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पृथ्वी की आयु आकलन सम्बन्धी विभिन्न विधियाँ Prithvi ki aayu aklan sambandhi vibhinna vidhiya

पृथ्वी की आयु आकलन सम्बन्धी विभिन्न विधियाँ ग्रह के रूप में पृथ्वी का जन्म किस समय हुआ तथा इसकी आयु क्या है ? यह विद्वानों तथा वैज्ञानिकों के समक्ष एक चुनौती भरा रहस्य रहा है। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत किए गए मतों को निम्नलिखित सात शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है- धार्मिक विचारधारा के आधार पर आर्क विशप अंशर पादरी ने अपनी पुस्तक 'The Annals of the World' (1658) - में बताया कि ईसाई धर्मानुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ईसा से 4,004 वर्ष पूर्व हुई है। पारसी धर्म के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ईसा से 1,000 वर्ष पूर्व हुई। हिन्दू धर्म की पुस्तक 'मनुस्मृति' में पृथ्वी की आयु को लगभग 2 अरब वर्ष बताया गया। आश्चर्य का विषय है कि आधुनिक समय में वैज्ञानिकों द्वारा की गई पृथ्वी की आयु की गणना भी लगभग 2 अरब वर्ष आती है। अवसादन के आधार पर - पृथ्वी की प्रारम्भिक अवस्था में पृथ्वी के धरातल पर ठोस आग्नेय चट्टानों का आवरण था। बाद में अपक्षय एवं अपरदन प्रक्रिया प्रारम्भ होने से भारी मात्रा में चट्टानी अवसाद सागरीय तली में जमा होने लगे। यदि वर्तमान में विभिन्न साधनां द्वारा सागरों में अवसादी क

नवतारा परिकल्पना Navtara parikalpana

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नवतारा परिकल्पना नवतारा परिकल्पना के प्रमुख आधार - होयल तथा लिटिलटन ने अपनी परिकल्पना के प्रस्तुत करने से पूर्व यह तथ्य प्रमाणित हो चुका था कि ब्रह्माण्ड में सूर्य व अन्य तारों का निर्माण हाइड्रोजन तथा हीलियम जैसे हल्के तत्वों से हुआ है जबकि ग्रहों का निर्माण ऑक्सीजन, सिलिका, लोहा, कैल्सियम तथा एल्यूमिनियम जैसे भारी तत्वों से हुआ है। तब कुछ वैज्ञानिकों के समक्ष यह प्रश्न आया कि जब ब्रह्माण्ड में स्थिति तारों में तथा ब्रह्माण्ड के रिक्त स्थान पर भारी तत्व नहीं थे तो यहां व उपग्रहों में भारी तत्व कहाँ से आए ? इसी प्रश्न का समाधान होयल तथा लिटिलटन ने अपनी नवतारा परिकल्पना में किया। होयल तथा लिटिलटन के अनुसार, "सूर्य जैसे साधारण तारे में हाइड्रोजन के जलने से हाइड्रोजन हीलियम जैसे हल्के तत्व में परिवर्तित होती रहती है। हाइड्रोजन को हीलियम तत्व में परिवर्तित न होकर भारी तत्वों में परिवर्तित होने के लिए सूर्य की तुलना में कई सौ गुने अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। जब किसी तारे का तापमान सूर्य के तापमान से 300 गुना अधिक हो जाता है तो वहाँ हाइड्रोजन के जलने से भारी तत्वों का निर्म

नवतारा परिकल्पना की आलोचनाएँ Navtara parikalpna ki alochnayen

नवतारा परिकल्पना की आलोचनाएँ (1) ग्रहों तथा उपग्रहों में परिभ्रमण गतियाँ किस तरह उत्पन्न हुई, इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस परिकल्पना में नहीं होता। (2) सूर्य से ग्रहों तथा उपग्रहों की वर्तमान दूरियाँ किस प्रकार निर्धारित हुई, इसकी व्याख्या भी इस परिकल्पना में नहीं है। (3) सूर्य के समीपवर्ती ग्रहों में भारी पदार्थ तथा दूरस्थ ग्रहो में हल्के पदार्थ मिलने का कारण इस परिकल्पना से स्पष्ट नहीं होता। (4) लिटिलटन का यह मानना है कि ग्रहों का आकार बढ़ने पर उसकी घूर्णन गति में वृद्धि हो जाती है, सही नही है ।

