भक्तिकाल : पृष्ठभूमि एवं प्रमुख कवि bhaktikal prasthbhoomi evam pramukh kavi
भक्तिकाल : पृष्ठभूमि एवं प्रमुख कवि हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल भारतीय ज्ञान संपदा के संरक्षण और अपनी अस्मिता को बनाए रखने के लिए किए गए संघर्ष के लिए रेखांकनीय है। इस्लाम के प्रचार-प्रसार हेतु किए जा रहे सशस्त्र आक्रमणकारी विदेशी जब भारतवर्ष की राजशक्तियों को दमित कर सांस्कृतिक मानमूल्यों पर प्रचंड प्रहार कर रहे थे, तब समाज के मध्य से साधु-संतों ने समाज का नेतृत्व करने के लिए अपनी काव्यमयी वाणी का सदुपयोग किया। निर्गुण काव्य के रूप में आस्थामूल्क ईश्वरभक्ति समाज का दृढ़ कवच बनी तो सगुण-काव्य के केंद्र राम और कृष्ण की असुर संहारक छवि ने समाज को आक्रामक शक्तियों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की प्रेरणा दी। अनेक संतों ने रणक्षेत्रों में उतरकर प्रत्यक्ष संघर्ष भी किया किन्तु हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखकों-समीक्षकों ने भक्तिकाव्य के इस पक्ष की उपेक्षा की है और भक्तिकाल को हताश निराश समाज की भावाभिव्यक्ति के रूप में अंकित कर भ्रांतियाँ निर्मित की हैं। भक्ति-काव्य में आस्तिकता का प्रकाश, मानव मूल्यों की संचेतना और भारतीय शौर्य की संदीप्ति एक साथ प्रकट हुई है। युवा पीढ़ी को भक्ति