महाभोज उपन्यास का सारांश (mahabhoj upanyas ka saransh)


महाभोज उपन्यास का कथासार

मन्नू भंडारी का महाभोज उपन्यास इस धारणा को तोड़ता है कि महिलाएं या तो घर-परिवार के बारे में लिखती हैं, या अपनी भावनाओं की दुनिया में ही जीती-मरती हैं । महाभोज विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है । जनतंत्र में साधारण जन की जगह कहाँ है ? राजनीति और नौकरशाही के सूत्रधारों ने सारे ताने-बाने को इस तरह उलझा दिया है कि वह जनता को फांसने और घोटने का जाल बनकर रह गया है । इस जाल की हर कड़ी महाभोज के दा साहब की उँगलियों के इशारों पर सिमटती और कहती है । हर सूत्र के वे कुशल संचालक हैं । उनकी सरपरस्ती में राजनीति के खोटे सिक्के समाज चला रहे हैं । खरे सिक्के एक तरफ फेंक दिए गए हैं ।

महाभोज एक ओर तंत्र के शिकंजे की तो दूसरी ओर जन की नियति के द्वन्द की दारुण कथा है । अनेक देशी-विदेशी भाषाओँ में इस महत्त्पूर्ण उपन्यास के अनुवाद हुए हैं और महाभोज नाटक तो दर्जनों भाषाओँ में सैकड़ों बार मानचित होता रहा है । ‘नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (दिल्ली), द्वारा मानचित महाभोज नाटक राष्ट्रीय नाट्य-मंडल की गौरवशाली प्रस्तुतियों में अविस्मर्णीय है । हिंदी के सजग पाठक के लिए अनिवार्य उपन्यास है महाभोज ।

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