कि इस युग में परम्परा और आधुनिकता का संगम है । कविता की दृष्टि से यह संक्रमण का युग था । कवियों के विचारों में परिवर्तन हो रहा था । परम्परागत संस्कारों का पूर्ण रूप से मोहभंग हुआ भी न था और साथ में नवीन संस्कारों को भी वे अपना रहे थे । काशी नवजारण का प्रमुख केन्द्र था और यहां का साहित्यिक परिवेश भी सर्वाधिक जागरूक था । तत्कालीन परिवर्तनशील सामाजिक मूल्यों का भी उन पर प्रभाव पड़ रहा था ।

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