नवतारा परिकल्पना की पुष्टि के प्रमाण Navtara parikalpna ki pushti ke praman

नवतारा परिकल्पना की पुष्टि के प्रमाण (1) यह परिकल्पना बताती है कि सौर मण्डल के ग्रहों तथा उपग्रहों का निर्माण सूर्य से निसृत पदार्थ में नहीं हुआ है। नवतारे के तीव्र गति से परिभ्रमण करने के कारण ही सौरमण्डल के यहां तथा उपग्रहों में कोणीय संवेग सूर्य की तुलना में अधिक है। अतः यह परिकल्पना ग्रहां तथा उपग्रहों के कोणीय संवेग की अधिकता का तर्कपूर्ण ढंग से स्पष्टीकरण करने का प्रयास करती है। (2) वर्तमान में अन्तरिक्ष में नवतारों तथा अधि-नवतारों की उपस्थिति यह बताती है कि यह परिकल्पना केवल कल्पनाओं पर ही आधारित नहीं है। (3) ग्रहों व उपग्रहों में भारी तथा हल्के तत्वों की उपस्थिति का होना भी इस परिकल्पना से प्रमाणित हो जाता है। नवतारा परिकल्पना की आलोचनाएँ (1) ग्रहों तथा उपग्रहों में परिभ्रमण गतियाँ किस तरह उत्पन्न हुई, इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस परिकल्पना में नहीं होता। (2) सूर्य से ग्रहों तथा उपग्रहों की वर्तमान दूरियाँ किस प्रकार निर्धारित हुई, इसकी व्याख्या भी इस परिकल्पना में नहीं है। (3) सूर्य के समीपवर्ती ग्रहों में भारी पदार्थ तथा दूरस्थ ग्रहो में हल्के पदार्थ मिलने का

भूगर्भ की संरचना Bhugarbh ki sanrachna

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भूगर्भ की संरचना [INTERIOR OF THE EARTH) भू-विज्ञान के अन्तर्गत भूगर्भ की जानकारी प्राप्त की जाती है। आज तक वैज्ञानिक ऐसा कोई यन्त्र या विधितन्त्र नहीं ढूँढ़ पाए है, जिसकी सहायता से काफी गहराई तक या आन्तरिक केन्द्र तक का प्रामाणिक ज्ञान उसी भाँति प्राप्त किया जा सके, जिस भाँति रेडियो, दूर्बीन, रॉकेट एवं मानव निर्मित उपग्रहों तथा अन्तरिक्ष यान के द्वारा ब्रह्माण्ड या अन्तरिक्ष का ज्ञान प्राप्त किया जाता रहा है। इसी कारण भूगर्भ का अधिक-से-अधिक सही-सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक तकनीक से विकसित साधनों द्वारा अप्रत्यक्ष एवं कभी-कभी प्रत्यक्ष प्रमाणों आदि सभी को मिलाकर सही दिशा की ओर सम्भावित ज्ञान-प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयास किया जाता है। भूगर्भ की आन्तरिक अवस्था (दशा) सम्वन्धी प्रमाण - वर्तमान युग में नवीनतम् तकनीक, वैज्ञानिक अन्वेषणों तथा खोजों एवं विश्लेषण की सहायता से पृथ्वी के आन्तरिक भाग की एवं विविध गहराई पर उसकी संरचना, स्वरूप आदि के बारे में सही प्रकार से प्रामाणिक तथ्य ज्ञात करने का निरन्तर प्रयास किया जाता रहा है। सभी उपलब्ध प्रमाणों को निम्नलिखित

चट्टान : उत्पत्ति, प्रकार तथा संरचना Chattan utpatti prakar tatha sanrachna

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चट्टान : उत्पत्ति, प्रकार तथा संरचना चट्टानों का अर्थ एवं परिभाषाएँ (MEANING AND DEFINITIONS OF ROCKS) पृथ्वी की सतह का निर्माण चट्टान द्वारा होता है। कठोर वस्तु के लिये चट्टान शब्द का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी, बालू, कंकड़, ग्रेनाइट आदि सभी के लिये भूगोल विषय में इसका प्रयोग किया जाता है।" आर्थर होम्स के अनुसार, "अधिकांश चट्टानें खनिजों का ही मिश्रित अंश होती हैं। अतः उनमें कई खनिजों का पाया जाना स्वाभाविक होता है। इन खनिजों में रासायनिक तत्वों का योग रहता है। प्रत्येक चट्टान में एक से अधिक खनिजों का सम्मिश्रण पाया जाता है।" वॉरसेस्टर के अनुसार, "सभी चट्टानों में दो या अधिक खनिज होते है अर्थात् चट्टाने चट्टान निर्मित करने वाले खनिजों का मिश्रण होती हैं।" (Nearly all rocks contain two or more minerals, that is to say rocks are composed of certain rock making minerals.) प्रसिद्ध विद्वान लोवक के अनुसार, “चट्टान अपने वातावरण का प्रतिफल होती है। जब वातावरण बदलता है, तो चट्टान भी बदलती है।" (A rock should be conceived as a product of its environment. Wh